"लघुसिद्धान्तकौमुदी/अव्ययीभावसमासः" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १५:
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'''अव्ययीभावः॥ लसक_९१० = पा_२,१.५॥'''<BR>
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'''अव्ययं विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यृद्ध्यर्थाभावात्ययासंप्रतिशब्दप्रादुर्भावपश्चाद्यथानुपूर्व्ययौगपद्यसादृश्यसम्पत्तिसाकल्यान्तवचनेषु॥ लसक_९११ = पा_२,१.६॥'''<BR>
विभक्त्यर्थादिषु वर्तमानमव्ययं सुबन्तेन सह नित्यं समस्यते
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'''प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम्॥ लसक_९१२ = पा_१,२.४३॥'''<BR>
पङ्क्तिः २४:
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'''उपसर्जनं पूर्वम्॥ लसक_९१३ = पा_२,२.३०॥'''<BR>
समासे उपसर्जनं प्राक्प्रयोज्यम्। इत्यधेः प्राक् प्रयोगः। सुपो लुक्। एकदेशविकृतस्यानन्यत्वात्प्रातिपदिकसंज्ञायां स्वाद्युत्पत्तिः।
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'''अव्ययीभावश्च॥ लसक_९१४ = पा_२,४.१८॥'''<BR>
अयं नपुंसकं स्यात्॥<BR>
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अदन्तादव्ययीभावात्सुपो न लुक्, तस्य
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'''तृतीयासप्तम्योर्बहुलम्॥ लसक_९१६ = पा_२,४.५४॥'''<BR>
अदन्तादव्ययीभावात्तृतीयासप्तम्योर्बहुलमम्भावः स्यात्। अधिगोपम्, अधिगोपेन, अधिगोपे वा। कृष्णस्य समीपम् उपकृष्णम्। मद्राणां समृद्धिः सुमद्रम्। यवनानां व्यृद्धिर्दुर्यवनम्। मक्षिकाणामभावो निर्मक्षिकम्।
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'''अव्ययीभावे चाकाले॥ लसक_९१७ = पा_६,३.८१॥'''<BR>
सहस्य सः स्यादव्ययीभावे न तु काले। हरेः सादृश्यं सहरि।
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'''नदीभिश्च॥ लसक_९१८ = पा_२,१.२०॥'''<BR>
पङ्क्तिः ४२:
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'''तद्धिताः॥ लसक_९१९ = पा_४,१.७६॥'''<BR>
आपञ्चमसमाप्तेरधिकारोऽयम्॥<BR>
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'''अव्ययीभावे शरत्प्रभृतिभ्यः॥ लसक_९२० = पा_५,४.१०७॥'''<BR>
शरदादिभ्यष्टच्
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'''अनश्च॥ लसक_९२१ = पा_५,४.१०८॥'''<BR>
पङ्क्तिः ५७:
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'''झयः॥ लसक_९२४ = पा_५,४.१११॥'''<BR>
झयन्तादव्ययीभावाट्टज्वा
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इत्यव्ययीभावः॥ २॥<BR>
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