महाभारतम्-02-सभापर्व-024
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भीमजरासन्धयोः स्वस्त्ययनपूर्वकं युद्धारम्भः।। 1।।
श्रीकृष्णप्रोत्साहितस्य भीमस्य जरासन्धवधोद्यमः।। 2।।
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ततस्तं निश्चितात्मानं युद्धाय यदुनन्दनः। उवाच वाग्मी राजानं जरासन्धमधोक्षजः।। | 2-24-1a 2-24-1b |
त्रयाणां केन ते राजन्योद्धुमुत्सहते मनः। अस्मदन्यतमेनेह सज्जीभवतु को युधि।। | 2-24-2a 2-24-2b |
एवमुक्तः स नृपतिर्युद्धं वव्रे महाद्युतिः। जरासन्धस्ततो राजा भीमसेनेन मागधः।। | 2-24-3a 2-24-3b |
`धारयन्तं गदां दिव्यां बलं श्रुत्वा च निर्वृतः। अर्जुन वासुदेवं च वजर्यित्वा स मागधः।। | 2-24-4a 2-24-4b |
मत्वा देवं गोप इति बालोऽर्जुन इति स्म ह'। आदाय रोजनां माल्यं मङ्गल्यान्यपराणि च।। | 2-24-5a 2-24-5b |
धारयन्नगदान्मुख्यान्निर्वृतीर्वेदनानि च। उपतस्थे जरासन्धं युयुत्सुं वै पुरोहितः।। | 2-24-6a 2-24-6b |
कृतस्वस्त्ययनो राजा ब्राह्मणेन यशस्विना। समनह्यज्जरासन्धः क्षात्रं धर्ममनुस्मरन्।। | 2-24-7a 2-24-7b |
अवमुच्य किरीटं स केशान्समनुमृज्य च। दतिष्ठज्जरासन्धो वेलातिग इवार्णवः।। | 2-24-8a 2-24-8b |
उवाच मतिमान्राजा भीमं भीमपराक्रमः। भीम योत्स्ये त्वया सार्धं श्रेयसा निर्जितं वरम्।। | 2-24-9a 2-24-9b |
एवमुक्त्वा जरासन्धो भीमसेनमरिन्दमः। प्रत्युद्ययौ महातेजाः शक्रं बल इवासुरः।। | 2-24-10a 2-24-10b |
ततः संमन्त्र्य कृष्णेन कृतस्वस्त्ययनो बली। भीमसेनो जरासन्धमाससाद युयुत्सया।। | 2-24-11a 2-24-11b |
ततस्तौ नरशार्दूलौ बाहुशस्त्रौ समीयतुः। वीरौ परमसंहृष्टावन्योन्यजयकाङ्क्षिणौ।। | 2-24-12a 2-24-12b |
करग्रहणपूर्वं तु कृत्वा पादाभिवन्दनम्। कक्षैः कक्षां विधुन्वानावास्फोटं तत्र चक्रतुः।। | 2-24-13a 2-24-13b |
स्कन्धे दोर्भ्यां समाहत्य निहत्य च मुहुर्मुहुः। अङ्गमङ्गैः समाश्लिष्य पुनरास्फालनं च चक्रतुः। | 2-24-14a 2-24-14b |
चित्रहस्तादिकं कृत्वा सस्फुलिङ्गेन चाशनिम्।। गलगण्डाभिघातेन सस्फुलिङ्गेन चाशनिम्।। | 2-24-15a 2-24-15b |
बाहुपाशादिकं कृत्वा पादाहतशिरावुभौ। उरोहस्तं ततश्चक्रे पूर्णकुम्भौ प्रयुज्य तौ।। | 2-24-16a 2-24-16b |
करसम्पीडनं कृत्वा गर्जन्तौ वारणाविव। नर्दन्तौ मेघसङ्काशौ बाहुप्रहरणावुभौ।। | 2-24-17a 2-24-17b |
तलेनाहन्यमानौ तु अन्योन्यं कृतवीक्षणौ। सिंहाविव सुसंङ्क्रुद्धावाकृष्याकृष्य युध्यताम्।। | 2-24-18a 2-24-18b |
अङ्गेनाङ्गं समापीड्य बाहुभ्यामुभयोरपि। आवृत्य बाहुभिश्चापि उदरं च प्रचक्रतुः।। | 2-24-19a 2-24-19b |
उभौ कट्यां सुपार्श्वे तु तक्षवन्तौ च शिक्षितौ। अधो हस्तं स्वकण्ठे तूदरस्योरसि चाक्षिपत्।। | 2-24-20a 2-24-20b |
सर्वातिक्रान्तमर्यादं पृष्ठभङ्गं च चक्रतुः। सम्पूर्णमूर्च्छां बाहुभ्यां पूर्णकुम्भं प्रचक्रतुः।। | 2-24-21a 2-24-21b |
तृणपीडं यथाकामं पूर्णयोगं समुष्टिकम्। एवमादीनि युद्धानि प्रकुर्वन्तौ परस्परम्।। | 2-24-22a 2-24-22b |
तयोर्युद्धं ततो द्रष्टुं समेताः पुरवासिनाः। ब्राह्मणा वणिजश्चैव क्षत्रियाश्च सहस्रशः।। | 2-24-23a 2-24-23b |
शूद्राश्च नरशार्दूल स्त्रियो वृद्धाश्च सर्वशः। निरन्तरमभूत्तत्र जनौघैरभिसंवृतम्।। | 2-24-24a 2-24-24b |
तयोरथ भुजाघातान्निग्रहप्रग्रहात्तथा। आसीत्सुभीमसम्पातो वज्रपर्वतयोरिव।। | 2-24-25a 2-24-25b |
उभौ परमसंहृष्टौ बलेन बलिनां वरौ। अन्योन्यस्यान्तरं प्रेप्सू परस्परजयैषिणौ।। | 2-24-26a 2-24-26b |
` शिरोभिरिव तौ मेषौ वृक्षैरिव निशाचरौ। पदैरिव शुभावश्वौ तुण्डाभ्यां तित्तिरी इव'।। | 2-24-27a 2-24-27b |
तद्भीममुत्सार्य जनं युद्धमासीदुपप्लवे। बलिनोः संयुगे राजन्वृत्रवासवयोरिव।। | 2-24-28a 2-24-28b |
प्रकर्षणाकर्षणाभ्यामनुकर्षविकर्षणैः। आचकर्षतुरन्योन्यं जानुभिश्चावजघ्नतुः।। | 2-24-29a 2-24-29b |
ततः शब्देन महता भर्त्सयन्तौ परस्परम्। पाषाणसङ्घातनिभैः प्रहारैरभिजघ्नतुः।। | 2-24-30a 2-24-30b |
`ततो भीमं जरासन्धो जघानोरसि मुष्टिना। भीमोषि तं जरासन्धं वक्षस्यभिजघान ह'।। | 2-24-31a 2-24-31b |
व्यूढोरस्कौ दीर्घभुजौ नियुद्धकुशलावुभौ। बाहुभिः समसज्जोतामायसैः परिघैरिव।। | 2-24-32a 2-24-32b |
कार्तिकस्य तु मासस्य प्रवृत्तं प्रथमेऽहनि। तदा तद्युद्धमभवद्दिनानि दश पञ्च च। अनाहारं दिवारात्रमविश्रान्तमवर्तत।। | 2-24-33a 2-24-33b 2-24-33c |
तद्वृत्तं तु त्रयोदश्यां समवेतं महात्मनोः। चतुर्दश्यां निशायां तु निवृत्तो मागधः क्लमात्।। | 2-24-34a 2-24-34b |
तं राजानं तथा क्लान्तं दृष्ट्वा राजञ्जनार्दनः। उवाच भीमकर्माणं भीमं सम्बोधयन्निव।। | 2-24-35a 2-24-35b |
क्लान्तः शत्रुर्हि कौन्तेय शक्यः पीडयितुं रणे। पीड्यमानो हि कार्त्स्न्येन जह्याज्जीवितमात्मनः।। | 2-24-36a 2-24-36b |
तस्मात्तेऽद्यैव कौन्तेय पीडनीयो जनाधिपः। सममेतेन युध्यस्व बाहुभ्यां भरतर्षभ।। | 2-24-37a 2-24-37b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-24-38x |
एवमुक्तःस कृष्णेन पाण्डवः परवीरहा। जरासन्दस्य तद्रन्ध्रं ज्ञात्वा चक्रे मतिं वधे।। | 2-24-38a 2-24-38b |
ततस्तमजितं जेतुं जरासन्दं वृकोदरः। संरम्भाद्बलिनां श्रेष्ठो जग्राह कुरुनन्दनः।। | 2-24-39a 2-24-39b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि जरासन्धवधपर्वणि चतुर्विशोऽध्यायः।। 24।। |
2-24-6 निर्वृतीर्वेदनानि च दुःखमूर्छयोः काले सुखसञ्ज्ञाकराणि।।
2-24-13 कक्षैः दोर्मूलैः ।। 2-24-16 ग्रथिताङ्गुलिभ्यां हस्ताभ्यां परशिरसः पीडने पूर्णकुम्भः।। 2-24-20 तक्षवन्तौ ग्रात्रसङ्कोचवन्तौ।।
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