"अग्निपुराणम्/अध्यायः ११२" इत्यस्य संस्करणे भेदः

<poem><span style="font-size: 14pt; line-height: 200%">अथ द्वादशाधिकशततमोऽध्या... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
 
No edit summary
 
पङ्क्तिः ६:
रुद्र उवाच
गौरीक्षेत्रं न मुक्तं वै अविमुक्तं ततः स्मृतं ।११२.००२
<small><small>- - - - -- - - -- - - --
टिप्पणी
३ वाराणसीमिति ख.. , घ.. च
४ वसतां शृणुतां हरिमिति ग.. , घ.. , ङ.. च
- - -- - - -- - -- - -- -</small></small>
जप्तं तप्तं दत्तममविमुक्ते विलाक्षयं ॥११२.००२
अश्मना चरणौ हत्वा वसेत्काशीन्न हि त्यजेत्(१) ।११२.००३
पङ्क्तिः २२:
अत्र स्नानं जपो होमो मरणं देवपूजनं ।११२.००७
श्राद्धं दानं निवासश्च यद्यत्स्याद्भुक्तिमुक्तिदं(८) ॥११२.००७
<small><small>- - - -- -- - -- - - -- -- - - -- - - -
टिप्पणी
१ काशीं तु न हि सन्त्यजेदिति ज..
पङ्क्तिः ३२:
७ द्वयोर्मध्ये इति ख..
८ यद्वत्स्याद्भुक्तिमुक्तिदमिति ङ..
- - --- - -- - - -- - -- -- - -- - - -</small></small>
इत्याग्नेये महापुराणे वाराणसीमाहात्म्यं नाम द्वादशाधिकशततमोऽध्यायः ॥
</span></poem>
"https://sa.wikisource.org/wiki/अग्निपुराणम्/अध्यायः_११२" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्