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80 मष्टावक्रगीता।

तहां शिष्य शंका करता है कि, माया तो जड है उसके सकाशसे भावाभावरूप संसारकी उत्पत्ति किस प्रकार हो सकती है ? तिसका गुरु समाधान करते हैं कि, संपूर्ण जगत् रचनेवाला एक ईश्वर है, अन्य जीव जगत्का रचनेवाला नहीं है, क्योंकि जीव ईश्वरके वशीभूत हैं, इस प्रकार निश्चय करनेवाला पुरुष ऐसे निश्चयके प्रभावसेही दूर हो गई है सब प्रकारकी तृष्णा जिसकी ऐसा और शांत कहिये निश्चल चित्त होकर कहींभी आसक्त नहीं होता है ॥२॥

आपदः सम्पदः काले दैवादैवेति निश्चयी।

तृप्तःस्वस्थेन्द्रियो नित्यं न वांछति न शोचति ॥३॥

अन्वयः काले आपदः सम्पदः (च) देवात् एव (भवन्ति । इति निश्चयी तृप्तः ( पुरुषः ) नित्यम् स्वस्थन्द्रियः ( सन् ) न वाञ्छति न शोचति ॥ ३ ॥

तहां शंका होती है कि, यदि ईश्वरही संसारको रचनेवाला है तो किन्ही पुरुषोंको दरिद्री करता है, किन्हीको धनी करता है और किन्हीको सुखी करता है तथा किन्हीको दुःखी करता है. इस कारण ईश्वरके विर्षे वैषम्य और नैर्घण्य दोष आवेगा। तहां कहते हैं कि, किसी समयमें आपत्तियें और किसी समयमें संपत्तिये