"पृष्ठम्:हम्मीरमहाकाव्यम्.pdf/१३९" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
- | + | पुष्टितम् | |
पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः २: | पङ्क्तिः २: | ||
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::: तावद्गर्जतु जाग्रन्मदभरतरलाश्चंचला वीरमाद्या |
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::: वीराः प्रत्यर्थिवीरावलिदलनकलाकेलिकंडूलहस्ताः । |
::: वीराः प्रत्यर्थिवीरावलिदलनकलाकेलिकंडूलहस्ताः । |
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::: ज्यारावैर्विस्फुरद्भिर्जगदखिलमपि प्रापयन्नेडभावं |
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::: यावन्नाल्लावदीनः किरति शरभरं प्रावृषेण्यच्छटावत् ॥ ८४ ॥ |
::: यावन्नाल्लावदीनः किरति शरभरं प्रावृषेण्यच्छटावत् ॥ ८४ ॥ |
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पङ्क्तिः १५: | पङ्क्तिः १५: | ||
::: रेरे हम्मीर वीरस्त्वमसि परमसौ सांप्रतं वीरता ते |
::: रेरे हम्मीर वीरस्त्वमसि परमसौ सांप्रतं वीरता ते |
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::: नूनं व्यक्तीभवित्री मम नयनपथे प्राप्तपांथव्रतस्य । |
::: नूनं व्यक्तीभवित्री मम नयनपथे प्राप्तपांथव्रतस्य । |
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::: भ्राम्यत्युच्चैर्वनति मदमलिनकपोलस्थलो हंत दंती |
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::: तावद्यावन्मृगेंद्रः पतति न पुरतो जृंभया व्यात्तवक्त्रा ॥ ८६ ॥ |
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::: आसारः कमलाकरे मृगगणे सिंहः |
::: आसारः कमलाकरे मृगगणे सिंहः कुठारस्तरौ। |
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::: भास्वान्संतमसे पविः क्षितिधरे दावानलः कानने । |
::: भास्वान्संतमसे पविः क्षितिधरे दावानलः कानने । |
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::: यत्कर्म प्रतनेति संगरभरं प्राप्तस्तदेवाधुना |
::: यत्कर्म प्रतनेति संगरभरं प्राप्तस्तदेवाधुना |
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::: कुर्वेहं भटसंकुलेपि निखिले श्रीचाहमाने कुले ॥ ८७ ॥ |
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::: तत्कालं यवनावनीपतिरथ प्रोल्लासिमानान् स्फुरन् |
::: तत्कालं यवनावनीपतिरथ प्रोल्लासिमानान् स्फुरन् |
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::: मानान्स्वेन शयाप्सुजेन लिखितान् विश्राण्य संप्रेषितैः । |
::: मानान्स्वेन शयाप्सुजेन लिखितान् विश्राण्य संप्रेषितैः । |
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::: देशेभ्यो निखिलेभ्य एव निखिलान् |
::: देशेभ्यो निखिलेभ्य एव निखिलान् दूतै: प्रभूतैरसौ |
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::: वीरानाव्हयतिस्म विस्मयकरप्रोहामदोर्विक्रमान् ॥ ८८ ॥ |
::: वीरानाव्हयतिस्म विस्मयकरप्रोहामदोर्विक्रमान् ॥ ८८ ॥ |
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पङ्क्तिः ३५: | पङ्क्तिः ३५: | ||
{{c|{{larger|'''॥ अथैकादशः सगैः ॥'''}}}} |
{{c|{{larger|'''॥ अथैकादशः सगैः ॥'''}}}} |
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::: अंगस्तिलंगो मगधो मसूरः |
::: अंगस्तिलंगो मगधो मसूरः कलिंगवंगौ भटमेदपाटौ । |
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::: पंचाल बंगाल थमीम भिल्ल नेपाल डाहाल हिमाद्रिमध्याः ॥ १ ॥ |
::: पंचाल बंगाल थमीम भिल्ल नेपाल डाहाल हिमाद्रिमध्याः ॥ १ ॥ |
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