"श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः १०/पूर्वार्धः/अध्यायः ४५" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १५८:
करतल एवं पदतलों में जो रेखामय चक्रादि चिह्न हैं, उन्हें ‘अंकोत्थ-सल्लक्षण कहा जाता है। श्रीकृष्ण के वामचरण में शंख, आकाश, ज्या-हीन धनुष, गोष्पद, त्रिकोण, चार कलश, अर्द्धचन्द्र एवं मत्स्य के चिह्न हैं। दक्षिणपद में चक्र, ध्वजा, अंकुश, वज्र, यव, ऊर्ध्वरेखा, छत्र, चार स्वास्तिक, जम्बुफल एवं अष्टकोण के चिह्न हैं। इसी प्रकार उनके दाहिने हाथ में परमायु रेखा, सौभाग्य रेखा, भोग रेखा एवं पांच अंगुलियों के पुरों पर पांच शंख, जौ, चक्र, गदा, ध्वजा, तलवार, बरछी, अंकुश, कल्पवृक्ष तथा बाण के चिह्न हैं। बायें हाथ में परमायु, सौभाग्य एवं भोग रेखाएँ, नन्द्यावर्त, कमल तथा छत्र, हल, यूप, स्वास्तिक, प्रत्यञ्चारहित धनुष, अर्द्धचन्द्र तथा मत्स्य के चिह्न हैं-ये सब् श्रीकृष्ण में अंकोत्थ-गुण हैं।।२३।। - भक्तिरसामृतसिन्धु(दक्षिणविभाग, प्रथमलहरी), टीका - श्रीश्यामदास(प्रकाशक - श्रीहरिनाम संकीर्तन मण्डल, वृन्दावन)
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