महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-242
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गन्धर्वैःसह कौरवाणामायोधनम् ।। 1 ।। चित्रसेनादिभिर्विरथीकृतेन कर्णेन रणाङ्कणात्पलायनम् ।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-242-1x |
ततस्ते सहिताः सर्वे दुर्याधनमुपागमन्। अब्रुवंश्च महाराज यदूचुः कौरवं प्रति ।। | 3-242-1a 3-242-1b |
गन्धर्वैर्वारिते सैन्ये धार्तराष्ट्रः प्रतापवान्। अमर्षपूर्णः सैन्यानि प्रत्यभाषत भारत ।। | 3-242-2a 3-242-2b |
शासतैनानधर्मज्ञान्मम विप्रियकारिणः। यदि प्रक्रीडते सर्वैर्देवैः सह शचीपतिः। `वयमत्र यथा प्रीता क्रीडिष्यामो निरङ्कुशं' ।। | 3-242-3a 3-242-3b 3-242-3c |
दुर्योधनवचः श्रुत्वा धार्तराष्ट्रा महाबलाः। सर्व एवाभिसन्नद्धा योधाश्चापि सहस्रशः ।। | 3-242-4a 3-242-4b |
ततः प्रमथ्य सर्वांस्तांस्तद्वनं विविशुर्बलात्। सिंहनादेन महता पूरयन्तो दिशो दश ।। | 3-242-5a 3-242-5b |
ततोऽपरैरवार्यन्त गन्धर्वैः कुरुसैनिकाः। `साम्नैव रतत्र विक्रान्ता मा साहसमिति प्रभो' ।। | 3-242-6a 3-242-6b |
ते वार्यमाणा गन्धर्वैः साम्नैव वसुधायिप। ताननादृत्य गन्धर्वांस्तद्वनं विविशुर्महत् ।। | 3-242-7a 3-242-7b |
यदि वाता न तिष्ठन्ति धार्तराष्ट्राः सराजकाः। ततस्ते खेचराः सर्वे चित्रसेने न्यवेदयन् ।। | 3-242-8a 3-242-8b |
गन्धर्वराजस्तान्सर्वानब्रवीत्कौरवान्प्रति। अनार्याञ्शासतेत्येतांश्चित्रसेनोऽत्यमर्षणः ।। | 3-242-9a 3-242-9b |
अनुज्ञाताश्च गन्धर्वाश्चित्रसेनेन भारत। प्रगृहीतायुधाः सर्वे धार्तराष्ट्रानभिद्रवन् ।। | 3-242-10a 3-242-10b |
तान्दृष्ट्वाऽऽपततः शीघ्रान्गन्धर्वानुद्यतायुधान्। प्राद्रवंस्ते दिशः सर्वे धार्तराष्ट्रस्य पश्यतः ।। | 3-242-11a 3-242-11b |
तान्दृष्ट्वा द्रवतः सर्वान्धार्तराष्ट्रान्पराङ्मुखान्। राधेयस्तु तदा वीरो नासीत्तत्रपराङ्मुखः ।। | 3-242-12a 3-242-12b |
आपतन्तीं तु संप्रेक्ष्य गन्धर्वाणां महाचमूम्। महता शरवर्षेण राधेयः प्रत्यवारयत् ।। | 3-242-13a 3-242-13b |
क्षुरप्रैर्विशिखैर्भल्लैर्वत्सदन्तैस्तथाऽऽयसैः। गन्धर्वाञ्शतशोऽभिघ्नँल्लघुत्वात्सूतनन्दनः ।। | 3-242-14a 3-242-14b |
पातयन्नुत्तमाङ्गानि गन्धर्वाणां महारथः। क्षणएन व्यधमत्सर्वां चित्रसेनस्य वाहिनीम् ।। | 3-242-15a 3-242-15b |
ते वध्यमाना गन्धर्वाः सूतपुत्रेण धीमता। भूय एवाभ्यवर्तन्त शततशोऽथ सहस्रशः ।। | 3-242-16a 3-242-16b |
गन्धर्वभूता पृथिवी क्षणेन समपद्यत। आपतद्भिर्महावेगैश्चित्रसेनस्य सैनिकैः ।। | 3-242-17a 3-242-17b |
अथ दुर्योधनो राजा शकुनिश्चापि सौबलः। दुःशासनो विकर्णश्च ये चान्ये धृतराष्ट्रजाः। न्यहनंस्तत्तदा सैन्यं रथैर्गरुडनिःखनैः ।। | 3-242-18a 3-242-18b 3-242-18c |
सैन्यमायोधितं दृष्ट्वाकर्णो राजन्न मृष्यत ।। | 3-242-19a |
महता रथसङ्घेन रथचारेण चाप्युत। वैकर्तनं परीप्सन्तो गन्धर्वाः प्रत्यवारयन्। ततः संन्यपतन्सर्वे गन्धर्वाः कौरवं प्रति ।। | 3-242-20a 3-242-20b 3-242-20c |
तदा सुतुमुलं युद्धमभवद्रोमहर्षणम्। ततस्ते मृदवोऽभूवनगन्धर्वाः शरपीडिताः ।। | 3-242-21a 3-242-21b |
उच्चुक्रुशुश्च कौरव्यागन्धर्वान्प्रेक्ष्य पीडितान् ।। | 3-242-22a |
गन्धर्वांस्त्रासितान्दृष्ट्वा चित्रसेनो ह्यमर्षणः। उत्पपातासनात्क्रुद्धो वधे तेषां समाहितः ।। | 3-242-23a 3-242-23b |
ततो मायास्त्रमास्थाय युयुधे चित्रमार्गवित्। `वियत्संछादयामास न ववौ तत्र मारुतः' ।। | 3-242-24a 3-242-24b |
हस्त्यारोहा हताः पेतुर्हस्तिभिः सह भारत। हयारोहाः सह हयै रथैश्च रथिनस्तदा ।। | 3-242-25a 3-242-25b |
पत्तयश्च तथापेतुर्विशस्ताः शरवृष्टिभिः'। तयाऽमुह्यन्त कौरव्याश्चित्रसेनस्य मायया ।। | 3-242-26a 3-242-26b |
एकैको हि तदा योधो धार्तारष्ट्रस्य भारत। पर्यवार्यत गन्धर्वैर्दशभिर्दशभिर्युधि ।। | 3-242-27a 3-242-27b |
ततः संपीड्यमानास्ते बलेन महता तदा। प्राद्रवन्त रणे भीता यत्रराजा युधिष्ठिरः ।। | 3-242-28a 3-242-28b |
भज्यमानेष्वनीकेषु धार्तराष्ट्रेषु सर्वशः। कर्णो वैकर्तनो राजंस्तस्थौ गिरिरिवाचलः ।। | 3-242-29a 3-242-29b |
दुर्योधनश्च तेजस्वी शकुनिश्चापि सौबलः। गन्धर्वान्योधयामासुः समरे भृशविक्षताः ।। | 3-242-30a 3-242-30b |
सर्व एव तु गन्धर्वाः शतशोऽथ सहस्रशः। जिघांसमानाः संरब्धाः कर्णमभ्यद्रवत्रणे ।। | 3-242-31a 3-242-31b |
असिभिः पट्टसैः शूलैर्गदाभिश्च महाबलाः। सूतपुत्रं जिघांसन्तः समन्तात्पर्यवारयन् ।। | 3-242-32a 3-242-32b |
अन्येऽस्य युगमच्छिन्दन्ध्वजमन्ये न्यपातयन्। ईषामन्ये हयानन्ये सूतमन्ये न्यपातयन् ।। | 3-242-33a 3-242-33b |
अन्ये च्छत्रं वरूथं च बन्धुरं च तथा परे। `अन्ये संचूर्णयामासुश्छत्रे चाक्षौ तथा परे ।।' | 3-242-34a 3-242-34b |
गन्धर्वा बहुसाहस्रास्तिलशो व्यधमन्रथम् ।। ततो रथादवप्लुत्य सूतपुत्रोऽसिचर्मभृत्। | 3-242-35a 3-242-35b |
`अंसावलम्बितधनुर्धावमानो महाबलः'। विकर्णरथमास्थाय मोक्षायाश्वानचोदयत् ।। | 3-242-36a 3-242-36b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि घोषयात्रापर्वणि द्विचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 242 ।। |
3-242-19 भूयश्च योधयामासुः कृत्वा कर्णमथाग्रतः। महता इति झ. पाठः। न मृष्यत नामृष्यत। अडभाव आर्षः ।। 3-242-34 वरूथं रथगुप्तिम्। बन्धुरं रथवन्धनानि ।।
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