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भाषाटीकासहिता। ७९

अथैकादशं प्रकरणम् ११.

भावाभाविकारश्च स्वभावादिति निश्चयी।

निर्विकारो गतक्लेशः सुखेनैवोपशाम्यति॥१॥

म अन्वयः-भावाभावविकारः स्वभावात् ( जायते ) इति निश्चयी (पुरुषः) निर्विकारः गतक्लेशः च (सन् ) सुखेन एव उपशाम्यति ॥ १॥

पूर्वोक्त शांति ज्ञानसेही होती है अन्यथा नहीं होती है, इसका बोध करनेके निमित्त आठ श्लोकोंसे ज्ञानका वर्णन करते हुए प्रथम ज्ञानके साधनोंका वर्णन करते हैं, किसी वस्तुका भाव और किसी वस्तुका अभाव यह जो विकार है सो तो स्वभाव कहिये माया और पूर्वसंस्कारके अनुसार होता है, आत्माके सकाशसे नहीं होता है ऐसा निश्चय जिस पुरुषको होता है वह पुरुष अनायाससेही शांतिको प्राप्त हो जाता है ॥१॥

ईश्वरःसर्वनिर्माता नेहान्य इति निश्चयी।।

अन्तर्गलितसर्वाशःशान्तःक्वापिन सज्जते २

अन्वयः-इह सर्वनिर्माता ईश्वरः, अन्यः न इति निश्चयी (पुरुषः ) अन्तर्गलितसर्वाशः शान्तः (सन् ) क अपि न सजते ॥२॥