"ऋग्वेदः सूक्तं १०.१११" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १९५:
 
‘मनीषिणः' ( ऋग्वेद १०. १११, १ ) से आरम्भ तीन सूक्तों ( ऋग्वेद १०. १११-११३ ) में वैरूप ऋषियों ने उस समय इन्द्र का गायन किया जब वह पणियों के विरुद्ध गये ।
 
[[File:Ashtavkra and Janaka.jpg|thumb|Ashtavkra and Janaka]]
 
 
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