महाभारतम्-02-सभापर्व-072
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युधिष्ठिरेण व्यासादीनां पूजनम्।। 1।। राज्ञां युधिष्ठिरमामन्त्र्य स्वस्वदेशगमनम्।। 2।। श्रीकृष्णस्य युधिष्ठिरादीनामन्त्र्य द्वारकां प्रति गमनम्।। 3।।
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वैशम्पायन उवाच।। | 2-72-1x |
ततः स कुरुराजस्य सर्वकर्मसमृद्धिमान्। यज्ञः प्रीतिकरो राजन्संबभौ विपुलोत्सवः।। | 2-72-1a 2-72-1b |
शान्तविघ्नः सुखारम्भः प्रभूतधनधान्यवान्। अन्नवान्बहुभक्ष्यश्च केशवेन सुरक्षितः।। | 2-72-2a 2-72-2b |
समापयामास च तं राजसूयं महाक्रतुम्। `कोटिसहस्रं प्रददौ ब्राह्मणानां महात्मनाम्।। | 2-72-3a 2-72-3b |
न करिष्यति तं लोके कश्चिदन्यो महीपतिः। याजकाः सर्वकामैश्च सततं ततृपुर्धनैः।। | 2-72-4a 2-72-4b |
ततश्चावभृथस्नातः स राजा पाण्डुनन्दनः। व्यासं धौम्यं वसिष्ठं च नारदं च महामुनिम्।। | 2-72-5a 2-72-5b |
सुमन्तु जैमिनिं पैलं वैशम्पायनमेव च। याज्ञवल्क्यं च कपिलं कपालं कौशिकं तथा। सर्वांश्च ऋत्विक्प्रवरान्पूजयामास सत्कृतान्।। | 2-72-6a 2-72-6b 2-72-6c |
युधिष्ठिर उवाच।। | 2-72-7x |
युष्मत्प्रसादात्प्राप्तोऽयं राजसूयो महाक्रतुः। जनार्दनप्रसादाद्धि सम्पूर्णो मे मनोरथः।। | 2-72-7a 2-72-7b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-72-8x |
अथ यज्ञं समाप्यान्ते पूजयामास माधवम्। बलदेव च देवेशं भीष्माद्यांश्च कुरूद्वहान्'।। | 2-72-8a 2-72-8b |
ततस्त्ववभृथस्नातं धर्मात्मानं युधिष्ठिरम्। समस्तं पार्थिवं क्षत्रमुपगम्येदमब्रवीत्।। | 2-72-9a 2-72-9b |
दिष्ट्या वर्धसि धर्मज्ञ साम्राज्यं प्राप्तवानसि। आजमीढाजमीढानां यशः संवर्धितं त्वया।। | 2-72-10a 2-72-10b |
कर्मणैतेन राजेन्द्र धर्मश्च सुमहान्कृतः। आपृच्छामो नरव्याघ्र सर्वकामैः सूपूजिताः।। | 2-72-11a 2-72-11b |
स्वराष्ट्राणि गमिष्यामस्तदनुज्ञातुमर्हसि। श्रुत्वा तु वचनं राज्ञां धर्मराजो युधिष्ठिरः।। | 2-72-12a 2-72-12b |
यथार्हं पूज्य नृपतीन्भ्रातॄन्सर्वानुवाच ह। राजानः सर्व एवैते प्रीत्याऽस्मान्प्तमुपागताः।। | 2-72-13a 2-72-13b |
प्रस्थिताः स्वानि राष्ट्राणि मामापृच्छय परन्तपाः। अनुव्रजत भद्रं वो विषयान्तं नृपोत्तमान्।। | 2-72-14a 2-72-14b |
भ्रातुर्वचनमाज्ञाय पाण्डवा धर्मचारिणः। यथार्हं नृपतीन्सर्वानेकैकं समनुव्रजन्।। | 2-72-15a 2-72-15b |
विरायटमन्वायात्तूर्णं धृष्टह्युम्नः प्रतापवान्। धनञ्जयो यज्ञसेनं महात्मानं महारथम्।। | 2-72-16a 2-72-16b |
भीष्मं च धृतराष्ट्रं च भीमसेनो महाबलः। द्रोणं तु ससुतं वीरं सहदेवो युधां पतिः।। | 2-72-17a 2-72-17b |
नकुलः सुबलं राजन्सहपुत्रं समन्वयात्। द्रौपदेयाः ससौभद्राः पार्वतीयान्महारथान्।। | 2-72-18a 2-72-18b |
अन्वगच्छंस्तथैवान्यान्क्षत्रियान्क्षत्रियर्षभाः। एवं सुपूजिताः सर्वे जग्मुर्विप्राः सहस्रशः।। | 2-72-19a 2-72-19b |
गतेषु पार्थिवेन्द्रेषु सर्वेषु ब्राह्मणेषु च। युधिष्ठिरमुवाचेदं वासुदेवः प्रतापवान्।। | 2-72-20a 2-72-20b |
आपृच्छे त्वां गमिष्यामि द्वारकां कुरुनन्दन। राजसूयं क्रतुश्रेष्ठं दिष्ट्या त्वं प्राप्तवानसि।। | 2-72-21a 2-72-21b |
तमुवाचैवमुक्तस्तु धर्मराजो जनार्दनम्। तव प्रसादाद्गोविन्द प्राप्तः क्रतुवरो मया।। | 2-72-22a 2-72-22b |
क्षत्रं समग्रमपि च त्वत्प्रसादाद्वशे स्थितम्। उपादाय बलिं मुख्यं मामेव समुपस्थितम्।। | 2-72-23a 2-72-23b |
कथं त्वद्गमनार्थं मे वाणी वितरतेऽनघ।। | 2-72-24a |
न ह्यहं त्वामृते वीरं रतिं प्राप्नोमि कर्हचित्। अवश्यं चैव गन्तव्या भवता द्वारका पुरी।। | 2-72-25a 2-72-25b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-72-26x |
एवमुक्तः स धर्मात्मा युधिष्ठिरसहायवान्। अभिगम्याब्रवीत्प्रीतः पृथां पृथुयशा हरिः।। | 2-72-26a 2-72-26b |
साम्राज्यं समनुप्राप्ताः पुत्रास्तेऽद्य पितृष्वसः। सिद्धार्था वसुमन्तश्च सा त्वं प्रीतिमवाप्नुहि।। | 2-72-27a 2-72-27b |
अनुज्ञातस्त्वया चाहं द्वारकां गन्तुमुत्सहे। सुभद्रां द्रौपदीं चैव सभाजयत केशवः।। | 2-72-28a 2-72-28b |
निष्क्रम्यान्तः पुरात्तस्माद्युधिष्ठिरसहायवान्। स्नातश्च कृतजप्यश्च ब्राह्मणान्स्वस्ति वाच्य च।। | 2-72-29a 2-72-29b |
ततो मेघवपुः प्रग्व्यं स्यन्दनं च सुकल्पितम्। योजयित्वा महाबाहुर्दारुकः समुपस्थितः।। | 2-72-30a 2-72-30b |
उपस्थितं रथं दृष्ट्वा तार्क्ष्यप्रवरकेतनम्। प्रदक्षिणमुपावृत्य समारुह्य महामनाः।। | 2-72-31a 2-72-31b |
प्रययौ पुण्डरीकाक्षस्ततो द्वारवतीं पुरीम्।। | 2-72-32a |
तं पद्भ्यामनुवव्राज धर्मराजो युधिष्ठिरः। भ्रातृभिः सहितः श्रीमान्वासुदेवं महाबलम्।। | 2-72-33a 2-72-33b |
ततो मुहूर्तं सङ्गृह्य स्यन्दनप्रवरं हरिः। अब्रवीत्पुण्डरीकाक्षः कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्।। | 2-72-34a 2-72-34b |
अप्रमत्तः स्थितो नित्यं प्रजाः पाहि विशाम्पते। पर्जन्यमिव भूतानि महाद्रुममिव द्विजाः।। | 2-72-35a 2-72-35b |
बान्धवास्त्वोपजीवन्तु सहस्राक्षमिवामराः। कृत्वा परस्परेणैव संवादं कृष्णपाण्डवौ।। | 2-72-36a 2-72-36b |
अन्योन्यं समनुज्ञाप्य जग्मतुः स्वगृहान्प्रति। गते द्वारवतीं कृष्णे सात्वतप्रवरे नृप।। | 2-72-37a 2-72-37b |
महादुर्योधनो राजा शकुनिश्चापि सौबलः। `सूतपुत्रश्च गधेयः सह दुःशासनादिभिः।। | 2-72-38a 2-72-38b |
सर्वकामगुणोपेतैरर्च्यमानास्तु भारत'। तस्यां सभायां दिव्यायामवसंस्तत्र पाण्डवैः।। | 2-72-39a 2-72-39b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि शिशुपालवधपर्वणि द्विसप्ततितमोऽध्यायः।।72 ।। |
2-72-28 सभाजयत प्रीणितवान्।।
सभापर्व-071 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-073 |