"पृष्ठम्:भामहालङ्कारः.pdf/२१" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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'''तृतीयः परिच्छेदः । । मार्गदुमा महान्तश्च परेषामेव भूतये ॥ १८ ॥ उन्नतालोकदयिता महान्तः प्राज्यवर्षिणः ।। शमयन्ति क्षितेस्ताप सुराजानो घना इव ॥ १९ ॥ रत्नवत्वादगाधत्वात स्वमयदाविलङ्घनात् । बहुसात्वाश्रयत्वाच्च सदृशत्वमुदन्वता ॥ २० ॥ अपह्नुतिरभीष्टा च किञ्चिदन्तर्गतोपमा । भूतार्थापह्ववादस्याः क्रियते चाभिधा यथा ॥ २१ ॥ नेयं विरौति भृङ्गाली मदेन मुखरा मुहुः । अयमाकृष्यमाणस्य कन्दर्पधनुष ध्वनिः ॥ २२ ॥ एकदंशस्य विगमे या गुणान्तरसंस्थितिः । विशेषप्रथनायासौ विशेषोक्तिर्मता यथा ॥ २३ ॥.. स एकस्त्रीणि जयति जगन्ति कुसुमायुधः । हरतापि तनुं यस्य शम्भुना न हृतं बलम् ॥ २४ ॥ गुणस्य वा क्रियाया वा विरुद्धोन्यक्रियाभिधा। या विशेषाभिधानाय विरोधं तं विदुर्बुधाः ॥२५॥ उपान्तरूढौपवनच्छायाशीतापि धूरसौ । विदूरदेशानपि वः सन्तापयति विहिषः ॥ २६ ॥''' |
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'''न्यूनस्थापि विशिष्टेन गुणसाम्यविवक्षया। | तुल्यकार्य क्रियायोगादित्युक्ता तुल्ययोगिता ॥ २७ ॥''' |
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'''१ आन्दमाणस्मे ।।''' |
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पुटतलम् (अव्यचितम्) : | पुटतलम् (अव्यचितम्) : | ||
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अस्य अपरं नाम काव्यालङ्कारः इति। |