महाभारतम्-12-शांतिपर्व-207
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति मरीच्यादिब्रह्मपुत्रवंशकथनपूर्वकं प्राच्यादिदिग्गतमहर्षिनामनिर्देशः।।
युधिष्ठिर उवाच।
के पूर्वमासन्पतयः प्रजानां भरतर्षभ।
के चर्षयो महाभागा दिक्षु प्रत्येकशः स्थिताः।। 12-207-1a
भीष्म उवाच।
श्रूयतां भरतश्रेष्ठ यन्मां त्वं परिपृच्छसि।
प्रजानां पतयो ये च दिक्षु ये चर्षयः स्मृताः।। 12-207-2a
एकः स्वयंभूर्भगवानाद्यो ब्रह्मा सनातनः।
ब्रह्मणः सप्त वै पुत्रा महात्मानः स्वयंभुवः।। 12-207-3a
मरीचिरत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः।
वसिष्ठश्च महाभागः सदृशो वै स्वयंभुवा।। 12-207-4a
सप्त ब्रह्मण इत्येते पुराणे निश्चयं गताः।
अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि सर्वानेव प्रजापतीन्।। 12-207-5a
अत्रिवंशतमुत्पन्नो ब्रह्मयोनिः सनातनः।
प्राचनवर्हिर्भगवांस्तस्मात्प्राचेतसो दश।। 12-207-6a
दशानां तनयस्त्वेको दक्षो नाम प्रजापतिः।
तस्य द्वे नामनी लोके दक्षः क इति चोच्यते।। 12-207-7a
मरीचेः कश्यपः पुत्रस्तस्य द्वे नामनी स्मृते।
अरिष्टनेमिरित्येके कश्यपेत्यपरे विदुः।। 12-207-8a
अत्रेश्चैवौरसः श्रीमान्राजा सोमश्च वीर्यवान्।
सहस्रं यश्च दिव्यानां युगानां पर्युपासिता।। 12-207-9a
अर्यमा चैव भगवान्ये चास्य तनया विभो।
एते प्रदेशाः कथिता भुवनानां प्रभावनाः।। 12-207-10a
शशबिन्दोश्च भार्याणां सहस्राणि दशाच्युत।
एकैकस्यां सहस्रं तु तनयानामभूत्तदा।। 12-207-11a
एवं शतसहस्राणि दश तस्य महात्मनः।
पुत्राणां च न ते संचिदिच्छन्त्यन्यं प्रजापतिम्।। 12-207-12a
प्रजामाचक्षते विप्राः पुराणाः शाशबिन्दवीम्।
स वृष्णिवंशप्रभवो महावंशः प्रजापतेः।। 12-207-13a
एते प्रजानां पतयः समुद्दिष्टा यशस्विनः।। 12-207-14a
शशबिन्दुस्तु राजर्षिर्महायोगी महामनाः।
अध्यात्मवित्सहस्राणां भार्याणां दशमध्यगः।। 12-207-15a
स योगी योगमापन्नस्ततः सायुज्यतां गतः।'
अतः परं प्रवक्ष्यामि देवांस्त्रिभुवनेश्वरान्।। 12-207-16a
भगोंऽशश्चार्यमा चैव मित्रोऽथ वरुणस्तथा।
सविता चैव घाता च विवस्वांश्च महाबलः।। 12-207-17a
त्वष्टा पूषा तथैवेन्द्रो द्वादशो विष्णुरुच्यते।
इत्येते द्वादशादित्याः कश्यपस्यात्मसंभवाः।। 12-207-18a
नासत्यश्चैव दस्रश्च स्मृतो द्वावश्विनावपि।
मार्तण्डस्यात्मजावेतावात्मस्य प्रजापतेः।। 12-207-19a
त्वष्टुश्चैवात्मजः श्रीमान्विश्वरूपो महायशाः।। 12-207-20a
अजैकपादहिर्बुध्न्यो विरूपाक्षोऽथ रैवतः।
हरश्च बहुरूपश्च त्र्यम्बकश्च सुरेश्वरः।। 12-207-21a
सावित्रश्च जयन्तश्च पिनाकी चापराजितः।
`एकादशैते कथिता रुद्रास्त्रिभुवनेश्वराः।।' 12-207-22a
पूर्वमेव महाभागा वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः।
एत एवविधा देवा मनोरेव प्रजापतेः।
ते च पूर्वं सुराश्चेति द्विविधाः पितरः स्मृताः।। 12-207-23a
शीलयौवनयोस्त्वन्यस्तथाऽन्ये सिद्धसाध्ययोः।
ऋभवो मरुतश्चैव देवानां चोदितो गणः।। 12-207-24a
एवमेते समाम्नाता विश्वेदेवास्तथाऽश्विनौ।
आदित्याः क्षत्रियास्तेषां विशश्च मरुतस्तथा।। 12-207-25a
अश्विनौ तु स्मृतौ शूद्रौ तपस्युग्रे समास्थितौ।
स्मृतास्त्वङ्गिरसो देवा ब्राह्मणा इति निश्चयः।
इत्येतत्सर्वदेवानां चातुर्वर्ण्यं प्रकीर्तितम्।। 12-207-26a
एतान्वै प्रातरुत्थाय देवान्यस्तु प्रकीर्तयेत्।
स्वजादन्यकृताच्चैव सर्वपापात्प्रमुच्यते।। 12-207-27a
यवक्रीतोऽथ रैभ्यश्च अर्वावसुपरावसू।
औशिजश्चैव कक्षीवान्बलश्चाङ्गिरसः स्मृतः।। 12-207-28a
ऋषिर्मेधातिथेः पुत्रः कण्वो बर्हिषदस्तथा।
त्रैलोक्यभावनास्तात प्राच्यां सप्तर्षयस्तथा।। 12-207-29a
उन्मुचो विमुचश्चैव स्वस्त्यात्रेयश्च वीर्यवान्।
प्रमुचश्चेध्मवाहश्च भगवांश्च दृढव्रतः।। 12-207-30a
मित्रावरुणयोः पुत्रस्तथाऽगस्त्यः प्रतापवान्।
एते ब्रह्मर्षयो नित्यमास्थिता दक्षिणां दिशम्।। 12-207-31a
उषङ्गुः कवषो धौम्यः परिव्याधश्च वीर्यवान्।
एकतश्च द्वितश्चैव त्रितश्चैवं महर्षयः।। 12-207-32a
अत्रेः पुत्रश्च दुर्वासास्तथा सारस्वतः प्रभुः।
एते चैव महात्मानः पश्चिमामाश्रिता दिशम्।। 12-207-33a
अत्रिश्चैव वसिष्ठश्च काश्यपश्च महानुषिः।
गौतमोऽथ भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ कौशिकः।। 12-207-34a
तथैव पुत्रो भगवानृचीकस्य महात्मनः।
जमदग्निश्च सप्तैते उदीचीमाश्रिता दिशम्।। 12-207-35a
एते प्रतिदिशं सर्वे कीर्तितास्तिग्मतेजसः।
साक्षिभूता महात्मानो भुवनानां प्रभावनाः।। 12-207-36a
एवमेते महात्मानः स्थिताः प्रत्येकशो दिशम्।
एतेषां कीर्तनं कृत्वा सर्वपापात्प्रमुच्यते।। 12-207-37a
यस्यांयस्यां दिशि ह्येते तां दिशं शरणं गतः।
मुच्यते सर्वपापेभ्यः स्वस्तिमांश्च तथा भवेत्।। 12-207-38a
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि
मोक्षधर्मपर्वणि सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 207।।
1।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-207-1x |
के पूर्वमासन्पतयः प्रजानां भरतर्षभ। के चर्षयो महाभागा दिक्षु प्रत्येकशः स्थिताः।। | 12-207-1a 12-207-1b |
भीष्म उवाच। | 12-207-2x |
श्रूयतां भरतश्रेष्ठ यन्मां त्वं परिपृच्छसि। प्रजानां पतयो ये च दिक्षु ये चर्षयः स्मृताः।। | 12-207-2a 12-207-2b |
एकः स्वयंभूर्भगवानाद्यो ब्रह्मा सनातनः। ब्रह्मणः सप्त वै पुत्रा महात्मानः स्वयंभुवः।। | 12-207-3a 12-207-3b |
मरीचिरत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः। वसिष्ठश्च महाभागः सदृशो वै स्वयंभुवा।। | 12-207-4a 12-207-4b |
सप्त ब्रह्मण इत्येते पुराणे निश्चयं गताः। अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि सर्वानेव प्रजापतीन्।। | 12-207-5a 12-207-5b |
अत्रिवंशतमुत्पन्नो ब्रह्मयोनिः सनातनः। प्राचनवर्हिर्भगवांस्तस्मात्प्राचेतसो दश।। | 12-207-6a 12-207-6b |
दशानां तनयस्त्वेको दक्षो नाम प्रजापतिः। तस्य द्वे नामनी लोके दक्षः क इति चोच्यते।। | 12-207-7a 12-207-7b |
मरीचेः कश्यपः पुत्रस्तस्य द्वे नामनी स्मृते। अरिष्टनेमिरित्येके कश्यपेत्यपरे विदुः।। | 12-207-8a 12-207-8b |
अत्रेश्चैवौरसः श्रीमान्राजा सोमश्च वीर्यवान्। सहस्रं यश्च दिव्यानां युगानां पर्युपासिता।। | 12-207-9a 12-207-9b |
अर्यमा चैव भगवान्ये चास्य तनया विभो। एते प्रदेशाः कथिता भुवनानां प्रभावनाः।। | 12-207-10a 12-207-10b |
शशबिन्दोश्च भार्याणां सहस्राणि दशाच्युत। एकैकस्यां सहस्रं तु तनयानामभूत्तदा।। | 12-207-11a 12-207-11b |
एवं शतसहस्राणि दश तस्य महात्मनः। पुत्राणां च न ते संचिदिच्छन्त्यन्यं प्रजापतिम्।। | 12-207-12a 12-207-12b |
प्रजामाचक्षते विप्राः पुराणाः शाशबिन्दवीम्। स वृष्णिवंशप्रभवो महावंशः प्रजापतेः।। | 12-207-13a 12-207-13b |
एते प्रजानां पतयः समुद्दिष्टा यशस्विनः।। | 12-207-14a |
शशबिन्दुस्तु राजर्षिर्महायोगी महामनाः। अध्यात्मवित्सहस्राणां भार्याणां दशमध्यगः।। | 12-207-15a 12-207-15b |
स योगी योगमापन्नस्ततः सायुज्यतां गतः।' अतः परं प्रवक्ष्यामि देवांस्त्रिभुवनेश्वरान्।। | 12-207-16a 12-207-16b |
भगोंऽशश्चार्यमा चैव मित्रोऽथ वरुणस्तथा। सविता चैव घाता च विवस्वांश्च महाबलः।। | 12-207-17a 12-207-17b |
त्वष्टा पूषा तथैवेन्द्रो द्वादशो विष्णुरुच्यते। इत्येते द्वादशादित्याः कश्यपस्यात्मसंभवाः।। | 12-207-18a 12-207-18b |
नासत्यश्चैव दस्रश्च स्मृतो द्वावश्विनावपि। मार्तण्डस्यात्मजावेतावात्मस्य प्रजापतेः।। | 12-207-19a 12-207-19b |
त्वष्टुश्चैवात्मजः श्रीमान्विश्वरूपो महायशाः।। | 12-207-20a |
अजैकपादहिर्बुध्न्यो विरूपाक्षोऽथ रैवतः। हरश्च बहुरूपश्च त्र्यम्बकश्च सुरेश्वरः।। | 12-207-21a 12-207-21b |
सावित्रश्च जयन्तश्च पिनाकी चापराजितः। `एकादशैते कथिता रुद्रास्त्रिभुवनेश्वराः।।' | 12-207-22a 12-207-22b |
पूर्वमेव महाभागा वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः। एत एवविधा देवा मनोरेव प्रजापतेः। ते च पूर्वं सुराश्चेति द्विविधाः पितरः स्मृताः।। | 12-207-23a 12-207-23b 12-207-23c |
शीलयौवनयोस्त्वन्यस्तथाऽन्ये सिद्धसाध्ययोः। ऋभवो मरुतश्चैव देवानां चोदितो गणः।। | 12-207-24a 12-207-24b |
एवमेते समाम्नाता विश्वेदेवास्तथाऽश्विनौ। आदित्याः क्षत्रियास्तेषां विशश्च मरुतस्तथा।। | 12-207-25a 12-207-25b |
अश्विनौ तु स्मृतौ शूद्रौ तपस्युग्रे समास्थितौ। स्मृतास्त्वङ्गिरसो देवा ब्राह्मणा इति निश्चयः। इत्येतत्सर्वदेवानां चातुर्वर्ण्यं प्रकीर्तितम्।। | 12-207-26a 12-207-26b 12-207-26c |
एतान्वै प्रातरुत्थाय देवान्यस्तु प्रकीर्तयेत्। स्वजादन्यकृताच्चैव सर्वपापात्प्रमुच्यते।। | 12-207-27a 12-207-27b |
यवक्रीतोऽथ रैभ्यश्च अर्वावसुपरावसू। औशिजश्चैव कक्षीवान्बलश्चाङ्गिरसः स्मृतः।। | 12-207-28a 12-207-28b |
ऋषिर्मेधातिथेः पुत्रः कण्वो बर्हिषदस्तथा। त्रैलोक्यभावनास्तात प्राच्यां सप्तर्षयस्तथा।। | 12-207-29a 12-207-29b |
उन्मुचो विमुचश्चैव स्वस्त्यात्रेयश्च वीर्यवान्। प्रमुचश्चेध्मवाहश्च भगवांश्च दृढव्रतः।। | 12-207-30a 12-207-30b |
मित्रावरुणयोः पुत्रस्तथाऽगस्त्यः प्रतापवान्। एते ब्रह्मर्षयो नित्यमास्थिता दक्षिणां दिशम्।। | 12-207-31a 12-207-31b |
उषङ्गुः कवषो धौम्यः परिव्याधश्च वीर्यवान्। एकतश्च द्वितश्चैव त्रितश्चैवं महर्षयः।। | 12-207-32a 12-207-32b |
अत्रेः पुत्रश्च दुर्वासास्तथा सारस्वतः प्रभुः। एते चैव महात्मानः पश्चिमामाश्रिता दिशम्।। | 12-207-33a 12-207-33b |
अत्रिश्चैव वसिष्ठश्च काश्यपश्च महानुषिः। गौतमोऽथ भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ कौशिकः।। | 12-207-34a 12-207-34b |
तथैव पुत्रो भगवानृचीकस्य महात्मनः। जमदग्निश्च सप्तैते उदीचीमाश्रिता दिशम्।। | 12-207-35a 12-207-35b |
एते प्रतिदिशं सर्वे कीर्तितास्तिग्मतेजसः। साक्षिभूता महात्मानो भुवनानां प्रभावनाः।। | 12-207-36a 12-207-36b |
एवमेते महात्मानः स्थिताः प्रत्येकशो दिशम्। एतेषां कीर्तनं कृत्वा सर्वपापात्प्रमुच्यते।। | 12-207-37a 12-207-37b |
यस्यांयस्यां दिशि ह्येते तां दिशं शरणं गतः। मुच्यते सर्वपापेभ्यः स्वस्तिमांश्च तथा भवेत्।। | 12-207-38a 12-207-38b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 207।। |
12-207-9 अङ्गश्च पौरवः श्रीमान्राजा भौमश्च वीर्तवान् इति ड. थ. पाठः। अंशश्चैवौरसः श्रीमान्राजा भौमश्च वीर्यवानिति ध. पाठः।। 12-207-10 प्रदेशाः प्रदिशन्ति आज्ञापयन्तीति प्रेदशा ईशनशीला इत्यर्थः। प्रभावनाः प्रकर्षेण स्नष्टारश्च।। 12-207-27 स्वजात् स्वयं कामतोऽकामतश्च कृतात्। अन्यसंसर्गजात्।। 12-207-28 नीलश्चाङ्गिरसः स्मृत इति ड.ध. पाठः।। 12-207-29 त्रैलोक्यगायना इति ड. थ.पाठः।।
शांतिपर्व-206 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-208 |