महाभारतम्-02-सभापर्व-056
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कृष्णस्य नरकं निहत्य तदीयधनरत्नादिकं शतोत्तरषोडशसहस्रस्त्रीसहितं मणिपर्व तं च गरुडमारोप्य स्वर्गलोकगमनम्।। 1।। रामकृष्णयोः अदित्यै कुण्डलादिकं दत्त्वा अदितिशचीभ्यां सत्कृतया सत्यभामया सह द्वारकां प्रत्यागमनम्।। 2।।
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भीष्म उवाच।। | 2-56-1x |
निहत्य नरकं भौमं सत्यभामासहायवान्। सहितो लोकपालैश्च ददर्श नरकालयम्।। | 2-56-1a 2-56-1b |
अथास्य गृहमासाद्य नारकस्य महात्मनः। ददर्श धनमक्षय्यं रत्नानि विविधानि च। | 2-56-2a 2-56-2b |
मणिमुक्ताप्रवालानि वैडूर्यविकृतानि च। विस्ताराल्पांश्चार्कमणीन्विपुलान्स्फाटिकानपि।। | 2-56-3a 2-56-3b |
जाम्बूनदमयान्येव शातकुम्भमयानि च। प्रदीप्तज्वलनाभानि शीतरश्मिप्रभाणि च।। | 2-56-4a 2-56-4b |
हिरण्यवर्णं रुचिरं श्वेतमभ्यन्तरं गृहम्। तदक्षय्यं गृहे दृष्टं नरकस्य धनं बहु।। | 2-56-5a 2-56-5b |
न हि राज्ञः कुबेरस्य तावद्धनसमुच्छ्रयः। दृष्टपूर्वः पुरा साक्षान्महेन्द्रभवनेष्वपि।। | 2-56-6a 2-56-6b |
हते भौमे निशुम्भे च वासवः सगणोऽब्रवीत्। दाशार्हपतिमासीनमाहृत्य मणिकुण्डले।। | 2-56-7a 2-56-7b |
हेमसूत्रा महाकक्ष्यास्तोमरैर्वीर्यशालिनः। विमलानि पताकानि वासांसि विविधानि च।। | 2-56-8a 2-56-8b |
भीमरूपाश्च मातङ्गाः प्रवालविकृताः कुथाः। ते च विंशतिसाहस्रा द्वास्तावत्यः करेणवः।। | 2-56-9a 2-56-9b |
अष्टौ शतसहस्राणि देशजाश्चोत्तमा हयाः। गोभिश्चाविकृतैर्यावत्कामात्तव जनार्दन।। | 2-56-10a 2-56-10b |
एतत्ते प्रापयिष्याणि वृष्ण्यावासमरिन्दम। वसु यत्रिषु लोकेषु धर्मेणावर्जितं त्वया।। | 2-56-11a 2-56-11b |
भीष्म उवाच। | 2-56-12x |
देवगन्धर्वरत्नानि दैतेयासुरजानि च। यानि सन्ति हिरण्यानि नरकस्य निवेशने।। | 2-56-12a 2-56-12b |
एतत्तु गरुडे सर्वं क्षिप्रमारोप्य वासवः। दार्शार्हपतिना सार्धमुपायान्मणिपर्वतम्।। | 2-56-13a 2-56-13b |
चित्रग्रथितमेघाभः प्रबभौ मणिपर्वतः। हेमचित्रवितानैश्च प्रासादैरुपशोभितः।। | 2-56-14a 2-56-14b |
हर्म्याणि च विशालानि मणिसोपानवन्ति च। तत्रस्था वरवर्णिन्यो ददृशुर्मधुसूदनम्।। | 2-56-15a 2-56-15b |
गन्धर्वसुरमुख्यानां प्रिया दुहितरस्तदा। त्रिविष्टपसमे देशे तिष्ठन्तमपराजितम्।। | 2-56-16a 2-56-16b |
परिवव्रुर्महाबाहुमेकवेणीधराः स्त्रियः। पर्वाः काषायवासिन्यः सर्वाश्च नियतेन्द्रियाः।। | 2-56-17a 2-56-17b |
व्रतसन्तापजः शोके नात्र कश्चिदपीडयत्। अरजांसि च वासांसि बिभ्रत्यः कौशिकान्यपि।। | 2-56-18a 2-56-18b |
समेत्य यदुसिंहस्य चक्रुरस्याञ्जलिं स्त्रियः। ऊचुश्चैनं हृषीकेशं सर्वास्ताः कमलेक्षणाः।। | 2-56-19a 2-56-19b |
नारदेन समाख्यातमस्माकं पुरुषोत्तम। आगमिष्यति गोविन्दः सुरकार्यार्थसिद्धये।। | 2-56-20a 2-56-20b |
सोऽसुरं नरकं हत्वा निशुम्भं मुरमेव च। भौमं च सपरीवारं हयग्रीवं च दानवम्।। | 2-56-21a 2-56-21b |
तथा पञ्चजनं चैव प्राप्स्यते धनमक्षयम्। सोऽचिरेणैव कालेन युष्मन्मोक्ता भविष्यति।। | 2-56-22a 2-56-22b |
एवमुक्त्वागमद्धीरो देवर्षिर्नारदस्तथा। त्वां चिन्तयानाः सततं तपो घोरमुपास्महे।। | 2-56-23a 2-56-23b |
कालेऽतीते महाबाहुं कदा द्रक्ष्याम माधवम्। इत्येवं हृदि सङ्कल्पं कृत्वा पुरुषसत्तम। तपश्चराम सततं रक्ष्यमाणा हि दानवैः।। | 2-56-24a 2-56-24b 2-55-24c |
ततोऽस्मत्प्रियकामार्थं भगवान्मारुतोऽब्रवीत्। यथोक्तं नारदेनाथ न चिरात्तद्भविष्यति।। | 2-56-25a 2-56-25b |
भीष्ण उवाच।। | 2-56-26x |
तासां परमनारीणामृषभाक्षं पुरः स्थितम्। ददृशुर्देवगन्धर्वा गृष्टीनामिव गोपतिम्।। | 2-56-26a 2-56-26b |
तस्य चन्द्रोपमं वक्त्रमुदीक्ष्य मुदितेन्द्रियाः। सम्प्रहृष्टा महाबाहुमिदं वचनमब्रुवन्। | 2-56-27a 2-56-27b |
सत्यव्रत पुरा वायुरिदमस्मानिहाब्रवीत्। सर्वभूतहितज्ञश्च महर्षिरपि नारदः।। | 2-56-28a 2-56-28b |
विष्णुर्नारायणो देवः शङ्खचक्रगदासिभृत्। स भौमं नरकं हत्वा भर्ता वो भविता ध्रुवम्।। | 2-56-29a 2-56-29b |
दिष्ट्या तस्यर्षिमुख्यस्य नारदस्य महात्मनः। वचनादेव सत्यं नो भर्ता भवितुमर्हसि।। | 2-56-30a 2-56-30b |
यत्प्रियं बत पश्याम श्रुतं प्रियमरिन्दम। दर्शनेन कृतार्थाः स्मो वयमस्य महात्मनः।। | 2-56-31a 2-56-31b |
उवाच हि यदुश्रेष्ठः सर्वास्ता जातमन्मथाः। यथा ब्रूत विशालाक्ष्यस्तत्सर्वं वो भविष्यति।। | 2-56-32a 2-56-32b |
ततस्ता गरुडे सर्वाः सरत्नधनसञ्चयाः। क्षिप्रमारोपयाञ्चक्रे भगवान्देवकीसुतः।। | 2-56-33a 2-56-33b |
सपक्षिगणमातङ्गं सव्यालमृगपन्नगम्। शाखामृगगणैर्जुष्टं सप्रस्तरशिलातलम्।। | 2-56-34a 2-56-34b |
न्यङ्कुभिश्च वराहैश्च रुरुभिश्च निषेवितम्। सप्रपातमहासानुं विचित्रशिखिसङ्कुलम्।। | 2-56-35a 2-56-35b |
स महेन्द्रानुजः शौरिश्चकार गुरुडोपरि। पश्यतां सर्वभूतानामुत्पाट्य मणिपर्वतम्।। | 2-56-36a 2-56-36b |
उपेन्द्रं बलदेवं च वासवं च महाबलम्। स्वपक्षबलविक्षेपैर्महाद्रिशिखरोपमः।। | 2-56-37a 2-56-37b |
दिक्षु सर्वासु संरावं स चक्रे गरुडो वहन्। आरुजन्पर्वताग्राणि पादपांश्च समुत्क्षिपन्।। | 2-56-38a 2-56-38b |
सञ्जहार महाभ्राणि वैश्वानरपथं गतः। ग्रहनक्षत्रताराणां सप्तर्षीणां स्वतेजसा।। | 2-56-39a 2-56-39b |
प्रभाजालमतिक्रम्य चाश्विनोश्च परन्तप। प्राप्य पुण्यतमं स्थानं देवलोकमरिन्दमः।। | 2-56-40a 2-56-40b |
शक्रसद्म समासाद्य चावरुह्य जनार्दनः। सोऽभिवाद्यादितेः पादावर्चितः सर्वदैवतैः। ब्रह्मदक्षपुरोगैश्च प्रजापतिभिरेव च।। | 2-56-41a 2-56-41b 2-56-41c |
अदितेः कुण्डले दिव्ये ददावथ तदा विभुः। रत्नान च परार्घ्याणि रामेण सह केशवः।। | 2-56-42a 2-56-42b |
प्रतिगृह्य च तत्सर्वमदितिर्वासवानुजम्। पूजयामास दाशार्हं रामं च विगतज्वरा।। | 2-56-43a 2-56-43b |
शची महेन्द्रमहिषी कृष्णस्य महिषीं तदा। सत्यभामां तु सङ्गृह्य अदित्यै सा न्यवेदयत्।। | 2-56-44a 2-56-44b |
सा तस्याः सत्यभामायाः कृष्णाप्रियचिकीर्षया। वरं प्रादाद्देवमाता सत्यायै विगतज्वरा।। | 2-56-45a 2-56-45b |
जरां न यास्यसि शुभे यावत्कृष्णोऽस्ति भूतले। सर्वगन्धगुणोपेता भविष्यसि वरानने।। | 2-56-46a 2-56-46b |
विसृज्य सत्यभामा वै पौलोमीं च सुमध्यमा। शच्यापि समनुज्ञाता ययौ कृष्णनिवेशनम्।। | 2-56-47a 2-56-47b |
सम्पूज्यमानस्त्रिदशैर्महर्षिगणसेवितः। द्वारकां प्रययौ कृष्णो देवलोकादरिन्दमः।। | 2-56-48a 2-56-48b |
शीघ्रादेत्य महाबाहुर्दीर्घमध्वानमच्युतः। वर्घमानपुरद्वारमाससाद सुरोत्तमः।। | 2-56-49a 2-56-59b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि षट्पञ्चाशोऽध्यायः।। 56।। |
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