महाभारतम्-12-शांतिपर्व-303
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भूष्मेण युधिष्ठिरंप्रति धर्मादिसाधनतया मानुष्यप्रशंसापूर्वकं नानाधर्मप्रतिपादकपराशारगीतानुवादः।। 1।।
पराशर उवाच। | 12-303-1x |
पिता सखायो गुरवः स्त्रियश्च न निर्गुणानां प्रभवन्ति लोके। अनन्यभक्ताः प्रियवादिनश्च हिताश्च वश्याश्च तथैव राजन्।। | 12-303-1a 12-303-1b 12-303-1c 12-303-1d |
पिता परं दैवतं मानवानां मातुर्विशिष्टं पितरं वदन्ति। ज्ञानस्य लाभं परमं वदन्ति जितेन्द्रियार्थाः परमाप्नुवन्ति।। | 12-303-2a 12-303-2b 12-303-2c 12-303-2d |
रणाजिरे यत्र शराग्निसंस्तरे नृपात्मजो घातमवाप्य दह्यते। प्रयाति लोकानमरैः सुदुर्लभा न्निषेवते स्वर्गफलं यथासुखम्।। | 12-303-3a 12-303-3b 12-303-3c 12-303-3d |
श्रान्तं भीतं भ्रष्टशस्त्रं रुदन्तं पराङ्भुखं पारिवर्हैश्च हीनम्। अनुद्यन्तं रोगिणं याचमानं न वै हिंस्याद्बालवृद्धौ च राजन्।। | 12-303-4a 12-303-4b 12-303-4c 12-303-4d |
पारिबर्हैः सुसंयुक्तमुद्यतं तुल्यतां गतम्। अतिक्रमेत्तं नृपतिः संग्रामे क्षत्रियात्मजम्।। | 12-303-5a 12-303-5b |
तुल्यादिह वधः श्रेयान्विशिष्टाच्चेति निश्चयः। निहीनात्कातराच्चैव कृपणाद्गर्हितो वधः।। | 12-303-6a 12-303-6b |
पापात्पापसमाचारान्निहीनाच्च नराधिप। पाप एष वधः प्रोक्तो नरकायेति निश्चयः।। | 12-303-7a 12-303-7b |
न कश्चित्राति वै राजन्दिष्टान्तवशमागतम्। सावशेषायुषं चापि कश्चिन्नैवापकर्षति।। | 12-303-8a 12-303-8b |
स्निग्धैश्च क्रियमाणानि कर्माणीह निवर्तयेत्। हिंसात्मकानि सर्वाणि नायुरिच्छेत्परायुषा।। | 12-303-9a 12-303-9b |
गृहस्थानां तु सर्वेषां विनाशमभिकाङ्क्षताम्। निधनं शोभनं तात पुलिनेषु क्रियावताम्।। | 12-303-10a 12-303-10b |
आयुषि क्षयमापन्ने पञ्चत्वमुपगच्छति। तथा ह्यकारणाद्भवति कारणैरुपपादितम्।। | 12-303-11a 12-303-11b |
तथा शरीरं भवति देहाद्येनोपपादितम्। अध्वानं गतकश्चायं प्राप्तश्चायं गृहाद्गृहम्।। | 12-303-12a 12-303-12b |
द्वितीयं कारणं तत्र नान्यत्किंचन विद्यते। तद्देहं देहिनां युक्तं मोक्षभूतेषु वर्तते।। | 12-303-13a 12-303-13b |
शिरास्नाय्वस्थिसंघातं बीभत्सामेध्यसंकुलम्। भूतानामिन्द्रियाणां च गुणानां च समागमम्।। | 12-303-14a 12-303-14b |
त्वगन्तं देहमित्याहुर्विद्वांसोऽध्यात्मचिन्तकाः। गुणैरपि परिक्षीणं शरीरं मर्त्यतां गतम्।। | 12-303-15a 12-303-15b |
शरीरिणा परित्यक्तं निश्चेष्टं गतचेतनम्। भूतैः प्रकृतिमापन्नैस्ततो भूमौ निमज्जति।। | 12-303-16a 12-303-16b |
भावितं कर्मयोगेन जायते तत्रतत्र ह। इदं शरीरं वैदेह म्रियते यत्रयत्र ह। तत्प्रपाते परो दृष्टो विसर्गः कर्मणस्तथा।। | 12-303-17a 12-303-17b 12-303-17c |
न जायते तु नृपते कंचित्कालमयं पुनः। परिभ्रमति भूतात्मा द्यामिवाम्बुधरो महान्।। | 12-303-18a 12-303-18b |
स पुनर्जायते राजन्प्राप्येहायतनं नृपः। मनसः परमो ह्यात्मा इन्द्रियेभ्यः परं मनः।। | 12-303-19a 12-303-19b |
विविधानां च भूतानां जङ्गमाः परमा नृप। जङ्गमानामपि तथा द्विपदाः परमा मताः। द्विपदानामपि तथा द्विजा वै परमाः स्मृताः।। | 12-303-20a 12-303-20b 12-303-20c |
द्विजानामपि राजेन्द्र प्रज्ञावन्तः परा मताः। प्राज्ञानामात्मसंबुद्धाः संबुद्धानाममानिनः।। | 12-303-21a 12-303-21b |
जातमन्वेति मरणं नृणामिति विनिश्चयः। अन्तवन्ति हि कर्माणि सेवन्ते गुणतः प्रजाः।। | 12-303-22a 12-303-22b |
आपन्ने तूत्तरां काष्ठां सूर्ये यो निधनं व्रजेत्। नक्षत्रे च मुहूर्ते च पुण्ये राजन्स पुण्यकृत्।। | 12-303-23a 12-303-23b |
अयोजयित्वा क्लेशेन जनं प्लाप्य च दुष्कृतम्। मृत्युनाऽऽत्मकृतेनेह कर्म कृत्वाऽऽत्मशक्तितः।। | 12-303-24a 12-303-24b |
विषमुद्बन्धनं दाहो दस्युहस्तात्तथ वधः। दंष्ट्रिभ्यश्च पशुभ्यश्च प्राकृतो वध उच्यते।। | 12-303-25a 12-303-25b |
न चैभिः पुण्यकर्माणो युज्यन्ते चाभिसंधिजैः। एवंविधैश्च बहुभिरपरैः प्राकृतैरपि।। | 12-303-26a 12-303-26b |
ऊर्ध्वं भित्त्वा प्रतिष्ठन्ते प्राणाः पुण्यवतां नृप। मध्यतो मध्यपुण्यानामधो दुष्कृतकर्मणाम्।। | 12-303-27a 12-303-27b |
एकः शत्रुर्न द्वितीयोस्ति शत्रु रज्ञानतुल्यः पुरुषस्य राजन्। येनावृतः कुरुते संप्रयुक्तो घोराणि कर्माणि सुदारुणानि।। | 12-303-28a 12-303-28b 12-303-28c 12-303-28d |
प्रबोधनार्थं श्रुतिधर्मयुक्तं वृद्धानुपास्य प्रभवेत यस्य। प्रयत्नसाध्यो हि स राजपुत्र प्रज्ञाशरेणोन्मथितः परैति।। | 12-303-29a 12-303-29b 12-303-29c 12-303-29d |
अधीत्य वेदं तपसा ब्रह्मचारी यज्ञाञ्शक्त्या सन्निसृज्येह पञ्च। वनं गच्छेत्पुरुषो धर्मकामः श्रेयः कृत्वा स्थापयित्वा स्ववंशम्।। | 12-303-30a 12-303-30b 12-303-30c 12-303-30d |
उपभोगैरपि त्यक्तं नात्मानं सादयेन्नरः। चण्डालत्वेऽपि मानुष्यं सर्वथा तात शोभनम्।। | 12-303-31a 12-303-31b |
इयं हि योनिः प्रथमा यां प्राप्य जगतीयते। आत्मा वै शक्यते त्रातुं कर्मभिः शुभलक्षणैः।। | 12-303-32a 12-303-32b |
कथं न विप्रणश्येम योनितोस्या इति प्रभो। कुर्वन्ति धर्मं मनुजाः श्रुतिप्रामाण्यदर्शनात्।। | 12-303-33a 12-303-33b |
यो दुर्लभतरं प्राप्य मानुष्यं द्विषते नरः। धर्मावमन्ता कामात्मा भवेत्स खलु वञ्च्यते।। | 12-303-34a 12-303-34b |
यस्तु प्रीतिपुराणेन चक्षुषा तात पश्यति। दीपोपमानि भूतानि यावदर्थान्न पश्यति।। | 12-303-35a 12-303-35b |
सान्त्वेनानुप्रदानेन प्रियवादेन चाप्युत। समदुःखसुखो भूत्वा स परत्र महीयते।। | 12-303-36a 12-303-36b |
दानं त्यागः शोभना मुर्तिमद्भ्यो भूयः प्लाव्यं तपसा वै शरीरम्। सरस्वतीनैमिषपुष्करेषु ये चाप्यन्ये पुण्यदेशाः पृथिव्याम्।। | 12-303-37a 12-303-37b 12-303-37c 12-303-37d |
गृहेषु येषामसवः पतन्ति तेषामथो निर्हरणं प्रशस्तम्। यानेन वै प्रापणं च श्मशाने शुचौ देशे विधिना चैव दाहः।। | 12-303-38a 12-303-38b 12-303-38c 12-303-38d |
इष्टिः पुष्टिर्यजनं याजनं च दार्ग पुण्यानां कर्मणां च प्रयोगः। शक्त्या पित्र्यं यच्च किंचित्प्रशस्तं सर्वाण्यात्मार्थे मानवोऽयं करोति।। | 12-303-39a 12-303-39b 12-303-39c 12-303-39d |
`गृहस्थानां च सर्वेषां विनाशमभिकाङ्क्षताम्। निधनं शोभनं तात पुलिनेषु क्रियावताम्।।' | 12-303-40a 12-303-40b |
धर्मशास्त्राणि वेदाश्च ष़डङ्गानि नराधिप। श्रेयसोर्थे विधीयन्ते नरस्याक्लिष्टकर्मणः।। | 12-303-41a 12-303-41b |
भीष्म उवाच। | 12-303-42x |
एतद्वै सर्वमाख्यातं मुनिना सुमहात्मना। विदेहराजाय पुरा श्रयेसोर्थे नराधिप।। | 12-303-42a 12-303-42b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि त्र्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 303।। |
12-303-2 लाभं लाभहेतुम्।। 12-303-4 पारिबर्है रथाश्वकवचादिभिः।। 12-303-5 अतिक्रमेज्जयेत्।। 12-303-8 दिष्टान्तो मृत्युः।। 12-303-9 सन्नद्धैः क्रियमाणानीति थ. पाठः। हिंसात्मकानि कर्माणीति ध. पाठः।। 12-303-10 पुलिनेषु पुलिनवत्सु तीर्थेषु निधनं मरणं श्रेयः।। 12-303-15 शरीरं मन्दतां गतमिति ध. पाठः।। 12-303-17 तत्स्वभावो परो दृष्ट इति झ. पाठः।। 12-303-32 आत्मा वै शक्यते ज्ञातुमिति ध. पाठः।। 12-303-36 सांत्वेनान्नप्रदानेनेति झ. पाठः।। 12-303-35 प्रीतिपुराणेन प्रीत्या चिरंतनेन दीपोपमानि स्नेहेन संवर्धनीयानि। याक्दर्थान् सर्वान्विषयान् दयावान् भूतानि पश्यति विरक्तोऽर्थान्न पश्यति यः स महीयते इत्युत्तरेण संबन्धः।। 12-303-38 शौचेनं नूनं विधिना चेति ध. पाठः।।
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