"अग्निपुराणम्/अध्यायः ७४" इत्यस्य संस्करणे भेदः
Content deleted Content added
No edit summary |
No edit summary |
||
पङ्क्तिः १२६:
आधारशक्तिमङ्कुरनिभां कूर्मशिलास्थितां ।७४.०४४
यजेद्ब्रह्मशिलारूढं शिवस्यानन्तमासनं ॥७४.०४४
विचित्रकेशप्रख्यानमन्योन्यं पृष्टदर्शिनः ।७४.०४५*
कृतत्रेतादिरूपेण शिवस्यासनपादुकां ॥७४.०४५
धर्मं ज्ञानञ्च वैराग्यमैश्वर्यञ्चाग्निदिङ्मुखान् ।७४.०४६
पङ्क्तिः २३४:
</poem>
{{अग्निपुराणम्}}
== ==
*७४.४५ शिव के सिंहासन के रूप में जो मञ्च या चौकी है, उसके चार पाये हैं जो विचित्र सिंह की सी आकृति से सुशोभित होते हैं। वे सिंह मण्डलाकार में स्थित रहकर अपने आगवाले के पृष्ठभाग को ही देखते हैं तथा सत्ययुग, त्रेता,द्वापर और कलियुग - इन चार युगों के प्रतीक हैं।- अग्निपुराण(कल्याण विशेषाङ्क वर्ष ४४)
|