महाभारतम्-02-सभापर्व-030
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भीमेन प्राचीदिग्विजये पाञ्चालदेशगमनम्।।
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वैशम्पायन उवाच। | 2-30-1x |
एतस्मिन्नेव काले तु भीमसेनोऽपि वीर्यवान्। धर्मराजमनुज्ञाप्य ययौ प्राचीं दिशं प्रति।। 5 | 2-30-1a 2-30-1b |
महता बलचक्रेण परराष्ट्रावमर्दिना। हस्त्यश्वरथपूर्णेन दंशितेन प्रतापवान्। | 2-30-2a 2-30-2b |
वृतो भरतशार्दूलो द्विषच्छोकविवर्धनः। स गत्वा नरशार्दूलः पञ्चालानां पुरं महत्।। | 2-30-3a 2-30-3b |
पञ्चालान्विविधोपायैः सान्त्वयामास पाण्डवः। `किञ्चित्करं समादाय विदेहानां पुरं ययौ'।। ततः स गण्डकाञ्शूरो विदेहान्भरतर्षभः।। | 2-30-4a 2-30-4b 2-30-4c |
विजित्याल्पेन कालेन दशार्णानजयत्प्रभुः। तत्र दाशार्णको राजा सुधर्मा रोमहर्षणम्। कृतवान्भीमसेनेम महद्युद्धं निरायुधम्। | 2-30-5a 2-30-5b 2-30-5c |
भीमसेनस्तु तद्दृष्ट्वा तस्य कर्म महात्मनः। अधिसेनापतिं चक्रे सुधर्माणं महाबलम्।। | 2-30-6a 2-30-6b |
ततः प्राचीं दिशं भीमो ययौ भीमपराक्रमः। सैन्येन महता राजन्कम्पयन्निव मेदिनीम्।। | 2-30-7a 2-30-7b |
सोऽश्वमेधेश्वरं राजन्रोचमानं सहानुगम्। जिगाय समरे वीरो बलेन बलिनां वरः।। | 2-30-8a 2-30-8b |
स तं निर्जित्य कौन्तेयो नातितीव्रेण कर्मणा। पूर्वदेशं महावीर्यं विजिग्ये कुरनन्दनः।। | 2-30-9a 2-30-9b |
ततो दक्षिणमागम्य पुलिन्दनगरं महत्। सुकुमारं वशे चक्रे सुमित्रं च नराधिपम्।। | 2-30-10a 2-30-10b |
ततस्तु धर्मराजस्य शासनाद्भरतर्षभः। शिशुपालं महावीर्यमभ्यगाज्जनमेजय।। | 2-30-11a 2-30-11b |
चेदिराजोऽपि तच्छ्रुत्वा पाण्डवस्य चिकीर्षितम्। उपनिष्कम्य नगरात्प्रत्यगृह्णात्परन्तप।। | 2-30-12a 2-30-12b |
तौ समेत्य महाराज कुरुचेदिवृषौ तदा। उभयोरात्मकुलयोः कौशलं पर्यपृच्छताम्।। | 2-30-13a 2-30-13b |
ततो निवेद्य तद्राष्ट्रं चेदिराजो विशाम्पते। उवाच भीमं प्रहसन्किमिदं कुरुषेऽनघ। | 2-30-14a 2-30-14b |
तस्य भीमस्तदाचख्यौ धर्मराजचिकीर्षितम्। स च तं प्रतिगृह्यैव तथा चक्रे नराधिपः।। | 2-30-15a 2-30-15b |
ततो भीमस्तत्र राजन्निषित्वा त्रिदशाः क्षपाः। सत्कृतः शिशुपालेन ययौ सबलवाहनः।। | 2-30-16a 2-30-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि दिग्विजयपर्वणि त्रिंशोऽध्यायः।। 30।। |
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