"पृष्ठम्:हम्मीरमहाकाव्यम्.pdf/१५९" इत्यस्य संस्करणे भेदः
पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
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शकाधीशः शकैरेतां सुरंगां यैरचीखनत् । |
शकाधीशः शकैरेतां सुरंगां यैरचीखनत् । |
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पङ्क्तिः ११: | पङ्क्तिः ११: | ||
दिवानिशं स योगीवा–शेषसौख्यपराङ्मुखः । |
दिवानिशं स योगीवा–शेषसौख्यपराङ्मुखः । |
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दृष्टिमेकां ददौ दुर्गे परां च |
दृष्टिमेकां ददौ दुर्गे परां च क्षितिमंडले ॥ ५० ॥ |
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दुर्गाग्रहणदुःखाग्निप्लुष्ठमस्याथ मानसं । |
दुर्गाग्रहणदुःखाग्निप्लुष्ठमस्याथ मानसं । |
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प्रसेक्तुमिव पाथोदः प्रोन्ननाम |
प्रसेक्तुमिव पाथोदः प्रोन्ननाम नभोंगणे ।। ५१ ।। |
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बर्हिणो व्यदधन्केका उन्नीयोन्नीय कंधरां । |
बर्हिणो व्यदधन्केका उन्नीयोन्नीय कंधरां । |
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पङ्क्तिः ३७: | पङ्क्तिः ३७: | ||
वियोगिनीनां लावण्यं जगालेति किमद्भुतं ।। ५८ । |
वियोगिनीनां लावण्यं जगालेति किमद्भुतं ।। ५८ । |
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शंभो: परिभवात्त्यक्त- |
शंभो: परिभवात्त्यक्त-मधुचापोऽधुना स्मरः । |
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वर्षासखस्ताडिब्दंभा दासिश्रममिवातनोत् ॥५९॥ |
वर्षासखस्ताडिब्दंभा दासिश्रममिवातनोत् ॥५९॥ |
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