"अग्निपुराणम्/अध्यायः १४४" इत्यस्य संस्करणे भेदः

कुब्जिकापूजा <poem><span style="font-size: 14pt; line-height: 200%">ईश्वर उवाच श... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
 
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पङ्क्तिः २०:
विद्यादेवीगुरुशुद्धिस्त्रिशुद्धिं प्रवदामि ते ।१४४.००८
गगनश्चटुली चात्मा पद्मानन्दो मणिः कला ॥१४४.००८
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१ वह्निकुब्जिनि इति ख.. , छ.. च</small></small>
टिप्पणी
१ वह्निकुब्जिनि इति ख.. , छ.. च
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कमलो माणिक्यकण्ठो गगनः कुमुदस्ततः ।१४४.००९
श्रीपद्मो भैरवानन्दो देवः कमल इत्यतः ॥१४४.००९
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आज्ञारूपो नन्दरूपो बलिन्दत्वा क्रमं यजेत् ।१४४.०१७
ह्रीं खं खं हूं सौं वटुकाय अरु २ अर्घं पुष्पं धूपं दीपंगन्धं बलिं पूजां गृह्ण २ नमस्तुभ्यम् । ओं ह्रां ह्रीं ह्रूं क्षें क्षेत्रपालाय अवतर २ महाकपिलजटाभार भास्वरत्रिनेत्रज्वालामुख एह्येहि गन्ह्दपुष्पबलिपूजां गृह्ण २ खः खः ओं कः ओं लः ओं महाडामराधिपतये(३) स्वाहा
<small><small>टिप्पणी
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टिप्पणी
१ कामोऽथ मुक्तक इति ज.. , छ.. , ञ.. च
२ वटो वीर इति ज.. , छ.. च
३ प्रमथाधिपतये इति ङ.. । महामायाधिपतये इति ज..</small></small>
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बलिशेषेऽथ यजेथ्रीं ह्रूं हां श्रीं वै त्रिकूटकं ॥१४४.०१७
वामे च दक्षिणे ह्यग्रे याम्ये निशानाथपादुकाः ।१४४.०१८
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नैऋत्ये चतुरो देवान्(५) जयेत्कन्दर्पनाथकं ।१४४.०२५
पूर्वाः शक्तीश्च सर्वाश्च(६) कुब्जिकापादुकां यजेत् ॥१४४.०२५
<small><small>टिप्पणी
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टिप्पणी
१ स्वर्गानन्दञ्च देवकमिति घ.. , ञ.. च
२ पन्नगानन्ददेवञ्चेति ञ.. । पवनानन्ददेवञ्चेति ज..
Line ७२ ⟶ ६७:
४ भूतोशं मन्त्रनायकमिति ज.. । भूतीशं मन्त्रनायकमिति ञ..
५ चतुरो वेदानिति ख.. , छ.. , ज.. च
६ पूर्वान् सशक्तीन् सर्वांश्चेति ज.. , ञ.. च</small></small>
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नवातम्केन मन्त्रेण पञ्चप्रणवकेन वा ।१४४.०२६
सहस्राक्षमनवद्यं विष्णुं शिवं सदा यजेत्(१) ॥१४४.०२६
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श्वेतमूर्ध्वमुखन्देव्या ऊर्ध्वश्वेतन्तथापरं ।१४४.०३५
पूर्वास्यं पाण्डरं क्रोधि दक्षिणं कृष्णवर्णकं ॥१४४.०३५
<small><small>टिप्पणी
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टिप्पणी
१ सदाशिवं स्वयं यजेदिति ङ.. , छ.. , ज.. च
२ षड्वर्णेति ज..
३ वनमालङ्कुशं धनुरिति घ.. , ङ.. च</small></small>
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हिमकुन्देन्दभं सौम्यं ब्रह्मा पादतले स्थितः ।१४४.०३६
विष्णुस्तु जघने रुद्रो हृदि कण्ठे तथेश्वरः ॥१४४.०३६
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