महाभारतम्-02-सभापर्व-054
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रामकृष्णयोः विद्याभ्यासार्थं सान्दीर्पिन्याचार्यसमीपगमनम्।। 1।। सान्दीपिनिना गुरुदक्षिणात्वेन मृतपुत्रानयनं चोदितेन कृष्णेन स्वेनोज्जीवि तस्य पुत्रस्य समर्पणम्।।2।। कंसपराक्रमादिवर्णनम्।। 3।। कृष्णेन जरासन्धपराजयः।। 4।।
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भीष्म उवाच।। | 2-54-1x |
ततस्तौ जग्मतुस्तत्र गुरुं सान्दीपिनिं पुनः। गुरुशुश्रूषणायुक्तौ धर्मज्ञौ धर्मचारिणौ।। | 2-54-1a 2-54-1b |
व्रतमुग्रं महात्मानौ विचरन्ताववन्तिषु। अहोरात्रैश्चतुष्पष्ट्या साङ्गान्वेदानवापतुः।। | 2-54-2a 2-54-2b |
लेख्यं च गणितं चोभौ प्राप्नुतां यदुनन्दनौ। गान्धर्ववेदं वैद्यं च सकलं समावापतुः।। | 2-54-3a 2-54-3b |
हस्तिशिक्षामश्विशिक्षां द्वादशाहेन चाप्नुताम्। तावुभौ जग्मतुर्वीरौ गुरुं सान्दीपिनिं पुनः।। | 2-54-4a 2-54-4b |
धनुर्वेदचिकीर्षार्थं धर्मज्ञौ धर्मचारिणौ। ताविष्वासवराचार्यमभिगम्य प्रणम्य च।। | 2-54-5a 2-54-5b |
तेन वै सत्कृतौ राजंश्चरन्तौ ताववन्तिषु। पञ्चाशद्भिरहोरात्रैर्दशाङ्गं सुप्रतिष्ठितम्।। | 2-54-6a 2-54-6b |
सरहस्यं धनुर्वेदं सकलं ताववापतुः। दृष्ट्वा कृतार्थो विप्रेन्द्रो गुर्वर्थे तावचोदयत्।। | 2-54-7a 2-54-7b |
अयाचतार्थं गोविन्दं तदा सान्दीपिनिर्विभुम्। मम पुत्रः समुद्रेऽस्मिंस्तिमिना चापवाहितः।। | 2-54-8a 2-54-8b |
पुत्रमानय भद्रं ते भक्षितं तिमिना मम। आर्ताय गुरवे तत्र प्रतिशुश्राव दुष्करम्।। | 2-54-9a 2-54-9b |
अशक्यं सर्वभूतेषु कर्तुमन्येन केनचित्। यश्च सान्दीपिनेः पुत्रं जहार भरतर्षभ।। | 2-54-10a 2-54-10b |
सोऽसुरः समरे ताभ्यां समुद्रे विनिपातितः। ततः सान्दीपिनेः पुत्रः प्रसादादमितौजसः।। | 2-54-11a 2-54-11b |
दीर्घकालं कृतः प्रेतः पुनरासीच्छरीरवान्। तदशक्यमचिन्त्यं च दृष्ट्वा सुमहदद्भुतम्।। | 2-54-12a 2-54-12b |
सर्वेषामेव भूतानां विस्मयः समजायत। आसनानि च सर्वाणि गवाश्वं च धनादिकम्।। | 2-54-13a 2-54-13b |
सर्वं तदुपजहाते गुरवे रामकेशवौ। गदापरिघयुद्धे च सर्वास्त्रेषु च केशवः।। | 2-54-14a 2-54-14b |
परमां मुख्यतां प्राप्तः सर्वलोकेषु विश्रुतः। कश्च नारायणादन्यः सर्वरत्नविभूषितम्।। | 2-54-15a 2-54-15b |
रथमादित्यसङ्काशमातिष्ठेत शचीपतेः। कस्य चाप्रतिमो यन्ता वज्रपाणेः प्रियः सखा।। | 2-54-16a 2-54-16b |
मातलिः सङ्गृहीता स्यादन्यत्र पुरुषोत्तमात्। भोजराजात्मजो वापि कंसस्तात युधिष्ठिर।। | 2-54-17a 2-54-17b |
अस्त्रजाते बले वीर्ये कार्तवीर्यसमोऽभवत्। तस्य भोजपतेः पुत्राद्भोजराजन्यवर्धनात्।। | 2-54-18a 2-54-18b |
उद्विजन्ते स्म राजानः सुपर्णादिव पन्नगाः। चित्रकार्मुकनिस्त्रिंशविमलप्रासयोधिनः।। | 2-54-19a 2-54-19b |
शतं शतसहस्राणि पादातास्तस्य भारत। अष्टौ शतसहस्राणि शूराणामनिवर्तिनाम्।। | 2-54-20a 2-54-20b |
अभवन्भोजराजस्य जाम्बूनदमया ध्वजाः। रुक्मकाञ्चनकक्ष्यास्तु रथास्तस्य युधिष्ठि।। | 2-54-21a 2-54-21b |
अभवन्भोजपुत्रस्य द्विपास्तावद्धि तद्बलम्। चित्रकार्मुकनिस्त्रिंशविमलप्रासयोधिनाम्।। | 2-54-22a 2-54-22b |
षोडशाश्वसहस्राणि किंशुकाभानि तस्य वै। अपरस्तु महाव्यूहः किशोरणां युधिष्ठिर।। | 2-54-23a 2-54-23b |
आरोहवरसम्पन्नो दुर्धर्षः केनचिद्बलान्। स च षोडशसाहस्रः कंसभ्रातृपुरः सरः।। | 2-54-24a 2-54-24b |
सुनामा सर्वतस्त्वेनं स कंसं पर्यपालयत्। सगणो मिश्रको नाम षष्टिमसाहस्र उच्यते।। | 2-54-25a 2-54-25b |
कंसरोषमहावेगां वैवस्वतवशानुगाम्।। मत्तद्विपमहाग्राहां वैवस्वतवशानुगाम्।। | 2-54-26a 2-54-26b |
शस्रजालमहाफेनां सादिवेगमहाजलाम्। गदापरिघपाठीनां नानाकवचशैवलाम्।। | 2-54-27a 2-54-27b |
रथनागमहावर्तां नानारुधिरकर्दमाम्। चित्रकार्मुककल्लोलां रथाश्वकलिलह्रदाम्।। | 2-54-28a 2-54-28b |
महामृधनदीं घोरां योधावर्तननिस्वनाम्। कोऽन्यो नारायणादेत्य कंसहन्ता युधिष्ठिर।। | 2-54-29a 2-54-29b |
एष शक्ररथे तिष्ठंस्तान्यनीकानि भारत। व्यधमद्भोजपुत्रस्य महाभ्राणीव मारुतः।। | 2-54-30a 2-54-30b |
तं सभास्थं सहामात्यं हत्वा कंसं सहान्वयम्। आनयामास मानार्हां देवकीं समुहृद्गणाम्।। | 2-54-31a 2-54-31b |
यशोदां रोहिणीं चैव अभिवाद्य पुनः पुनः। उग्रसेनं च राजानमभिषिच्य जनार्दनः।। | 2-54-32a 2-54-32b |
अर्चितो यदुमुख्यैश्च भगवान्वासवानुजः। ततः पार्थिवमायान्तं सहितं सर्वराजभिः। सरस्वत्यां जरासन्धमजयत्पुरुषोत्तमः।। | 2-54-33a 2-54-33b 2-54-33c |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि चतुः पञ्चाशोऽध्यायः।। 54।। |
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