"यजुर्वेदभाष्यम् (दयानन्दसरस्वतीविरचितम्)/अध्यायः १/मन्त्रः ७" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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{{यजुर्वेदभाष्यम् (दयानन्दसरस्वतीविरचितम्)/अध्यायः १}}
 
'''धूरसीत्यस्यप्रत्युष्टमित्यस्य ऋषिः स एव। अग्निर्देवता।यज्ञो [निचृद्]देवता। अतिजगतीप्राजापत्या जगती छन्दः। निषादः स्वरः॥<span lang="EN-GB"></span>'''
 
'''सर्वैर्दुष्टगुणानां दुष्टमनुष्याणां च निषेधः कर्त्तव्य इत्युपदिश्यते॥<span lang="EN-GB"></span>'''
 
सब मनुष्यों को उचित है कि दुष्ट गुण और दुष्ट स्वभाव वाले मनुष्यों का निषेध करें, इस बात का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥<span lang="EN-GB"></span>
 
'''प्रत्यु॑ष्ट॒ꣳरक्षः॒ प्रत्यु॑ष्टा॒ऽअरा॑तयो॒ निष्ट॑प्त॒ꣳरक्षो॒ निष्ट॑प्ता॒ऽअरा॑तयः।<span lang="EN-GB"></span>'''
 
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'''भावार्थः—''' ईश्वर आज्ञा देता है कि सब मनुष्यों को अपना दुष्ट स्वभाव छोड़कर विद्या और धर्म के उपदेश से औरों को भी दुष्टता आदि अधर्म के व्यवहारों से अलग करना चाहिये तथा उन को बहु प्रकार का ज्ञान और सुख देकर सब मनुष्य आदि प्राणियों को विद्या, धर्म, पुरुषार्थ और नाना प्रकार के सुखों से युक्त करना चाहिये॥७॥<span lang="EN-GB"></span>
 
'''धूरसीत्यस्य ऋषिः स एव। अग्निर्देवता। [निचृद्] अतिजगती छन्दः। निषादः स्वरः॥<span lang="EN-GB"></span>'''
 
'''अथ सर्वविद्याधारकेश्वरो विद्यासाधनीभूतो भौतिकोऽग्निश्चोपदिश्यते॥<span lang="EN-GB"></span>'''
 
सब क्रियाओं के धारण करनेवाले ईश्वर और पदार्थविद्या की सिद्धि के हेतु भौतिक अग्नि का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥<span lang="EN-GB"></span>