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{{block center|{{bold|<poem>दिण्णकलचीलदामे गहिवे अम्हेहिं वज्यपुलिसेहिं । |
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दीवे व्व मंदणे हे थोअं थोअं खलं जादि ॥ २ ॥ |
दीवे व्व मंदणे हे थोअं थोअं खलं जादि ॥ २ ॥</poem>}}}} |
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{{block center|{{bold|<poem>[तरिक न कलय कारणं नववधबन्धनयने निपुणौ । |
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अधिरेण शीर्षच्छेदनशूलारोपेषु कुशलौ स्वः ॥</poem>}}}} |
अधिरेण शीर्षच्छेदनशूलारोपेषु कुशलौ स्वः ॥</poem>}}}} |