महाभारतम्-12-शांतिपर्व-203
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति मनुबृहस्पतिसंवादानुवादः।। 1।।
मनुरुवाच। | 12-203-1x |
दुःखोपघाते शारीरे मानसे चाप्युपस्थिते। यस्मिन्न शक्यते कर्तुं यत्नस्तं नानुचिन्तयेत्।। | 12-203-1a 12-203-1b |
भैषज्यमेतद्दुःखस्य यदेतन्नानुचिन्तयेत्। चिन्त्यमानं हि चाभ्येति भूयश्चापि प्रवर्तते।। | 12-203-2a 12-203-2b |
प्रज्ञया मानसं दुःखं हन्याच्छारीरमौषधैः। एतद्विज्ञानसामर्थ्यं न बालैः समतामियात्।। | 12-203-3a 12-203-3b |
अनित्यं यौवनं रूपं जीवितं द्रव्यसंचयः। आरोग्यं प्रियसंवासो गृध्येत्तत्र न पण्डितः।। | 12-203-4a 12-203-4b |
न जानपदिकं दुःखमेकः शोचितुमर्हति। अशोचन्प्रतिकुर्वीत यदि पश्येदुपक्रमम्।। | 12-203-5a 12-203-5b |
सुखाद्बहुतरं दुःखं जीविते नास्ति संशयः। स्रिग्धस्य चेन्द्रियार्थेषु मोहान्मरणमप्रियम्।। | 12-203-6a 12-203-6b |
परित्यजति यो दुःखं सुखं वाऽप्युभयं नरः। अभ्येति ब्रह्म सोत्यन्तं न ते शोचन्ति पण्डिताः।। | 12-203-7a 12-203-7b |
दुःखमर्था हि युज्यन्ते पालने न च ते सुखम्। दुःखेन चाधिगम्यन्ते नाशमेषां न चिन्तयेत्।। | 12-203-8a 12-203-8b |
ज्ञानं ज्ञेयाभिर्निवृत्तं विद्धि ज्ञानगुणं मनः। प्रज्ञाकरणसंयुक्तं ततो बुद्धिः प्रवर्तते।। | 12-203-9a 12-203-9b |
यदा कर्मगुणोपेता बुद्धिर्मनसि वर्तते। तदा प्रज्ञायते ब्रह्म ध्यानयोगसमाधिना।। | 12-203-10a 12-203-10b |
सेयं गुणवती बुद्धिर्गुणेष्वेवाभिवर्तते। अपरादभिनिः स्रौति गिरेः शृङ्गादिवोदकम्।। | 12-203-11a 12-203-11b |
यदा निर्गुणमाप्नोति ध्यानं मनसि पूर्वजम्। तदा प्रज्ञायते ब्रह्म निकषं निकषे यथा।। | 12-203-12a 12-203-12b |
मनस्त्वसंहृतं बुद्ध्या हीन्द्रियार्थनिदर्शकम्। न समर्थं गुणापेक्षि निर्गुणस्य निदर्शने।। | 12-203-13a 12-203-13b |
सर्वाण्येतानि संवार्य द्वाराणि मनसि स्थितः। मनस्येकाग्रतां कृत्वा तत्परं प्रतिपद्यते।। | 12-203-14a 12-203-14b |
यथा महान्ति भूतानि निवर्तन्ते गुणक्षये। तथेन्द्रियाण्युपादाय बुद्धिर्मनसि वर्तते।। | 12-203-15a 12-203-15b |
यदा मनसि सा बुद्धिर्वर्ततेऽन्तरचारिणी। व्यवसायगुणोपेता तदा संपद्यते मनः।। | 12-203-16a 12-203-16b |
गुणवद्भिर्गुणोपेतं यदा ध्यानगतं मनः। तदा सर्वान्गुणान्हित्वा निर्गुणं प्रतिपद्यते।। | 12-203-17a 12-203-17b |
अव्यक्तस्येह विज्ञाने नास्ति तुल्यं निदर्शनम्। यत्र नास्ति पदन्यासः कस्तं विषयमाप्नुयात्।। | 12-203-18a 12-203-18b |
तपसा चानुमानेन गुणैर्जात्या श्रुतेन च। निनीषेत्परमं ब्रह्म विशुद्धेनान्तरात्मना।। | 12-203-19a 12-203-19b |
गुणहीनो हि तं मार्गं बहिः समनुवर्तते। गुणाभावात्प्रकृत्या वा निस्तर्क्यं ज्ञेयसंमितम्।। | 12-203-20a 12-203-20b |
नैर्गुण्याद्ब्रह्म चाप्नोति सगुणत्वान्निवर्तते। गुणप्रसारिणी बुद्धिर्हुताशन इवेन्धने।। | 12-203-21a 12-203-21b |
यदा पञ्च वियुक्तानि इन्द्रियाणि स्वकर्मभिः। तदा तत्परमं ब्रह्म संमुक्तं प्रकृतेः परम्।। | 12-203-22a 12-203-22b |
एवं प्रकृतितः सर्वे संभवन्ति शरीरिणः। निवर्तन्ते निवृत्तौ च स्वर्गे नैवोपयान्ति च।। | 12-203-23a 12-203-23b |
पुरुषप्रकृतिर्बुद्धिर्विशेषाश्चेन्द्रियाणि च। अहंकारोऽभिमानश्च संभूतो भूतसंज्ञकः।। | 12-203-24a 12-203-24b |
एतस्याद्या प्रवृत्तिस्तु प्रधानात्संप्रवर्तते। द्वितीया मिथुनव्यक्तिमविशेषान्नियच्छति।। | 12-203-25a 12-203-25b |
धर्मादुत्कृष्यते श्रेयस्तथा धर्मोऽष्यधर्मतः। रागवान्प्रकृतिं ह्येति विरक्तो ज्ञानवान्भवम्।। | 12-203-26a 12-203-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि त्र्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 203।। |
12-203-5 उपक्रमं प्रतीकारोपायम्।। 12-203-6 मरणं भवति।। 12-203-7 ते ब्रह्माभिगताः।।
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