महाभारतम्-02-सभापर्व-020
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कृष्णयुधिष्ठिरसंवादानन्तरं भीमार्जुनाभ्यांसह कृष्णस्य मागधपुरप्रस्थानम्।। 1।।
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वासुदेव उवाच।। | 2-20-1x |
पतितौ हंसडिभिकौ कंसश्च सगणो हतः। जरासन्धस्य निधने कालोऽयं समुपागतः।। | 2-20-1a 2-20-1b |
न शक्योऽसौ रणे जेतुं सर्वैरपि सुरासुरैः। प्राणयुद्धेन जेतव्यः स इत्युपलभामहे।। | 2-20-2a 2-20-2b |
मयि नीतिर्बलं भीमे रक्षिता चावयोर्जयः। मागधं साधयिष्याम इष्टिं त्रय इवाग्नयः।। | 2-20-3a 2-20-3b |
त्रिभिरासादितोऽस्माभिर्विजने स नराधिपः। न सन्देहो यथा युद्धमेकेनाप्युपयास्यति।। | 2-20-4a 2-20-4b |
अवमानाच्च लोभाच्च बाहुवीर्याच्च दर्पितः। भीमसेनेन युद्धाय ध्रुवमप्युपयास्यति।। | 2-20-5a 2-20-5b |
अलं तस्य महाबाहुर्भीमसेनो महाबलः। लोकस्य समुदीर्णस्य निधनायान्तको यथा।। | 2-20-6a 2-20-6b |
यदि भीमबलं वेत्सि यदि ते प्रत्ययो मयि। भीमसेनार्जुनौ शीघ्रं न्यासभूतौ प्रयच्छ मे।। | 2-20-7a 2-20-7b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-20-8x |
एवमुक्तो भगवता प्रत्युवाच युधिष्ठिरः। भीमार्जुनौ समालोक्य सम्प्रहृष्टमुखौ स्थितौ।। | 2-20-8a 2-20-8b |
युधिष्ठर उवाच। | 2-20-9x |
अच्युताच्युत मामैवं व्याहरामित्रकर्शन। पाण्डवानां भवान्नाथो भवन्तं चाश्रिता वयम्।। | 2-20-9a 2-20-9b |
यथा वदसि गोविन्द सर्वं तदुपपद्यते। नहि त्वमग्रतस्तेषां येषां लक्ष्मीः पराङ्मुखी।। | 2-20-10a 2-20-10b |
`येषामभिमुखी लक्ष्मीस्तेषां कृष्ण त्वमग्रतः'। निहतश्च जरासन्धो मोक्षिताश्च महीक्षितः। राजसूयश्च मे लब्धो निदेशे त्व तिष्ठतः।। | 2-20-11a 2-20-11b 2-20-11c |
क्षिप्रमेव यथा त्वेतत्कार्यं समुपपद्यते। अप्रमत्तो जगन्नाथ तथा कुरु समुपपद्यते। | 2-20-12a 2-20-12b |
त्रिभिर्भवद्भिर्हि विना नाहं जीवितुमुत्सहे। धर्मकामार्थरहितो रोगार्त इव दुःखितः।। | 2-20-13a 2-20-13b |
न शौरिणा विना पार्थो न शौरिः पाण्डवं विना। नाजेयोस्त्यनयोऽर्लोके कृष्णयोरिति मे मतिः।। | 2-20-14a 2-20-14b |
अयं च बलिनां श्रेष्ठः श्रीमानपि वृकोदरः। युवाभ्यां सहितो वीर किं न कुर्यान्महायशाः।। | 2-20-15a 2-20-15b |
सुप्रणीतो बलौघो हि कुरुते कार्यमुत्तमम्। अन्धं बलं जडं प्राहुः प्रणेतव्यं विचक्षणैः।। | 2-20-16a 2-20-16b |
यतो हि निम्नं भवति नयन्ति हि ततो जलम्। यतश्छिद्रं ततश्चापि नयन्ते धीवरा जलम्।। | 2-20-17a 2-20-17b |
तस्मान्नयविधानज्ञं पुरुषं लोकविश्रुतम्। वयमाश्रित्य गोविन्दं यतामः कार्यसिद्धये।। | 2-20-18a 2-20-18b |
एवं प्रज्ञानयबलं क्रियोपायसमन्वितम्। पुरस्कृर्वीत कार्येषु कृष्णकार्यार्थसिद्धये।। | 2-20-19a 2-20-19b |
एवमेव यदुश्रेष्ठ यावत्कार्याथिसिद्धये। अर्जुनः कृष्णमन्वेतु भीमोऽन्वेतु धनञ्जयम्। नयो जयो बलं चैव विक्रमे सिद्धिमेष्यति।। | 2-20-20a 2-20-20b 2-20-20c |
वैशम्पायन उवाच। | 2-20-21x |
एवमुक्तास्ततः सर्वे भ्रातरो विपुलौजसः। वार्ष्णेयः पाण्डवेयौ च प्रतस्थुर्मागधं प्रति।। | 2-20-21a 2-20-21b |
वर्चस्विनां ब्राह्मणानां स्नातकानां परिच्छदैः। आच्छाद्य सुहृदां वाक्यैर्मनोज्ञैरभिनन्दिताः।। | 2-20-22a 2-20-22b |
`माधवः पाण्डवेयौ च प्रतस्थुर्व्रतधारिणः'। अमर्षादभितप्तानां ज्ञात्यर्थं मुख्यतेजसाम्। रविसोमाग्निवपुषां दीप्तमासीत्तदा वपुः।। | 2-20-23a 2-20-23b 2-20-23c |
इतं मेने जरासन्धं दृष्ट्वा भीमपुरोगमौ। एककार्यसमुद्यन्तौ कृष्णौ युद्धेऽपराजितौ।। | 2-20-24a 2-20-24b |
ईशौ हितौ महात्मानौ सर्वकार्यप्रवर्तिनौ। धर्मकामार्थलोकानां कार्याणां च प्रवर्तकौ।। | 2-20-25a 2-20-25b |
कुरुभ्यः प्रस्थितास्ते तु मध्येन कुरुजाङ्गलम्। रम्यं पद्मसरो गत्वा कालकूडमतीत्य च।। | 2-20-26a 2-20-26b |
गण्डकीं च महाशोणं सदानीरां तथैव च। एकपर्वतके नद्यः क्रमेणैत्याव्रजन्त ते।। | 2-20-27a 2-20-27b |
उत्तीर्य सरयूं रम्यां दृष्ट्वा पूर्वांश्च कोसलान्। अतीत्य जग्मुर्मिथिलां मालां चर्मण्वतीं नदीम्।। | 2-20-28a 2-20-28b |
अतीत्य गङ्गां शोणं च त्रयस्ते प्राङ्मुखास्तदा। कुशचीरच्छदा जग्मुर्मागधं क्षेत्रमच्युताः।। | 2-20-29a 2-20-29b |
ते शश्वद्गोधनाकीर्णमम्बुमन्तं शुभद्रुमम्। गोरथं गिरिमासाद्य ददृशुर्मागधं पुरम्।। | 2-20-30a 2-20-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि जरासन्धवधपर्वणि विंशोऽध्यायः।। 20।। |
2-20-3 जयोऽर्जुनः।।
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