"पृष्ठम्:शङ्करविजयः.djvu/१०३" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
- | + | परिष्कृतम् | |
पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
{{center|'''<big><big><big>॥ अथ सप्तमस्सर्गः ॥</big></big></big>'''}} |
{{center|'''<big><big><big>॥ अथ सप्तमस्सर्गः ॥</big></big></big>'''}} |
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त्वं नासि देहो घठवद्ध्यनात्मा |
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त्वं न|से देह घठवडयनामा |
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:रूपादिमत्त्वादिह जातिमत्त्वात् । |
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कपादिमत्त्वादिह जातिमवात् । |
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ममेति भेदप्रथनादभेद- |
ममेति भेदप्रथनादभेद- |
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:संप्रत्ययं विद्धि विपर्ययं भोः ॥ १ ॥ |
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लोप्यो हि <sup>1</sup>लोपव्यतिरिक्तलोपको |
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दृष्टो घटादिः किल तादृशी तनुः । |
:दृष्टो घटादिः किल तादृशी तनुः । |
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दृश्यत्वहेतोर्यतिरेसधने |
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दृश्यत्वहेतोर्व्यतिरेकसाधने |
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ततश्शरीरे कथमात्मतागतिः ॥ २ ॥ |
:ततश्शरीरे कथमात्मतागतिः ॥ २ ॥ |
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दानादिंवत्कथममीषु तवात्मभावः । |
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:दात्रादिवत्कथममीषु तवात्मभावः । |
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यद्यात्मतैषां समुदायगा स्यात् |
यद्यात्मतैषां समुदायगा स्यात् |
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एकव्ययेनापि भवेन्न |
:एकव्ययेनापि भवेन्न तद्धीः । |
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प्रत्येकमात्मत्वमुदीर्यते चेत् |
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प्रत्येकमारमत्वमुदीर्यते चेत् |
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:नश्येच्छरीरं बहुनायकत्वात् ॥ ४ ॥ |
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नश्येच्छीरं बहुनायक्रवात् ॥ ४ ॥ |
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आत्मत्वमन्यतमगं यदि चक्षुरादे- |
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:श्चक्षुर्विनाशसमये स्मरणं न हि स्यात् । |
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एकाश्रयत्वनियमात्स्मरणानुभूत्यो- |
एकाश्रयत्वनियमात्स्मरणानुभूत्यो- |
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:र्दृष्टश्रुतार्थविषयाधि<sup>4</sup> गतिश्च न स्यात् ॥ ५ ॥ |
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'का . लोप्य । |
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