महाभारतम्-12-शांतिपर्व-147
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भर्तृशोकतप्तथा कपोत्या सकरुणं विलप्याग्नौ प्रवेशः।। 1।। ततो विमानारोहणेन स्वर्गतयोः कपोतयोस्तत्र सुखेन चिरविहारः।। 2।।
भीष्म उवाच। | 12-147-1x |
ततो गतो शाकुनिके कपोती प्राह दुःखिता। संस्मृत्य सा च भर्तारं रुदती शोककर्शिता।। | 12-147-1a 12-147-1b |
नाहं ते विप्रियं कान्त कदाचिदपि संस्मरे। सर्वाऽपि विधवा नारी बहुपुत्राऽपि शोचते।। | 12-147-2a 12-147-2b |
शोच्या भवति बन्धूनां पतिहीना तपस्विनी। लालिताऽहं त्वया नित्यं बहुमानाच्च पूजिता।। | 12-147-3a 12-147-3b |
वचनैर्मधुरैः स्निग्धैरसंक्लिष्टमनोहरैः। कन्दरेषु च शैलानां नदीनां निर्झरेषु च।। | 12-147-4a 12-147-4b |
द्रुमाग्रेषु च रम्येषु रमिताऽहं त्वया सह। आकाशगमने चैव विहृताऽहं त्वया सुखम्। रमामि स्म पुरा कान्त तन्मे नास्त्यद्य मे प्रिय।। | 12-147-5a 12-147-5b 12-147-5c |
मितं ददाति हि पिता मितं भ्राता मितं सुतः। अमितस्य हि दातारं भर्तारं का न पूजयेत्।। | 12-147-6a 12-147-6b |
नास्ति भर्तृसमो नाथो नास्ति भर्तृसमं सुखम्। विसृज्य धनसर्वस्वं भर्ता वै शरणं स्त्रियाः।। | 12-147-7a 12-147-7b |
न कार्यमिह मे नाथ जीवितेन त्वया विना। पतिहीना तु का नारी सती जीवितुमुत्सहेत्।। | 12-147-8a 12-147-8b |
एवं विलप्य बहुधा करुणं सा सुदुःखिता। पतिव्रता संप्रदीप्तं प्रविवेश हुताशनम्।। | 12-147-9a 12-147-9b |
ततश्चित्राङ्गदधरं भर्तारं साऽन्वपद्यत। विमानस्थं सुकृतिभिः पूज्यमानं महात्मभिः।। | 12-147-10a 12-147-10b |
चित्रमाल्याम्बरधरं सर्वाभरणभूषितम्।। विमानशतकोटीभिरावृतं पुण्यकर्मभिः।। | 12-147-11a 12-147-11b |
ततः स्वर्गं गतः पक्षी विमानवरमास्थितः। कर्मणा पूजितस्तत्र रेमे स सह भार्यया।। | 12-147-12a 12-147-12b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि आपद्धर्मपर्वणि सप्तचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 147।। |
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