महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-232
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स्कन्दस्य देवसैनापत्येऽभिषेकानन्तरं महादेवस्य पार्वत्या सह भद्रवटंप्रति प्रस्थानम् ।। 1 ।। तदेन्द्रादिभिर्दिक्पालैः ससैन्यैस्तमनु प्रस्थानम् ।। 2 ।। तदा रुद्रेण स्कन्दस्य देवसैनापत्ये नियोजनम् ।। 3 ।। ततो देवासुराणां महायुद्धम्। तत्रस्कन्देन महिषासुरसंहारः ।। 4 ।।
महाभारतस्य पर्वाणि |
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मार्कण्डेय उवाच। | 3-232-1x |
यदाऽभिषिक्तो भगवान्सैनापत्ये तु पावकिः। तदा संप्रस्थितः श्रीमान्हृष्टो भद्रवटं हरः ।। | 3-232-1a 3-232-1b |
रथेनादित्यवर्णेन पार्वत्या सहितः प्रभुः। `अनुयातः सुरैः सर्वैः सहस्राक्षपुरोगमैः' ।। | 3-232-2a 3-232-2b |
सहस्रं तस्य सिंहानां तस्मिन्युक्तं रथोत्तमे। उत्पपात दिवं शुभ्रं कालेनाभिप्रचोदितम् ।। | 3-232-3a 3-232-3b |
तेपिबन्त इवाकाशं त्रासयन्तक्षराचरान्। सिंहा नभस्यगच्छन्त नदन्तश्चारुकेसराः ।। | 3-232-4a 3-232-4b |
तस्मिन्रथे पशुपतिः स्थितो भात्युमया सह। विद्युता सहितः सूर्यः सेन्द्रचापे घने यथा ।। | 3-232-5a 3-232-5b |
अग्रतस्तस्य भगवान्धनेशो गुह्यकैः सह। आस्थाय रुचिरं याति पुष्पकं नरवाहनः ।। | 3-232-6a 3-232-6b |
ऐरावतं समास्थाय शक्रश्चापि सुरैः सह। पृष्ठतोऽनुययौ यान्तं वरदं वृषभध्वजम् ।। | 3-232-7a 3-232-7b |
जृम्भकैर्यक्षरक्षोभिः स्रग्विभिः समलंकृतः। यात्यमोघो महायक्षो दक्षिणं पक्षमास्थितः ।। | 3-232-8a 3-232-8b |
तस्य दक्षिणतो देवा बहवश्चित्रयोधिनः। गच्छन्ति वसुभिः सार्धं रुद्रैश्च सह संगताः ।। | 3-232-9a 3-232-9b |
यमश्च मृत्युना सार्धं सर्वतः परिवारितः। घोरैर्व्याधिशतैर्याति घोररूपवपुस्तथा ।। | 3-232-10a 3-232-10b |
यमस्य पृष्ठतश्चैव रघोरस्त्रिशिखरः शितः। विजयो नाम रुद्रस्य याति शूलः स्वलंकृतः ।। | 3-232-11a 3-232-11b |
तमुग्रपाशो वरुणो भगवान्सलिलेश्वरः। परिवार्य शनैर्याति यादोभिर्विविधैर्वृतः ।। | 3-232-12a 3-232-12b |
पृष्ठतोविजयस्यापि याति रुद्रस्य पट्टसः। गदामुसलशक्त्याद्यैर्वृतः प्रहरणोत्तमैः ।। | 3-232-13a 3-232-13b |
पट्टसं त्वन्वगाद्राजंश्छत्रं रौद्रं महाप्रभम्। कमण्डलुश्चाप्यनु तं महर्षिगणसेवितः ।। | 3-232-14a 3-232-14b |
तस्य दक्षिणतो भाति दण्डो गच्छञ्श्रिया वृतः। भृग्वङ्गिरोभिः सहितो दैधतैश्चानुपूजितः ।। | 3-232-15a 3-232-15b |
एषां तु पृष्ठतो रुद्रो विमले स्यन्दने स्थितः। याति संहर्षयन्सर्वांस्तेजसा त्रिदिवौकसः ।। | 3-232-16a 3-232-16b |
ऋषयश्चापि देवाश्च गन्धर्वा भुजगास्तथा। नद्यो ह्रदाःसमुद्राश्चतथैवाप्सरसां गणाः ।। | 3-232-17a 3-232-17b |
नक्षत्राणि ग्रहाश्चैवदेवानां शिशवश्च ये। स्त्रियश्च विविधाकारा यान्ति रुद्रस्य पृष्ठतः ।। | 3-232-18a 3-232-18b |
सृजन्त्यः पुष्पवर्षाणि चारुरूपा वराङ्गनाः। पर्जन्यश्चाप्यनुययौ नमस्कृत्य पिनाकिनम् ।। | 3-232-19a 3-232-19b |
छत्रं च पाण्डुरं सोमस्तस्य मूर्धन्यधारयत्। चामरे चापि वायुश्च गृहीत्वाऽग्निश्च धिष्ठितौ ।। | 3-232-20a 3-232-20b |
शक्रश्च पृष्ठतस्तस्य याति राजञ्छ्रिया वृतः। सहराजर्षिभिः सर्वैः स्तुवानो वृषकेतनम् ।। | 3-232-21a 3-232-21b |
गौरी विद्याऽथ गान्धारी केशिनी मित्रसाह्वया। सावित्र्या सह सर्वास्ताः पार्वत्या यान्ति पृष्ठतः ।। | 3-232-22a 3-232-22b |
तत्र विद्यागणाः सर्वेये केचित्कविभिः स्मृताः। तस्य कुर्वन्ति वचनं सेन्द्रा देवाश्चमूमुखे ।। | 3-232-23a 3-232-23b |
गृहीत्वा तु पताकां वै यात्यग्रे राक्षसो ग्रहः। व्यापृतस्तु श्मशाने यो नित्यं रुद्रस् वै सखा। पिङ्गलो नाम यक्षेन्द्रो लोकस्यानन्ददायकः ।। | 3-232-24a 3-232-24b 3-232-24c |
एबिश्च सहितो देवस्तत्रयाति यथासुखम्। अग्रतः पृष्ठतस्चैवं न हि तस्य गतिर्ध्रुवा ।। | 3-232-25a 3-232-25b |
रुद्रं सत्कर्मभिर्मर्त्याः पूजयन्तीह दैवतम्। शिवमित्येव यं प्राहुरीशं रुद्रं पिनाकिनम् ।। | 3-232-26a 3-232-26b |
`एवं सर्वे सुरगणास्तदा वै प्रीतमानसाः'। भावैस्तु विविधाकारैः पूजयन्ति महेश्वरम् ।। | 3-232-27a 3-232-27b |
कदेवसेनापतिस्त्वं देवसेनाभिरावृतः। अनुदच्छति देवेशं ब्रह्मण्यः कृत्तिकासुतः ।। | 3-232-28a 3-232-28b |
अथाब्रवीन्महासेनं महादेवो बृहद्वचः। सप्तमं मारुतस्कन्धं रक्ष नित्यमतन्द्रितः ।। | 3-232-29a 3-232-29b |
स्कन्द उवाच। | 3-232-30x |
सप्तमं मारुतस्कन्धं पालयिष्याम्यहं प्रभो। यदन्यदपि मे कार्यं देव तद्वद माचिरम् ।। | 3-232-30a 3-232-30b |
रुद्र उवाच। | 3-232-31x |
कार्येष्वहं त्वया पुत्र संद्रष्टव्यः सदैव हि। दर्शनान्मम भक्त्या च श्रेयः परमवाप्स्यसि ।। | 3-232-31a 3-232-31b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-232-25x |
इत्युक्त्वा विससर्जैनं परिष्यज्य महेश्वरः। `स्कन्दं सहोमया प्रीतो ज्वलन्तमिव तेजसा' ।। | 3-232-32a 3-232-32b |
विसर्जिते ततः स्कन्दे बभूवौत्पातिकं महत्। सहसैव महाराजदेवान्सर्वान्प्रमोहयत् ।। | 3-232-33a 3-232-33b |
जज्वाल स्वं सनक्षत्रं प्रमूढं भुवनं भृशम्। चचाल व्यनदच्चोर्वी तमोभूतं जगत्प्रभो ।। | 3-232-34a 3-232-34b |
ततस्तद्दारुणं दृष्ट्वा क्षुभितः शंकरस्तदा। उमा चैवमहाभाग देवाश्च समहर्षयः ।। | 3-232-35a 3-232-35b |
ततस्तेषु प्रमूढेषु पर्वताम्बुदसन्निभम्। नानाप्रहरणं घोरमदृश्यत महद्बलम् ।। | 3-232-36a 3-232-36b |
तद्वै घोरमसङ्ख्येयं गर्जच्च विविधा गिरः। अभ्यद्रवद्रणए देवान्भगवन्तं च शंकरम् ।। | 3-232-37a 3-232-37b |
तैर्विसृष्टान्यनीकेषु बाणजालान्यनेकशः। पर्वताश्च शतघ्न्यश्च प्रासासिपरिघा गदाः ।। | 3-232-38a 3-232-38b |
निपतद्भिश्च तैर्घोरैर्देवानीकं महायुधैः। क्षणेन व्यद्रवत्सर्वं विमुखं चाप्यदृश्यत ।। | 3-232-39a 3-232-39b |
निकृत्तयोधनागाश्वं कृत्तायुधमहारथम्। दानवैरर्दितं सैन्यं देवानां विमुखं बभौ ।। | 3-232-40a 3-232-40b |
असुरैर्वध्यमानं तत्पावकैरिव काननम्। अपतद्दग्धभूयिष्ठं महाद्रुमवनं तथा ।। | 3-232-41a 3-232-41b |
ते विभिन्नशिरोदेहाः प्राद्रवन्तो दिवौकसः। न नाथमधिगच्छन्ति वध्यमाना महारणे ।। | 3-232-42a 3-232-42b |
अथ तद्विद्रुतं सैन्यं दृष्ट्वा देवः पुरंदरः। आश्वासयन्नुवाचेदं बलभिद्दानवार्दितम् ।। | 3-232-43a 3-232-43b |
भयं त्यजत भद्रं व शूराः शस्त्राणि गृह्णत। कुरुध्वंविक्रमे बुद्धिं मा वः काचिद्व्यथा भवेत् ।। | 3-232-44a 3-232-44b |
जयतैनाम्सुदुर्वृत्तान्दानवान्घोरदर्शनान्। अभिद्रवत भद्रं वो मया सह महासुरान् ।। | 3-232-45a 3-232-45b |
शक्रस् वचनं श्रुत्वा समाश्वस्ता दिवौकसः। दानवान्प्रत्ययुध्यन्त शक्रं कृत्वा व्यपाश्रयम् ।। | 3-232-46a 3-232-46b |
ततस्ते त्रिदशाः सर्वेमरुतश्च महाबलाः। प्रत्युद्ययुर्महाभागाः साध्याश्च वसुभिः सह ।। | 3-232-47a 3-232-47b |
तैर्विसृष्टान्यनीकेषु क्रुद्धैः शस्त्राणि संयुगे। शराश्च दैत्यकायेषु पिबन्ति रुधिरं बहु ।। | 3-232-48a 3-232-48b |
तेषां देहान्विनिर्भिद्य शरास्ते निशितास्तदा। निपतन्तोऽभ्यदृश्यन्त नगेभ्य इव पन्नगाः ।। | 3-232-49a 3-232-49b |
तानि दैत्यशरीराणि निर्भिन्नानिस्म सायकैः। अपतन्भूतलेराजंश्छिन्नाभ्राणीव सर्वशः ।। | 3-232-50a 3-232-50b |
ततस्तद्दानवं सैन्यं सर्वैर्देवगणैर्युधि। त्रासितं विविधैर्बाणैः कृतंचैव पराङ्युखम् ।। | 3-232-51a 3-232-51b |
अथोत्क्रुष्टं तदा हृष्टैः सर्वैर्देवैरुदायुधैः। संहतानि च तूर्याणि प्रावाद्यन्त ह्यनेकशः ।। | 3-232-52a 3-232-52b |
एवमन्योन्रसंयुक्तं युद्धमासीत्सुदारुणम्। देवानां दानवानां च मांसशोणितकर्दमम् ।। | 3-232-53a 3-232-53b |
अनयो देवलोकस्य सहसैवाभ्यदृश्यत। तथहि दानवा घोरा विनिघ्नन्ति दिवौकसः ।। | 3-232-54a 3-232-54b |
ततस्तूर्यप्रणादाश्च भेरीणां च महास्वनाः। बभूवुर्दानवेन्द्राणां सिंहनादाश्च दारुणाः ।। | 3-232-55a 3-232-55b |
अथ दैत्यबलाद्घोरान्निष्पपात महाबलः। दानवो महिषो नाम प्रगृह्य विपुलं गिरिम् ।। | 3-232-56a 3-232-56b |
ते तं धनैरिवादित्यं दृष्ट्वासंपरिवारितम्। तमुद्यतगिरिं राजन्व्यद्रवन्त दिवौकसः ।। | 3-232-57a 3-232-57b |
अथाभिद्रुत्य महिषो देवांश्चिक्षेप तं गिरिम्। `महाकायं महाराज सतोयमिव तोयदम्' ।। | 3-232-58a 3-232-58b |
पतता तेन गिरिणा देवसैन्यस् पार्थिव। भीमरूपेण निहतमयुतं प्रापतद्भुवि ।। | 3-232-59a 3-232-59b |
अथ तैर्दानवैः सार्धं महिषस्त्रासयन्सुरान्। अभ्यद्रवद्रणे तूर्णं सिंहः क्षुद्रमृगानिव ।। | 3-232-60a 3-232-60b |
तमापतन्तं महिषं दृष्ट्वा सेन्द्रा दिवौकसः। व्यद्रवन्तरणे बीता विकीर्णायुधकेतनाः ।। | 3-232-61a 3-232-61b |
ततःस महिषः क्रुद्धस्तूर्णं रुद्ररथं ययौ। अभिद्रुत्य च जग्राह रुद्रस् रथकूवरम् ।। | 3-232-62a 3-232-62b |
यदा रुद्ररथं क्रुद्धो महिषः सहसा गतः। रेसतू रोदसी गाढं मुमुहुश् महर्षयः ।। | 3-232-63a 3-232-63b |
अनदंश्चमहाकाया दैत्या जलधरोपमाः। आसीच्चनिश्चितं तेषां जितमस्माभिरित्युत ।। | 3-232-64a 3-232-64b |
तथाभूते तु भगवानाहूय गुहमात्मजम्। `दौरात्म्यं पश्य पुतर् त्वं दानवस्य दुरात्मनः। जहि शीघ्रं दुराचारं द्रष्टुमिच्छामि ते बलम् ।। | 3-232-65a 3-232-65b 3-232-65c |
इत्युक्ताव भगवान्स्कन्दं परिपूज्य महेश्वरः। अयोजयन्निग्रहार्थं महिषस् गतायुषः'। सस्मार च तदा स्कन्दं मृत्युं तस्य दुरात्मनः ।। | 3-232-66a 3-232-66b 3-232-66c |
महिषोऽपि रथं दृष्ट्वा रौद्रं रुद्रस् चानदत्। देवान्संत्रासयंश्चापि दैत्यांस्चापिप्रहर्षयत् ।। | 3-232-67a 3-232-67b |
ततस्तस्मिनभये घोरे देवानां समुपस्थिते। आजगाम महासेनः क्रोधात्सूर्य इव ज्वलन् ।। | 3-232-68a 3-232-68b |
लोहिताम्बरसंवीतो लोहितस्रग्विभूषणः। लोहिताश्वो महाबाहुर्हिरण्यकवचः प्रभुः ।। | 3-232-69a 3-232-69b |
रथमादित्यसंकाशमास्थितः कनकप्रभम्। तं दृष्ट्वा दैत्यसेना सा व्यद्रवत्सहसा रणे ।। | 3-232-70a 3-232-70b |
स चापि तां प्रज्वलितां महिषस् विदारिणीम्। मुमोच शक्तिं राजेनद्र महासेनो महाबलः ।। | 3-232-71a 3-232-71b |
सा मुक्ताऽभ्यहरत्तस्य महिषस्य शिरो महत्। पपात भिन्ने शिरसि महिषस्त्यक्तजीवितः ।। | 3-232-72a 3-232-72b |
पतता शिरसा तेन द्वारं षोडशयोजनम्। पर्वताभेन पिहितं तदाऽगम्यं ततोऽभवत्। उत्तराः कुरवस्तेन गच्छन्त्यद्य यथासुम् ।। | 3-232-73a 3-232-73b 3-232-73c |
क्षिप्ताक्षिप्ता तु सा शक्तिर्हत्वा शत्रून्सहस्रशः। स्कन्दहस्तमनुप्राप्ता दृश्यते देवदानवैः ।। | 3-232-74a 3-232-74b |
प्रायः शरैर्विनिहता महासेनेन धीमता। शेषा दैत्यगणा घोरा भीतास्त्रस्ता दुरासदैः। स्कन्दपारिषदैर्हत्वा भक्षिताश्च सहस्रशः ।। | 3-232-75a 3-232-75b 3-232-75c |
दनवान्भक्षयन्तस्ते प्रपिबन्तश्च शोणितम्। क्षणान्निर्दानवं सर्वमकार्षुर्भृशहर्षिताः ।। | 3-232-76a 3-232-76b |
तमांसीवयथा सूर्यो वृक्षानग्निर्घनान्खगः। तथास्कन्दोऽजयच्छत्रून्स्वेन वीर्येण कीर्तिमान् ।। | 3-232-77a 3-232-77b |
संपूज्यमानस्त्रिदशैरभिवाद्य महेश्वरम्। शुशुभे कृतिकापुत्रः प्रकीरणांशुरिवांशुमान् ।। | 3-232-78a 3-232-78b |
नष्टशत्रुर्यदा स्कन्दः प्रयातस्तु महेश्वरम्। तदाऽब्रवीन्महासेनं परिष्वज्य पुरंदरः ।। | 3-232-79a 3-232-79b |
ब्रह्मदत्तवरः स्कन्द त्वयाऽयं महिषो हतः। `हजय्यो युधि देवानां दानवः स महाबलः' ।। | 3-232-80a 3-232-80b |
देवास्तृणसमा यस्य वबूवुर्जयतांवर। सोऽयं त्वया महाबाहो शमितो देवकण्टकः ।। | 3-232-81a 3-232-81b |
शतं महिषतुल्यानां दानवानां त्वय रणे। निहतंदेवशत्रूणां यैर्वयं पूर्वतापिताः ।। | 3-232-82a 3-232-82b |
तावकैर्भक्षिताश्चान्ये दानवाः शतसङ्घशः। अजेयस्त्वं रणेऽरीणामुमापतिरिव प्रभुः ।। | 3-232-83a 3-232-83b |
एतत्ते प्रथमं देव ख्यातं कर्म भविष्यति। त्रिषु लोकेषु कीर्तिश्च तवाक्षय्या भविष्यति। वशगाश्च भविष्यनति सुरास्तव महाभुज ।। | 3-232-84a 3-232-84b 3-232-84c |
महासेनमेवमुक्त्वा निवृत्तः सह दैवतैः। अनुज्ञातो भगवता त्र्यम्बकेण शचीपतिः ।। | 3-232-85a 3-232-85b |
गतो भद्रवटंरुद्रो निवृत्ताश्च दिवौकसः। उक्ताश्च देवा रुद्रेण स्कन्दं पश्यत मामिव ।। | 3-232-86a 3-232-86b |
स हत्वा दानवगणान्पूज्यमानो महर्षिभिः। एकाह्नैवाजयत्सर्वं त्रैलोक्यं वह्निनन्दनः ।। | 3-232-87a 3-232-87b |
स्कन्दस् य इदं विप्रः पठेज्जन्म समाहितः। `शृणुयाद्ब्राह्मणेभ्यो यः श्रावयेद्वाविचेतनम् ।। | 3-232-88a 3-232-88b |
धनमायुर्यशो दीप्तिं पुत्राञ्शत्रुजयंतथा'। सपुष्टिमिहसंप्राप्य स्कन्दसालोक्यमाप्नुयात् ।। | 3-232-89a 3-232-89b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि मार्कण्डेयसमास्यापर्वणि द्वात्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 232 ।। |
3-232-8 जृम्भकैर्ग्रहविशेषैः भास्करैर्यक्षरक्षोभिः इति ध.पाठः ।। 3-232-23 विद्यागणाः स्तुतिपद्यसमूह्यः ।। 3-232-62 कूवरं धूःप्रदेशम् ।। 3-232-63 रेसतुः शब्दं चक्रतुः। रोदसी द्यावाभूमी ।।
आरण्यकपर्व-231 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-233 |