"रामायण बालकाण्ड" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १५:
सिवँ कृपासागर ससुर कर संतोषु सब भाँतिहिं कियो. पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो ॥
दो\. नाथ उमा मन प्रान सम गृहकिंकरी करेहु. छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बरु देहु ॥
 
१०१ ॥
बहु बिधि संभु सास समुझाई. गवनी भवन चरन सिरु नाई ॥
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जाचक सकल संतोषि संकरु उमा सहित भवन चले. सब अमर हरषे सुमन बरषि निसान नभ बाजे भले ॥
दो\. चले संग हिमवंतु तब पहुँचावन अति हेतु. बिबिध भाँति परितोषु करि बिदा कीन्ह बृषकेतु ॥
 
१०२ ॥
तुरत भवन आए गिरिराई. सकल सैल सर लिए बोलाई ॥
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यह उमा संगु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं. कल्यान काज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं ॥
दो\. चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु. बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु ॥
 
१०३ ॥
संभु चरित सुनि सरस सुहावा. भरद्वाज मुनि अति सुख पावा ॥
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पनु करि रघुपति भगति देखाई. को सिव सम रामहि प्रिय भाई ॥
दो\. प्रथमहिं मै कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार. सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार ॥
 
१०४ ॥
मैं जाना तुम्हार गुन सीला. कहउँ सुनहु अब रघुपति लीला ॥
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परम रम्य गिरिबरु कैलासू. सदा जहाँ सिव उमा निवासू ॥
दो\. सिद्ध तपोधन जोगिजन सूर किंनर मुनिबृंद. बसहिं तहाँ सुकृती सकल सेवहिं सिब सुखकंद ॥
 
१०५ ॥
हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं. ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं ॥
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भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी. आननु सरद चंद छबि हारी ॥
दो\. जटा मुकुट सुरसरित सिर लोचन नलिन बिसाल. नीलकंठ लावन्यनिधि सोह बालबिधु भाल ॥
 
१०६ ॥
बैठे सोह कामरिपु कैसें. धरें सरीरु सांतरसु जैसें ॥
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दो\. प्रभु समरथ सर्बग्य सिव सकल कला गुन धाम ॥
जोग ग्यान बैराग्य निधि प्रनत कलपतरु नाम ॥
 
१०७ ॥
जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी. जानिअ सत्य मोहि निज दासी ॥
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रामु सो अवध नृपति सुत सोई. की अज अगुन अलखगति कोई ॥
दो\. जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि. देख चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि ॥
 
१०८ ॥
जौं अनीह ब्यापक बिभु कोऊ. कबहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ ॥
Line १०० ⟶ १०८:
कहहु पुनीत राम गुन गाथा. भुजगराज भूषन सुरनाथा ॥
दो\. बंदउ पद धरि धरनि सिरु बिनय करउँ कर जोरि. बरनहु रघुबर बिसद जसु श्रुति सिद्धांत निचोरि ॥
 
१०९ ॥
जदपि जोषिता नहिं अधिकारी. दासी मन क्रम बचन तुम्हारी ॥
"https://sa.wikisource.org/wiki/रामायण_बालकाण्ड" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्