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भाषाटीकासहिता। 83

में ज्ञानस्वरूप हूं, इस प्रकार जिस पुरुषका निश्चय हो जाता है, वह पुरुष ज्ञानके द्वारा अभिमानका नाश होनेके कारण मुक्तिदशाको प्राप्त हुए पुरुषकी समान कर्म अकर्मका स्मरण नहीं करता है अर्थात् उसके विर्षे लिप्त नहीं होता है ॥६॥

आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तमहमेवेति निश्चयी। निर्विकल्पः शुचिः शान्तःप्राप्ता-प्राप्तविनिर्वृतः॥७॥

अन्वयः-आब्रह्मस्तम्बपर्यंतम् अहम् एव इति निश्चयी ( पुरुषः ) निर्विकल्पः शुचिः ( तथा ) शान्तः ( सन ) प्राप्ताप्राप्त विनिर्वृतः ( भवति ) ॥ ७॥

ब्रह्मासे लेकर तृणपर्यंत संपूर्ण जगत् मेंही हूं, इस प्रकार निश्चयवाले पुरुषके संकल्प विकल्प नष्ट हो जाते हैं, विषयासक्तरूप मलसे रहित हो जाता है, उस पुरुषका महापवित्र जो आत्मा सो प्राप्त और अप्राप्त वस्तुकी इच्छासे रहित होकर परम संतोषको प्राप्त होता है ॥७॥

नानाश्चर्यमिदं विश्वं न किञ्चिदिति निश्चयी । निर्वामनः स्फूर्तिमात्रो न किञ्चिदिति शाम्यति ॥८॥