"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/१८९" इत्यस्य संस्करणे भेदः
→अपरिष्कृतम्: {{rule}}(प्रविश्य, गुप्तार्यकप्रवहणस्थः ) {{gap}}'''चैटः'''-... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती |
No edit summary |
||
पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः ८: | पङ्क्तिः ८: | ||
::सनिगड़चरणत्वासावशेषापसारः । |
::सनिगड़चरणत्वासावशेषापसारः । |
||
अविदितमधिरूढ़ों यामि साधोस्तु याने । |
अविदितमधिरूढ़ों यामि साधोस्तु याने । |
||
::पंरभृत इव नीड़े रक्षितो चार्यसीभिः ॥ ३ ॥ |
::पंरभृत इव नीड़े रक्षितो चार्यसीभिः ॥ ३ ॥</poem>}}}} |
||
अहो, नगरात्सुदूरमपक्रान्तोऽस्मि; तरिकमस्मात्प्रवहणादवतीर्य वृक्ष- |
अहो, नगरात्सुदूरमपक्रान्तोऽस्मि; तरिकमस्मात्प्रवहणादवतीर्य वृक्ष- |
||
पङ्क्तिः १९: | पङ्क्तिः १९: | ||
{{gap}}'''चेटः'''–इमं तं उजाणं, जाच उवर्शप्पामि । ( उपसृत्य ) अज्ज- |
{{gap}}'''चेटः'''–इमं तं उजाणं, जाच उवर्शप्पामि । ( उपसृत्य ) अज्ज- |
||
मित्तेअ ।। [इदं सदुद्यानम् , यावदुपसर्पमि । आर्य मैत्रेय ! ।] |
मित्तेअ ।। [इदं सदुद्यानम् , यावदुपसर्पमि । आर्य मैत्रेय ! ।]</poem>}}}} |
||
{{gap}}'''विदूषकः'''--भो ! पिअं दे णिवेदेमि । वड्माणओ मंतेदि । |
{{gap}}'''विदूषकः'''--भो ! पिअं दे णिवेदेमि । वड्माणओ मंतेदि । |