"यजुर्वेदभाष्यम् (दयानन्दसरस्वतीविरचितम्)/अध्यायः १/मन्त्रः ११" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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{{यजुर्वेदभाष्यम् (दयानन्दसरस्वतीविरचितम्)/अध्यायः १}}
'''भूताय त्वेति ऋषिः स एव। अग्निर्देवता। स्वराड् जगती छन्दः। निषादः स्वरः॥<span lang="EN-GB"></span>'''
'''यज्ञशालादिगृहाणि कीदृशानि रचनीयानीत्युपदिश्यते॥<span lang="EN-GB"></span>'''
उन यज्ञशाला आदिक घर कैसे बनाने चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥<span lang="EN-GB">᳕᳕</span>
'''भू॒ताय॑ त्वा॒ नारा॑तये॒ स्व᳖रभि॒विख्ये॑षं॒ दृꣳह॑न्तां॒ दुर्याः॑ पृथि॒व्यामु॒र्व᳕᳕न्तरि॑क्ष॒मन्वे॑मि।<span lang="EN-GB"></span>'''
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इस मन्त्र में महीधर ने भ्रांति से (अभिविख्येषम्) यह पद (ख्या प्रकथने) इस धातु का दर्शन अर्थ में माना है। यह धातु के अर्थ से ही विरुद्ध होने करके अशुद्ध है॥११॥<span lang="EN-GB">᳕᳕</span>
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