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भाषाटीकासहिता। ७३

चैतन्यस्वरूपके साक्षात्करनेका उपाय कहते हैं कि, हे शिष्य ! भूतविकार कहिये देह इंद्रिय आदिको वास्तवमें जड जो पंचमहाभूत तिनका विकार जान आत्मस्वरूप मत जान यदि गुरु, श्रुति और अनुभवसे ऐसा निश्चय कर लेगा तो तात्कालहि संसारबंधनसे मुक्त होकर शरीर आदिसे विलक्षण जो आत्मा तिस आत्म- स्वरूपके विषे स्थितिको प्राप्त होयगा, क्योंकि शरीर आदिके विषं आत्मभिन्न जडत्व आदिका ज्ञान होनेपर तिन शरीर आदिका साक्षी जो आत्मा सो शीघ्रही जाना जाता है ॥७॥

वासना एव संसार इति सर्वा विमुञ्चताः ।

तत्त्यागोवासनात्यागात्स्थितिरद्ययथातथा ८

अन्वयः-संसारः वासनाः एव इति ताः सर्वाः विमुञ्च, वासनात्यागात् तत्त्यागः अद्य स्थितिः तथा यथा ॥ ८ ॥

इस प्रकार आत्मज्ञान होनेपर आत्मज्ञानके विर्षे निष्ठा होनेके लिये वासनाके त्याग करनेका उपदेश करते हैं कि, विषयोंके विषं वासना होनाही संसार है, इस कारण हे शिष्य! तिन संपूर्ण वासनाओंका त्याग कर वासनाके त्यागसे आत्मनिष्ठा होनेपर तिस संसारका स्वयं त्याग हो जाता है और वासनाओंके त्याग होने