"यजुर्वेदभाष्यम् (दयानन्दसरस्वतीविरचितम्)/अध्यायः २९/मन्त्रः ३६" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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<p style="text-align: justify;"><strong>पदपाठः—</strong>स॒द्यः। जा॒तः। वि। अ॒मि॒मी॒त॒। य॒ज्ञम्। अ॒ग्निः। दे॒वाना॑म्। अ॒भ॒व॒त्। पु॒रो॒गा इति॑ पुरः॒ऽगाः। अ॒स्य। होतुः॑। प्र॒दिशीति॑ प्र॒ऽदिशि॑। ऋ॒तस्य॑। वा॒चि। स्वाहा॑कृतमिति॒ स्वाहा॑ऽकृतम्। ह॒विः। अ॒द॒न्तु॒। दे॒वाः॥३६॥</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>पदार्थः—</strong>(सद्यः) शीघ्रम् (जातः) प्रकटीभूतः सन् (वि) विशेषेण (अमिमीत) मिमीते (यज्ञम्) अनेकविधव्यवहारम् (अग्निः) विद्याप्रकाशितो विद्वान् (देवानाम्) विदुषाम् (अभवत्) भवति (पुरोगाः) अग्रगामी (अस्य) (होतुः) आदातुः (प्रदिशि) प्रदिशन्ति यया तस्याम् (ऋतस्य) सत्यस्य (वाचि) वाण्याम् (स्वाहाकृतम्) सत्येन निष्पादितं कृतहोमं वा (हविः) अत्तव्यमन्नादिकम् (अदन्तु) भुञ्जताम् (देवाः) विद्वांसः॥३६॥</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>अन्वयः—</strong>हे मनुष्याः! यस्सद्योजातोऽग्निर्होतुर्ऋतस्य प्रदिशि वाचि यज्ञं व्यमिमीत, <span>देवानां पुरोगा अभवदस्य स्वाहाकृतं हविर्देवा अदन्तु</span>, <span>तं सर्वोपरि विराजमानं मन्यध्वम्॥३६॥</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>भावार्थः—</strong>अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यः सर्वेषां प्रकाशकानां मध्ये प्रकाशकोऽस्ति, <span>तथा यो विद्वत्सु विद्वान् सर्वोपकारी जनो भवति</span>, <span>स एव सर्वेषामानन्दस्य भोजयिता भवति॥३६॥</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>पदार्थः—</strong>हे मनुष्यो! जो (सद्यः) शीघ्र (जातः) प्रसिद्ध हुआ (अग्निः) विद्या से प्रकाशित विद्वान् (होतुः) ग्रहण करनेहारे पुरुष के (ऋतस्य) सत्य का (प्रदिशि) जिससे निर्देश किया जाता है, <span>उस (वाचि) वाणी में (यज्ञम्) अनेक प्रकार के व्यवहार को (वि</span>, <span>अमिमीत) विशेष कर निर्माण करता और (देवानाम्) विद्वानों में (पुरोगाः) अग्रगामी (अभवत्) होता है (अस्य) इसके (स्वाहाकृतम्) सत्य व्यवहार से सिद्ध किये वा होम किये से बचे (हविः) भोजन के योग्य अन्नादि को (देवाः) विद्वान् लोग (अदन्तु) खायें</span>, <span>उसको सर्वोपरि विराजमान मानो॥३६॥</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>भावार्थः—</strong>इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य सब प्रकाशक पदार्थों के बीच प्रकाशक है, <span>वैसे जो विद्वानों में विद्वान् सब का उपकारी जन होता है</span>, <span>वही सब को आनन्द का भुगवाने वाला होता है॥३६॥</span></p>
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