"महाभारतम्-01-आदिपर्व-002" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ५०:
<tr><td><p> त्रयो गुल्मा गणो नाम वाहिनी तु गणास्त्रयः।<BR>स्मृतास्तिस्रस्तु वाहिन्यः पृतनेति विचक्षणैः।। <td> 1-2-21a<BR>1-2-21b </p></tr>
<tr><td><p> चमूस्तु पृतनास्तिस्रस्तिस्रश्चम्वस्त्वनीकिनी।<BR>अनीकिनीं दशगुणां प्राहुरक्षौहिणीं बुधाः।। <td> 1-2-22a<BR>1-2-22b </p></tr>
<tr><td><p> अक्षौहिण्याः प्रसंख्याता रथानां द्विजसत्तमाः।<BR>संख्यागणिततत्त्वज्ञैः सहस्राण्येकविंशतिः।। <td> 1-2-23a<BR>1-2-23b </p></tr>
पङ्क्तिः ६३:
<tr><td><p> एतया संख्यया ह्यासन्कुरुपाण्डवसेनयोः।<BR>अक्षौहिण्यो द्विजश्रेष्ठाः पिण्डिताष्टादशैव तु।। <td> 1-2-28a<BR>1-2-28b </p></tr>
<tr><td><p> समेतास्तत्र वै देशे तत्रैव निधं गताः।<BR>कौरवान्कारणं कृत्वा कालेनाद्भुतकर्मणा।। <td> 1-2-29a<BR>1-2-29b </p></tr>
<tr><td><p> अहानि युयुधे भीष्मो दशैव परमास्त्रवित्।<BR>अहानि पञ्च द्रोणस्तु ररक्ष कुरुवाहिनीम्।। <td> 1-2-30a<BR>1-2-30b </p></tr>
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