महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-264
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दुर्वाससा दुर्योधनप्रार्थनासफलीकरणायाकाले पाण्डवान्प्रत्यन्नयाचनम् ।। 1 ।। तथा युधिष्ठिरानुमत्या शिष्यायुतेन सह स्नानाय नदींप्रति गमनम् ।। 2 ।। अत्रान्तरे द्रौपदीप्रार्थनया श्रीकृष्णेन तत्समीपागमनम् ।। 3 ।। तथा निवेदितदुर्वासोवृत्तान्तेन तेन स्वीयक्षुन्निवृत्तये द्रौपदीप्रत्यन्नयाचनम् ।। 4 ।। तयाऽन्नस्य शेषाभावे निवेदितेऽन्नस्यालीमानाय्य तत्कण्ठलग्नशाकपुलाकभक्षणएन सशिप्यस्य दुर्वाससस्तृप्तिजननम् ।। 5 ।। ततो भोजनाय भीमेनाह्वाने लजितस्य दुर्वाससो भर्याच्छिष्यैः सह पलायनम् ।। 6 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-264-1x |
ततः कदाचिद्दुर्वासाः सुखासीनांस्तु पाण्डवान्। भुक्त्वा चावस्थितां कृष्णां ज्ञात्वा तस्मिन्वने मुनिः। अभ्यागच्छत्परिवृतः शिष्यैरयुतसंमितैः ।। | 3-264-1a 3-264-1b 3-264-1c |
दृष्ट्वा यान्तं तमतिथिं स च राजा युधिष्ठिरः। जगामाभिमुखः श्रीमान्सह भ्रातृभिरच्युतः ।। | 3-264-2a 3-264-2b |
तस्मै बद्ध्वाञ्जलिं सम्यगुपवेश्य वरासने। विधिवत्पूजयित्वा तमातिथ्यन न्यमन्त्रयत्। आह्निकं भगवन्कृत्वा शीघ्रमेहीति चाब्रवीत् ।। | 3-264-3a 3-264-3b 3-264-3c |
जगाम च मुनिः सोपि स्नातुं शिष्यैः सहानघः। भोजयेत्सहशिष्यं मां कथमित्यविचिन्तयन् ।। | 3-264-4a 3-264-4b |
न्यमज्जत्सलिले चापि मुनिसङ्घः समाहितः ।। | 3-264-5a |
एतस्मिन्नन्तरे राजन्द्रौपदी योपितां वरा। चिन्तामवाप परमामन्नहेतोः पतिव्रता ।। | 3-264-6a 3-264-6b |
सा चिन्तयन्ती च यदा नान्नहेतुमविन्दत। मनसा चिन्तयामास कृष्णं कंसनिषूदनम् ।। | 3-264-7a 3-264-7b |
कृष्णकृष्ण महाबाहो देवकीनन्दनाव्यय। वासुदेव जगन्नाथ प्रणतार्तिविनाशन ।। | 3-264-8a 3-264-8b |
विश्वात्मन्विश्वजनक विश्वहर्तः प्रभोऽव्यय। प्रपन्नपाल गोपाल प्रजापाल परात्पर। आकूतीनां च चित्तीनां प्रवर्तक नताऽस्मि ते ।। | 3-264-9a 3-264-9b 3-264-9c |
वरेण्य वरदानन्त अगतीनां गतिप्रद। पुराणपुरुष प्राणमनोवृत्त्याद्यगोचर ।। | 3-264-10a 3-264-10b |
सर्वाध्यक्ष पराध्यक्ष त्वामहं शरणं गता। पाहि मां कृपया देव शरणागतवत्सल ।। | 3-264-11a 3-264-11b |
नीलोत्पलदलश्याम पद्मगर्भारुणेक्षण। पीताम्बरपरीधान लसत्कौस्तुभभूषण ।। | 3-264-12a 3-264-12b |
त्वमादिरन्तो भूतानां त्वमेव च परायणम्। परात्परतरं ज्योतिर्विश्वात्मा सर्वतोमुखः ।। | 3-264-13a 3-264-13b |
त्वामेवाहुः परं बीजं निधानं सर्वसंपदाम्। त्वया नाथेन देवेश सर्वापद्म्यो भयं न हि ।। | 3-264-14a 3-264-14b |
दुःशासनादहं पूर्वं सभायां मोचिता यथा। तथैव संकटादस्मान्मामुद्धर्तुमिहार्हसि ।। | 3-264-15a 3-264-15b |
वैशंपायन उवाच। | 3-264-16x |
एवं स्तुतस्तदा देवः कृष्णया भक्तवत्सलः। द्रौपद्याः संकटं ज्ञात्वा देवदेवो जगत्पतिः ।। | 3-264-16a 3-264-16b |
पार्स्वस्थां शयने त्यक्त्वा रुक्मिणीं केशवः प्रभुः। तत्राजगाम त्वरितो ह्यचिन्त्यगतिरीश्वरः ।। | 3-264-17a 3-264-17b |
ततस्तं द्रौपदी दृष्ट्वाप्रणम्य परया मुदा। अब्रवीद्वासुदेवाय मुनेरागमनादिकम् ।। | 3-264-18a 3-264-18b |
ततस्तामब्रवीत्कृष्णः क्षुधितोस्मि भृशातुरः। शीघ्रं भोजय मां कृष्णे पश्चात्सर्वं करिष्यसि ।। | 3-264-19a 3-264-19b |
निशम्य तद्वचः कृष्णा लज्जिता वाक्यमब्रवीत्। स्थाल्यां भास्करदत्तायामन्नं मद्भोजनावधि ।। | 3-264-20a 3-264-20b |
भुक्तवत्यस्म्यहं देव तस्मादन्नं न विद्यते। ततः प्रोवाच भगवान्कृष्णां कमललोचनः ।। | 3-264-21a 3-264-21b |
कृष्णे न नर्मकालोऽयं क्षुच्छ्रमेणातुरे मयि। शीघ्रं गच्छ मम स्थालीमानयित्वा प्रदर्शय ।। | 3-264-22a 3-264-22b |
इति निर्बन्धतः स्थालीमानाय्य स यदूद्वहः। स्थाल्याः कण्ठेऽथ संलग्नं शाकान्नं वीक्ष्यकेशवः ।। | 3-264-23a 3-264-23b |
उपयुज्याब्रवीदेनामनेन हरिरीश्वरः। विश्वात्मा प्रीयतां देवस्तुष्टश्चास्त्विति यज्ञभूक् ।। | 3-264-24a 3-264-24b |
आकारय मुनीञ्शीघ्रं भोजनायेति चाब्रवीत्। भीमसेनं महाबाहुः कृष्णः क्लेशविनाशनः ।। | 3-264-25a 3-264-25b |
ततो जगाम त्वरितो भीमसेनो महायशाः। आकारितुं तु तान्सर्वान्भोजनार्थं नृपोत्तम। स्नातुं गतान्देवनद्यां दुर्वासःप्रभृतीन्मुनीन् ।। | 3-264-26a 3-264-26b 3-264-26c |
ते चावतीर्णाः सलिले कृतवन्तोऽघमर्षणम्। दृष्ट्वोद्गारान्सान्नरसांस्तृप्त्या परमया युताः। उत्तीर्य सलिलात्तस्माद्दृष्टवन्तः परस्परम् ।। | 3-264-27a 3-264-27b 3-264-27c |
दुर्वाससमभिप्रेक्ष्यते सर्वे मुनयोऽब्रुवन्। राज्ञा हिकारयित्वाऽन्नं वयं स्नातुं समागताः ।। | 3-264-28a 3-264-28b |
आकण्ठतृप्ता विप्रर्षे किंस्विद्भुञ्जामहे वयम्। वृथा पाकः कृतोस्माभिस्तत्र किं करवामहे ।। | 3-264-29a 3-264-29b |
दुर्वासा उवाच। | 3-264-30x |
वृथा पाकेन राजर्षेरपराधः कृतो महान्। माऽस्मानधाक्षुर्दृष्ट्वैव पाण्डवाः क्रूरचक्षुषा ।। | 3-264-30a 3-264-30b |
स्मृत्वाऽनुभावं राजर्षेरम्बरीषस्य धीमतः। बिभेमि सुतरां विप्रा हरिपादाश्रयाज्जनात् ।। | 3-264-31a 3-264-31b |
पाण्डवाश्च महात्मानः सर्वे धर्मपरायणाः। शूराश्चकृतविद्याश्च व्रतिनस्तपसि स्थिताः ।। | 3-264-32a 3-264-32b |
सदाचाररता नित्यं वासुदेवपरायणाः। क्रुद्धास्ते निर्दहेयुर्वै तूलराशिमिवानलः। तत एतानपृष्ट्वैव शिष्याः शीघ्रं पलायत ।। | 3-264-33a 3-264-33b 3-264-33c |
वैशंपायन उवाच। | 3-264-34x |
इत्युक्तास्ते द्विजाः सर्वे मुनिना गुरुणा तदा। पाण्डवेभ्यो भृशं भीता दुद्रुवुस्ते दिशो दश ।। | 3-264-34a 3-264-34b |
भीमसेनो देवनद्यामपश्यन्मुनिसत्तमान्। तीर्थे ष्वितस्ततस्तस्या विचचार गवेषयन् ।। | 3-264-35a 3-264-35b |
तत्रस्थेभ्यस्तापसेभ्यः श्रुत्वा ताश्चैव विद्रुतान्। युधिष्ठिरमथाभ्येत्य तं वृत्तान्तं न्यवेदयत् ।। | 3-264-36a 3-264-36b |
ततस्ते पाण्डवाः सर्वे प्र्यागमनकाङ्क्षिणः। प्रतीक्षनतः कियत्कालं जितात्मानोऽवतस्थिरे ।। | 3-264-37a 3-264-37b |
निशीथेऽभ्येत्य चाकस्मादस्मान्स च्छलयिष्यति। कथं च निस्तरेमास्मात्कृच्छ्राद्दैवोपसादितात् ।। | 3-264-38a 3-264-38b |
इति चिन्तापरान्दृष्ट्वा निःश्वसन्तो मुहुर्मुहुः। उवाच वचनं श्रीमान्कृष्णः प्रत्यक्षतां गतः ।। | 3-264-39a 3-264-39b |
भवतामापदं ज्ञात्वा ऋषेः परमकोपनात्। द्रौपद्या चिन्तितः पार्था अहं सत्वरमागतः ।। | 3-264-40a 3-264-40b |
न भयं विद्यतेतस्मादृषेर्दुर्वाससोऽल्पकम्। तेजसा भवतां भीतः पूर्वमेव पलायितः ।। | 3-264-41a 3-264-41b |
धर्मनित्यास्तु ये केचिन्न ते सीदन्ति कर्हिचित्। आपृच्छे वो गमिष्यामि नियतं भद्रमस्तु वः ।। | 3-264-42a 3-264-42b |
वैशंपायन उवाच। | 3-264-43x |
श्रुत्वेरितं केशवस्य बभूवुः स्वस्थामानसाः। द्रौपद्या सहिताः पार्थास्तमूचुर्विगतज्वराः ।। | 3-264-43a 3-264-43b |
त्वया नाथेन गोविन्द दुस्तरामापदं विभो। तीर्णाः प्लवमिवासाद्य मज्जमाना महार्णवे ।। | 3-264-44a 3-264-44b |
स्वस्ति साधय भद्रं ते इत्याज्ञातो ययौ पुरीम् ।। | 3-264-45a |
पाण्डवाश्च महाभाग द्रौपद्या सहिताः प्रभो। ऊषुः प्रहृष्टमनसो विहरन्तो वनाद्वनम्। इति तेऽभिहितं राजन्यत्पृष्टोऽहमिह त्वया ।। | 3-264-46a 3-264-46b 3-264-46c |
एवंविधान्यलीकानि धार्तराष्ट्रैर्दुरात्मभिः। पाण्डवेषु वनस्थेषु प्रयुक्तानि वृथाऽभवन् ।। | 3-264-47a 3-264-47b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि द्रौपदीहरणपर्वणि चतुःषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 264 ।। |
3-264-6 एतस्मिन्नन्तरे काले ।। 3-264-9 आकूतीनां चित्तीनां चेति चेतोवृत्तिविशेषाणाम् ।। 3-264-25 सहदेव महाबाहुरिति झ. पाठः ।। 3-264-26 सहदेवो महायशा इति झ. पाठः ।। 3-264-35 सहदेवो देवनद्यामिति झ. पाठः ।। 3-264-47 अलीकान्यहितानि ।।
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