"श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः १०/पूर्वार्धः/अध्यायः ४५" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ८६:
सर्वं नरवरश्रेष्ठौ सर्वविद्याप्रवर्तकौ
सकृन्निगदमात्रेण तौ सञ्जगृहतुर्नृप ३५
अहोरात्रैश्चतुःषष्ट्या संयत्तौ तावतीः कलाः*
गुरुदक्षिणयाचार्यं छन्दयामासतुर्नृप ३६
द्विजस्तयोस्तं महिमानमद्भुतं
पङ्क्तिः १३१:
 
[[वर्गः:श्रीमद्भागवत महापुराण]]
 
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{{टिप्पणी|
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* चौंसठ कलाएँ ये हैं
१ गानविद्या,
२ वाद्य-भाँति-भाँति के बाजे बजाना,
३ नृत्य,
४ नाट्य,
५ चित्रकारी,
६ बेल-बूटे बनाना,
७ चावल और पुष्पादि से पूजा के उपहार की रचना करना,
८ फूलोंकी सेज बनाना,
९ दाँत, वस्त्र और अङ्गों को रँगना,
१० मणियों की फर्श बनाना,
११ शय्या-रचना,
१२ जलको बाँध देना,
१३ विचित्र सिद्धियाँ दिखलाना,
१४ हार-माला आदि बनाना,
१५ कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना,
१६ कपड़े और गहने बनाना,
१७ फूलों के आभूषणों से शृङ्गार करना,
१८ कानों के पत्तों की रचना करना,
१९ सुगन्धित वस्तुएँ—इत्र, तैल आदि बनाना,
२० इन्द्रजाल-जादूगरी,
२१ चाहे जैसा वेष धारण कर लेना,
२२ हाथ की फुर्ती के काम,
२३ तरह-तरह की खाने की वस्तुएँ बनाना,
२४ तरह-तरह के पीने के पदार्थ बनाना,
२५ सूई का काम,
२६ कठपुतली बनाना, नचाना,
२७ पहेली,
२८ प्रतिमा आदि बनाना,
२९ कूटनीति,
३० ग्रन्थों के पढ़ाने की चातुरी,
३१ नाटक, आख्यायिका आदि की रचना करना,
३२ समस्यापूर्ति करना,
३३ पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना,
३४ गलीचे, दरी आदि बनाना,
३५ बढ़ई की कारीगरी,
३६ गृह आदि बनाने की कारीगरी,
३७ सोने, चाँदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा,
३८ सोना-चाँदी आदि बना लेना,
३९ मणियों के रंग को पहचानना,
४० खानों की पहचान,
४१ वृक्षों की चिकित्सा,
४२ भेड़ा मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति,
४३ तोता-मैना आदि की बोलियाँ बोलना,
४४ उच्चाटन की विधि,
४५ केशों की सफाई का कौशल,
४६ मुट्ठी की चीज या मन की बात बता देना,
४७ म्लेच्छ-काव्यों का समझ लेना,
४८ विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान,
४९ शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों के उत्तर में शुभाशुभ बतलाना,
५० नाना प्रकारके मातृकायन्त्र बनाना,
५१ रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना,
५२ साङ्केतिक भाषा बनाना,
५३ मन में कटकर चना करना,
५४ नयी-नयी बातें निकालना,
५५ छल से काम निकालना,
५६ समस्तं कोशों का ज्ञान,
५७ समस्त छन्दों का ज्ञान,
५८ वस्त्रोंको छिपाने या बदलने की विद्या,
५९ द्यूत क्रीड़ा,
६० दूर के मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण कर लेना,
६१ बालकों के खेल,
६२ मन्त्रविद्या,
६३ विजय प्राप्त कराने वाली विद्या,
६४ वेताल आदि को वश में रखने की विद्या ।
 
 
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