"पृष्ठम्:भामहालङ्कारः.pdf/१४" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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भामहालङ्कारे| पुज्रीभूतमिव ध्वान्तमेष भाति मतङ्गजः ।... |
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'''सरः शरत्प्रसन्नाम्भो नभःखण्डमिवोज्झितम् ॥५१॥ अथ लिङ्गवचभेदावुच्येते सविपर्ययौ । हीनाधिकत्वात् स हेधा त्रयमप्युच्यते यथा ॥१२॥ अविगाह्योऽसि नारीणामनन्यमनसामपि । विषमपलभिन्नार्मिरापगेवेत्तितीर्थतः ॥ ५३॥ क्वचिदग्रे प्रसरता क्वचिदापत्य निम्नता । शुनेत्र सारङ्गकुलं त्वया भिन्न द्विषां बलम् ॥१४॥ अयं पद्मासनासीनश्चक्रवाको विराजते ।। युगादौ भगवान् ब्रह्मा विनिर्मित्सुरिव प्रजाः ॥५५॥ ननूपमीयते पाणिः कमलेन विकासिना ।''' |
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'''अधरो विद्रुमच्छेदभासा बिम्बफलेन च ॥ ५६ ।। . • उच्यते काममस्तीदं किन्तु स्त्रीपुसयारयम् । विधिनभिमतोऽन्यैस्तु त्रयाणामपि नेष्यते ॥५॥ से पीतवासाः प्रगृहीतशाङ्ग मनोज्ञभीम वपुराप कृष्णः । शतहदेन्द्रायुधवान्निशायां संसृज्यमानश्शशिनैव मेघः५८।''' |
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'''| रामशर्मणः ।। शशिनो ग्रहणादेतदाधिक्यं किल नह्ययम् । निर्दिष्ट उपमेयेऽर्थे वाच्यो वा जलदोऽत्रं तु ॥ ५९॥ ने सर्वसारूप्यमिति विस्तरेणोदितो विधिः ।''' |
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पुटतलम् (अव्यचितम्) : | पुटतलम् (अव्यचितम्) : | ||
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अस्य अपरं नाम काव्यालङ्कारः इति। |