"पृष्ठम्:हम्मीरमहाकाव्यम्.pdf/१२८" इत्यस्य संस्करणे भेदः
पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
- | + | पुष्टितम् | |
पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः ८: | पङ्क्तिः ८: | ||
::: पंडोर्विदुरवत्तस्य राज्ञोऽभूदनुजो जयी । |
::: पंडोर्विदुरवत्तस्य राज्ञोऽभूदनुजो जयी । |
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::: भोजदेवाभिधः |
::: भोजदेवाभिधः खड्ग-ग्राहीत्यपरनामभाक् ॥ १५४ ॥ |
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::: धर्मसिंहपदं तस्मै तुष्टोथ प्रददे नृपः । |
::: धर्मसिंहपदं तस्मै तुष्टोथ प्रददे नृपः । |
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पङ्क्तिः २८: | पङ्क्तिः २८: | ||
::: तं प्राप्तावसरं किंतु पार्थिवं प्रार्थयेरिति ॥ १६० ॥ |
::: तं प्राप्तावसरं किंतु पार्थिवं प्रार्थयेरिति ॥ १६० ॥ |
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::: आसाद्यते |
::: आसाद्यते विभो धर्म-सिंहश्र्येत्स्वपदं पुनः । |
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::: मृतेभ्यो द्विगुणानश्वा न्तदसावानयेत्पुनः ॥ १६१ ॥ |
::: मृतेभ्यो द्विगुणानश्वा न्तदसावानयेत्पुनः ॥ १६१ ॥ |
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पङ्क्तिः ३७: | पङ्क्तिः ३७: | ||
::: तृष्णाशंझामरुद्याव न्न भजेदुन्मदिष्णुतां ॥ १६६ ॥ |
::: तृष्णाशंझामरुद्याव न्न भजेदुन्मदिष्णुतां ॥ १६६ ॥ |
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::: तृष्णावल्लिरियं कापि नवैव प्रतिभासते । |
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::: सद्विवेककुठारोगा न्न वरं यत्र कुंठतां ॥१६४॥ |
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