"पृष्ठम्:हम्मीरमहाकाव्यम्.pdf/१५६" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
- | + | पुष्टितम् | |
पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
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स्फारकर्पूरपारीकं |
स्फारकर्पूरपारीकं चंदनक्षोदमेदुरं। |
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मृगनाभिस्फुरन्नाभि पदंगणमराजत ।। ८ || |
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नृपोरस्थेंद्रनीलाश्म-दाम यत्स्फठिकाश्मसु । |
नृपोरस्थेंद्रनीलाश्म-दाम यत्स्फठिकाश्मसु । |
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निरीक्ष्य बिंबितं सर्प-भ्रांत्या |
निरीक्ष्य बिंबितं सर्प-भ्रांत्या लोकाश्वकंपिरे || ९ || |
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अधो निबद्धभूभाग-प्रतिबिंबिस्वतामिषात् । |
अधो निबद्धभूभाग-प्रतिबिंबिस्वतामिषात् । |
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पङ्क्तिः १६: | पङ्क्तिः १६: | ||
व्यक्ततामभजत्तत्र परमात्मा गुणैरिव ।। १२ ।। |
व्यक्ततामभजत्तत्र परमात्मा गुणैरिव ।। १२ ।। |
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मार्दंगिका मृदंगानि वीणामपि च वैणिकाः । |
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अपि |
अपि वैणविका वेणुं यथातालमवीवदन्ं ॥ १३ ॥ |
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रणद्वेणुझणत्कारा-नुकारिप्रसरत्स्वराः । |
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रणद्देणुझणत्कारा-नुकारिप्रसरस्वराः । |
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गायना |
गायना वीरहम्मीरकीर्तिस्फूत्तिंगासिषुः ।। १४ ।। |
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मिथोपि स्पर्धया |
मिथोपि स्पर्धया वर्धमानत्वादिव संयते । |
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दृढं चोलांतरीयाभ्यां स्तनश्रेणीप्रबिभ्रती ॥ १५ ॥ |
दृढं चोलांतरीयाभ्यां स्तनश्रेणीप्रबिभ्रती ॥ १५ ॥ |
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वपुर्वल्लिविलासेन मूर्छयंतीवः कामिनः। विभिर्विशेषकं |
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कूणिताक्षप्रपातेनोज्जीवयंतीव मन्मथं ॥ १६ ॥ |
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प्रविश्य तत्र सभ्यानां मनसीव प्रमोदिनी । |
प्रविश्य तत्र सभ्यानां मनसीव प्रमोदिनी । |
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प्रवृत्ता नर्तितुं धारा देवी सोत्पश्य नर्तकी ।। १७ ।। |
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तस्या लास्येन |
तस्या लास्येन वेल्लंती रेजिरे पाणिपल्लवाः | |
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मोहनव्रततेः कामं स्फुरंतः पल्लवा इव ॥ १८ ॥ |
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गोलकत्रितयोच्छाल-च्छलेन भुवनत्रयीं । |
गोलकत्रितयोच्छाल-च्छलेन भुवनत्रयीं । |