महाभारतम्-09-शल्यपर्व-022

← शल्यपर्व-021 महाभारतम्
नवमपर्व
महाभारतम्-09-शल्यपर्व-022
वेदव्यासः
शल्यपर्व-023 →

सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।।

  1. 001
  2. 002
  3. 003
  4. 004
  5. 005
  6. 005ब
  7. 006
  8. 007
  9. 008
  10. 009
  11. 010
  12. 011
  13. 012
  14. 013
  15. 014
  16. 015
  17. 016
  18. 017
  19. 018
  20. 019
  21. 020
  22. 021
  23. 022
  24. 023
  25. 024
  26. 025
  27. 026
  28. 027
  29. 028
  30. 029
  31. 030
  32. 031
  33. 032
  34. 033
  35. 034
  36. 035
  37. 036
  38. 037
  39. 038
  40. 039
  41. 040
  42. 041
  43. 042
  44. 043
  45. 044
  46. 045
  47. 046
  48. 047
  49. 048
  50. 049
  51. 050
  52. 051
  53. 052
  54. 053
  55. 054
  56. 055
  57. 056
  58. 057
  59. 058
  60. 059
  61. 060
  62. 061
  63. 062
  64. 063
  65. 064
  66. 065
  67. 066
सञ्जय उवाच। 9-22-1x
वर्तमाने तदा युद्धे घोररूपे भयानके।
अभज्यत बलं तत्र तव पुत्रस्य पाण्डवैः।।
9-22-1a
9-22-1b
तांस्तु सर्वानयन्तेन सन्निवार्य महारथाः।
पुत्रास्ते योधयामासुः पाण्डवानामनीकिनीम्।।
9-22-2a
9-22-2b
निवृत्ताः सहसा योधास्तव पुत्रजयैपिणः।
सन्निवृत्तेषु तेष्वेवं युद्धमासीत्सुदारुणम्।
तावकानां परेषां च देवासुररणोपभम्।।
9-22-3a
9-22-3b
9-22-3c
परेषां तावकानां च नासीत्कश्चित्पराङ्मुखः।। 9-22-4a
अनुमानेन युध्यन्ते सञ्ज्ञाभिश्च परस्परम्।
तेषां क्षयो महानासीद्युध्यतामितरेतरम्।।
9-22-5a
9-22-5b
ततो युधिष्ठिरो राजा क्रोधेन महता युतः।
जिगीषमाणः सङ्ग्रामे धार्तराष्ट्रान्सराजकान्।।
9-22-6a
9-22-6b
त्रिभिः शारद्वतं विद्व्वा रुक्मपुङ्खैः शिलाशितैः।
चतुर्भिर्निजघानाश्वान्कल्याणान्कृतवर्मणः।।
9-22-7a
9-22-7b
अश्वत्थामा तु हार्दिक्यमपोवाह यशस्विनम्।
अथ शारद्वतोऽष्टाभिः प्रत्यविध्यद्युधिष्ठिरम्।।
9-22-8a
9-22-8b
ततो दुर्योधनो राजा रथान्सप्तशतान्रणे।
प्रैषयद्यत्र राजाऽसौ धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।।
9-22-9a
9-22-9b
ते रथा रथिभिर्युक्ता मनोमारुतरंहसः।
अभ्यद्रवन्त सङ्ग्रामे कौन्तेयस्य रथं प्रति।।
9-22-10a
9-22-10b
ते समन्तान्महाराज परिवार्य युधिष्ठिरम्।
अदृश्यं सायकैश्चक्रुर्मेघा इव दिवाकरम्।।
9-22-11a
9-22-11b
तं दृष्ट्वा धर्मराजानं कौरवेयैस्तथावृतम्।
नामृष्यन्त सुसंरब्धाः शिखण्डिप्रमुखा रथाः।।
9-22-12a
9-22-12b
रथैरश्ववरैर्युक्तैः किङ्किणीजालसंवृतैः।
आजग्मुरथ रक्षन्तः कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्।।
9-22-13a
9-22-13b
ततः प्रववृते रौद्रः सङ्ग्रामः शोणितोदकः।
पाण्डवानां कुरूणां च यमराष्ट्रविवर्धनः।।
9-22-14a
9-22-14b
रथान्सप्तशतान्हत्वा कुरूणामाततायिनाम्।
पाण्डवाः सह पाञ्चालैः पुनरेवाभ्यवारयन्।।
9-22-15a
9-22-15b
तत्र युद्धं महच्चासीत्तव पुत्रस्य पाण्डवैः।
न च तत्तादृशं दृष्टं नैव चापि परिश्रुतम्।।
9-22-16a
9-22-16b
वर्तमाने तदा युद्धे निर्मर्यादे समन्ततः।
वध्यमानेषु योधेषु तावकेष्वितरेषु च।।
9-22-17a
9-22-17b
विनदत्सु च योधेषु शङ्खवर्यैश्च पूरितैः।
उत्क्रुष्टैः सिंहनादैश्च गर्जितैश्चैव धन्विनाम्।।
9-22-18a
9-22-18b
अतिप्रवृत्ते युद्धे च छिद्यमानेषु मर्मसु।
धावमानेषु योधेषु जयगृद्धिषु मारिष।।
9-22-19a
9-22-19b
संहारे सर्वतो जाते पृथिव्यां शोकसम्भवे।
वह्नीनामुत्तमस्त्रीणां सीमन्तोद्धरणे कृते।।
9-22-20a
9-22-20b
निर्मर्यादे महायुद्धे वर्तमाने सुदारुणे।
प्रादुरासन्विनाशाय तदोत्पाताः सुदारुणाः।।
9-22-21a
9-22-21b
चचाल शब्दं कुर्वाणा सपर्वतवना मही।
सदण्डाः सोल्मुका राजन्कीर्यमाणाः समन्ततः।।
9-22-22a
9-22-22b
उल्काः पेतुर्दिवो भूमावाहत्य रविमण्डलम्।
विष्वग्वाताः प्रादुरासन्नीचैः शर्करवर्षिणः।।
9-22-23a
9-22-23b
अश्रूणि मुमुचुर्नागा वेपथुं चास्पृशन्भृशम्।
एतान्धोराननादृत्य समुत्पातान्सुदारुणान्।।
9-22-24a
9-22-24b
पुनर्युद्धाय संयत्ताः क्षत्रियास्तस्थुरव्यथाः।
रमणीये कुरुक्षेत्रे पुण्ये स्वर्गं यियासवः।।
9-22-25a
9-22-25b
ततो गान्धारराजस्य पुत्रः शकुनिरब्रवीत्।
युध्यध्वमग्रतो यावत्पृष्ठतो हन्मि पाण्डवान्।।
9-22-26a
9-22-26b
ततो नः सम्प्रायातानां मद्रयोधास्तरस्विनः।
हृष्टाः किलाकिलाशब्दमकुर्वत परे तथा।।
9-22-27a
9-22-27b
अस्मांस्तु पुनरासाद्य लब्धलक्षा दुरासदाः।
शरासनानि धुन्वन्तः शरवर्षैरवाकिरन्।।
9-22-28a
9-22-28b
ततो हतं परैस्तत्र मद्रराजबलं तदा।
दुर्योधनबलं दृष्ट्वा पुनरासीत्पराङ्मुखम्।।
9-22-29a
9-22-29b
गान्धारराजस्तु पुनर्वाक्यमाह ततो बली।
निवर्तध्वमधर्मज्ञा युध्यध्वं किं सृतेन वः।।
9-22-30a
9-22-30b
अनीकं दशसाहस्रमश्वानां भरतर्षभ।
आसीद्गान्धारराजस्य विशालप्रासयोधिनाम्।।
9-22-31a
9-22-31b
बलेन तेन विक्रम्य वर्तमाने जनक्षये।
पृष्ठतः पाण्डवानीकमभ्यघ्नन्निशितैः शरैः।।
9-22-32a
9-22-32b
तदभ्रमिव वातेन क्षिप्यमाणं समन्ततः।
अभज्यत महाराज पाण्डूनां सुमहद्बलम्।।
9-22-33a
9-22-33b
ततो युधिष्ठिरः प्रेक्ष्य भग्नं स्वबलमन्तिकात्।
अभ्यनोदयदव्यग्रः सहदेवं महाबलम्।।
9-22-34a
9-22-34b
असौ सुबलपुत्रो नो जघनं पीड्य दंशितः।
सैन्यानि सूदयत्येष पश्य पाण्डव दुर्मतिः।।
9-22-35a
9-22-35b
गच्छ त्वं द्रौपदेयैश्च शकुनिं सौबलं जहि।
रथानीकमहं धक्ष्ये पाञ्चालसहितोऽनघ।।
9-22-36a
9-22-36b
गच्छन्तु कुञ्जराः सर्वे वाजिनश्च सह त्वया।
पादाताश्च त्रिसाहस्राः शकुनिं तैर्वृतो जहि।।
9-22-37a
9-22-37b
ततो गजाः सप्तशताश्चापपाणिभिरास्थिताः।
पञ्च चाश्वसहस्राणि सहदेवश्च वीर्यवान्।।
9-22-38a
9-22-38b
पादाताश्च त्रिसाहस्रा द्रौपदेयाश्च सर्वशः।
रणे ह्यभ्यद्रवंस्ते तु शकुनिं युद्धदुर्मदम्।।
9-22-39a
9-22-39b
ततस्तु सौबलो राजन्नभ्यतिक्रम्य पाण्डवान्।
जघान पृष्ठतः सेनां जयगृद्वः प्रतापवान्।।
9-22-40a
9-22-40b
अश्वारोहास्तु संरब्धाः पाण्डवानां तरस्विनाम्।
प्राविशन्सौबलानीकमभ्यतिक्रम्य तान्रथान्।।
9-22-41a
9-22-41b
ते तत्र सादिनः शूराः सौबलस्य महद्बलम्।
रणमध्ये व्यतिष्ठन्त शरवर्षैरवाकिरन्।।
9-22-42a
9-22-42b
तदुद्यतगदाप्रासमकापुरुषसेवितम्।
प्रावर्तत महद्युद्धं राजन्दुर्मन्त्रिते तव।।
9-22-43a
9-22-43b
उपारमन्त ज्याशब्दाः प्रेक्षका रथिनोऽभवन्।
न हि स्वेषां परेषां वा विशेषः प्रत्यदृश्यत।।
9-22-44a
9-22-44b
शूरबाहुविसृष्टानां शक्तीनां भरतर्षभ।
ज्योतिषामिव सम्पातमपश्यन्कुरुपाण्डवाः।।
9-22-45a
9-22-45b
ऋष्टिभिर्विमलाभिश्च तत्रतत्र विशाम्पते।
सम्पतन्तीभिराकाशमावृतं बह्वशोभत।।
9-22-46a
9-22-46b
प्रासानां पततां राजन्रूपमासीत्समन्ततः।
शलभानामिवाकाशे तदा भरतसत्तम।।
9-22-47a
9-22-47b
रुधिरोक्षितसर्वाङ्गा विप्रविद्धैर्नियन्तृभिः।
हयाः परिपतन्तिस्म शतशोऽथ सहस्रशः।।
9-22-48a
9-22-48b
अन्योन्यं परिपिष्टाश्च समासाद्य परस्परम्।
सुविक्षताः स्म दृश्यन्ते वमन्तो रुधिरं मुखैः।।
9-22-49a
9-22-49b
ततोऽभवत्तमो घोरं सैन्येन रजसा वृतम्।
तानपाक्रमतोऽद्राक्षं तस्माद्देशादरिन्दम।।
9-22-50a
9-22-50b
अश्वान्राजन्मनुष्यांश्च रजसा संवृते सति।
भूमौ निपतिताश्चान्ये वमन्तो रुधिरं बहु।।
9-22-51a
9-22-51b
केशाकेशि समालग्ना न शेकुश्चेष्टितुं नराः।
अन्योन्यमश्वपृष्ठेभ्यो विकर्षन्तो महाबलाः।।
9-22-52a
9-22-52b
मल्ला इव समासाद्य निजघ्नुरितरेतरम्।
अश्वैश्च व्यपकृष्यन्त बहवोऽत्र गतासवः।।
9-22-53a
9-22-53b
भूमौ निपतिताश्चान्ये बहवो विजयैषिणः।
तत्रतत्र व्यदृश्यन्त पुरुषाः शूरमानिनः।।
9-22-54a
9-22-54b
रक्तोक्षितैश्छिन्नभुजैरवकृष्टशिरोरुहैः।
व्यदृश्यत मही कीर्णा शतशोऽथ सहस्रशः।।
9-22-55a
9-22-55b
दूरं न शक्यं तत्रासीद्गन्तुमश्वेन केनचित्।
साश्वारोहैर्हतैरश्वैरावृते वसुधातले।।
9-22-56a
9-22-56b
रुधिरोक्षितसन्नाहैरात्तशस्त्रैरुदायुधैः।
नानाप्रहरणैर्घोरैः परस्परवधैषिभिः।
सुसन्निकृष्टे सङ्ग्रामे हतभूयिष्ठसैनिके।।
9-22-57a
9-22-57b
9-22-57c
स मुहूर्तं ततो युद्ध्वा सौबलोऽथ विशाम्पते।
षट्‌साहस्रैर्हयैः शिष्टेरपायाच्छकुनिस्ततः।।
9-22-58a
9-22-58b
तथैव पाण्डवानीकं रुधिरेण समुक्षितम्।
षट्‌साहस्रैर्हयैः शिष्टेरपायाच्छ्रान्तवाहनम्।।
9-22-59a
9-22-59b
अश्वारोहाश्च पाण्डूनामब्रुवन्रुधिरोक्षिताः।
सुसन्निकृष्टे सङ्ग्रामे भूयिष्ठे त्यक्तजीविताः।।
9-22-60a
9-22-60b
न हि शक्यं रथैर्योद्धुं कुत एव महागजैः।
रथानेव रथा यान्तु कुञ्जराः कुञ्जरानपि।।
9-22-61a
9-22-61b
प्रतियातो हि शकुनिः स्वमनीकमवस्थितः।
न पुनः सौबलो राजा योद्धुमभ्यागमिष्यति।।
9-22-62a
9-22-62b
ततस्तु द्रौपदेयाश्च ते च मत्ता महाद्विपाः।
प्रययुर्यत्र पाञ्चाल्यो धृष्टद्युम्नो महारथः।।
9-22-63a
9-22-63b
सहदेवोऽपि कौरव्य रजोमेघे समुत्थिते।
एकाकी प्रययौ तत्र यत्र राजा युधिष्ठिरः।।
9-22-64a
9-22-64b
ततस्तेषु प्रयातेषु शकुनिः सौबलः पुनः।
पार्श्वतोऽभ्यहनत्क्रुद्धो धृष्टद्युम्नस्य वाहिनीम्।।
9-22-65a
9-22-65b
तत्पुनस्तुमुलं युद्धं प्राणांस्त्यक्त्वाऽभ्यवर्तत।
तावकानां परेषां च परस्परवधैषिणाम्।।
9-22-66a
9-22-66b
ते चान्योन्यमवैक्षन्त तस्मिन्वीरसमागमे।
योधाः पर्यपतन्राजञ्शतशोऽथ सहस्रशः।।
9-22-67a
9-22-67b
असिभिश्छिद्यमानानां शिरसां लोकसंक्षये।
प्रादुरासीन्महाञ्शब्दस्तालानां पततामिव।।
9-22-68a
9-22-68b
विमुक्तानां शरीराणां छिन्नानां पततां भुवि।
सायुधानां च बाहूनामूरूणां च विशाम्पते।
आसीत्कटकटाशब्दः सुमहान्रोमहर्षणः।।
9-22-69a
9-22-69b
9-22-69c
निघ्नन्तो निशितैः शस्त्रैर्भ्रातॄन्पुत्रान्सखीनपि।
योधाः परिपतन्ति स्म यथाऽऽमिषकृते खगाः।।
9-22-70a
9-22-70b
अन्योन्यं प्रतिसंरब्धाः समासाद्य परस्परम्।
अहम्पूर्वमहम्पूर्वमिति निघ्नन्सहस्रशः।।
9-22-71a
9-22-71b
संयातेनासनभ्रष्टैरश्वारोहैर्गतासुभिः।
हयाः परिपतन्ति स्म शतशोऽथ सहस्रशः।।
9-22-72a
9-22-72b
स्फुरतां प्रतिपिष्टानामश्वानां शीघ्रगामिनाम्।
स्तनतां च मनुष्याणां सन्नद्धानां विशाम्पते।।
9-22-73a
9-22-73b
शक्त्यृष्टिप्रासशब्दश्च तुमुलः समपद्यत।
भिन्दतां परमर्माणि राजन्दुर्मन्त्रिते तव।।
9-22-74a
9-22-74b
श्रमाभिभूताः संरब्धा श्रान्तवाहाः पिपासवः।
विक्षताश्च शितैः शस्त्रैरभ्यवर्न्तत तावकाः।।
9-22-75a
9-22-75b
मत्ता रुधिरगन्धेन बहवोऽत्र विचेतसः।
जघ्नुः परान्स्वकांश्चैव प्राप्तान्प्राप्ताननन्तरान्।।
9-22-76a
9-22-76b
बहवश्च गतप्राणाः क्षत्रिया जयगृद्विनः।
भूमावभ्यपतन्राजञ्शरवृष्टिभिरावृताः।।
9-22-77a
9-22-77b
वृकगृध्रशृगालानां तुमुले मोदनेऽहनि।
आसीद्बलक्षयो घोरस्तव पुत्रस्य पश्यतः।।
9-22-78a
9-22-78b
नराश्वकायैः सञ्छन्ना भूमिरासीद्विशाम्पते।
रुधिरोदकचित्रा च भीरूणां भयवर्धिनी।।
9-22-79a
9-22-79b
असिभिः पट्टसैः शूलैस्तक्षमाणाः पुनःपुनः।
तावकाः पाण्‍वेयाश्च न न्यवर्तन्त भारत।।
9-22-80a
9-22-80b
प्रहरन्तो यथाशक्ति यावत्प्राणस्य धारणम्।
योधाः परिपतन्ति स्म वमन्तो रुधिरं मुखैः।।
9-22-81a
9-22-81b
शिरो गृहीत्वा केशेषु कबन्धः स प्रदृश्यते।
उद्यम्य च शितं खङ्गं रुधिरेण परिप्लुतम्।।
9-22-82a
9-22-82b
तथोत्थितेषु बहुषु कबन्धेषु नराधिप।
तथा रुधिरगन्धेन योधाः कश्मलमाविशन्।।
9-22-83a
9-22-83b
मन्दीभूते ततः शब्दे पाण्डवानां महद्बलम्।
अल्पावशिष्टैस्तुरगैरभ्यवर्तत सौबलः।।
9-22-84a
9-22-84b
ततोऽभ्यधावंस्त्वरिताः पाण्डवा जयगृद्विनः।
पदातयश्च नागाश्च सादिनश्चोद्यतायुधाः।।
9-22-85a
9-22-85b
कोष्ठकीकृत्य चाप्येनं परिक्षिप्य च सर्वशः।
शस्त्रैर्नानाविधैर्जघ्नुर्युद्वपारं तितीर्षवः।।
9-22-86a
9-22-86b
त्वदीयास्तांस्तु सम्प्रेक्ष्य सर्वतः समभिद्रुतान्।
रथाश्वपत्तिद्विरदाः पाण्डवानभिदुद्रुवुः।।
9-22-87a
9-22-87b
केचित्पदातयः पद्भिर्मुष्टिभिश्च परस्परम्।
निजघ्नुः समरे शूराः क्षीणशस्त्रास्ततोऽपतन्।।
9-22-88a
9-22-88b
रथेभ्यो रथिनः पेतुर्द्विपेभ्यो हस्तिसादिनः।
विमानेभ्यो दिवो भ्रष्टाः सिद्वाः पुण्यक्षयादिव।।
9-22-89a
9-22-89b
एवमन्योन्यमायत्ता योधा जघ्नुर्महाहवे।
पितॄन्भ्रातॄन्वयस्यांश्च पुत्रानपि तथा परे।।
9-22-90a
9-22-90b
एवमासीदमर्यादं युद्वं भरतसत्तम।
प्रासासिबाणकलिलं वर्तमाने सुदारुणे।।
9-22-91a
9-22-91b
।। इति श्रीमन्महाभारते
शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि
अष्टादशदिवसयुद्धे द्वाविंशोऽध्यायः।। 22 ।।
शल्यपर्व-021 पुटाग्रे अल्लिखितम्। शल्यपर्व-023