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{{gap}}'''विदूषकः'''-ही ही भोः, पदोसमंदमारुदेण पशुबंधोवणीदस्स |
{{gap}}'''विदूषकः'''- ही ही भोः, पदोसमंदमारुदेण पशुबंधोवणीदस्स |
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विअ छागलस्स |
विअ छागलस्स हिअरअं, फुरफुराअदि पदीवो । ( उपसृत्य रदनिकां |
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दृष्ट्वा ) भो रदणिए ! [ आश्चर्य भोः, प्रदोषमन्दमारुतेन |
दृष्ट्वा ) भो रदणिए ! [ आश्चर्य भोः, प्रदोषमन्दमारुतेन पशुबन्धोपनी- |
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तस्येव छागलस्य हृदयम्, फुरफुरायते प्रदीपः । भो रदनिके ! ] |
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{{gap}}'''शकारः''' |
{{gap}}'''शकारः'''— भावे भावे ! मणुश्शे मणुश्शे । [भाव भाव ! मनुष्यो |
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मनुष्यः । ] |
मनुष्यः । ] |
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{{gap}}'''विदूषकः''' |
{{gap}}'''विदूषकः'''— जुत्तं पणेदं, सरिसं ण्णेदं, जं अज्जचारुदत्तस्स दलिद्द- |
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दाए संपदं परपुरिसा गेहूं पवेसिअंति। [युक्तं नेदम् , सदृशं नेदम् , यदा- |
दाए संपदं परपुरिसा गेहूं पवेसिअंति। [युक्तं नेदम् , सदृशं नेदम् , यदा- |
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र्यचारुदत्तस्य दरिद्रतया सांप्रतं परपुरुषा |
र्यचारुदत्तस्य दरिद्रतया सांप्रतं परपुरुषा गेहं प्रविशन्ति । ] |
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परिभवः अथवाऽस्माकम् ?।] |
परिभवः अथवाऽस्माकम् ?।] |
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{{gap}}'''रदनिका''' |
{{gap}}'''रदनिका'''— णं तुम्हाणं जेव्व । [ ननु युष्माकमेव ।] |
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{{gap}}'''विदूषकः''' किं एसो बलकारो ? । [ किमेष बलात्कारः १ । |
{{gap}}'''विदूषकः''' किं एसो बलकारो ? । [ किमेष बलात्कारः १ । |
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{{gap}}'''रदनिका'''-अध |
{{gap}}'''रदनिका'''- अध इं । [ अथ किम् । |
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{{gap}}'''विदूषकः'''- |
{{gap}}'''विदूषकः'''- सच्चं । [ सत्यम् ।] |
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{{gap}}'''रदनिका'''- |
{{gap}}'''रदनिका'''- सच्चं । [ सत्यम् । |
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{{gap}}'''विदषकः'''- |
{{gap}}'''विदषकः'''- ( सक्रोधं दण्डकाष्ठमुद्यम्य ) मा दाव । भो, सके गेहे |
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कुकुरो वि दाव चंडो भोदि, किं उण अहं |
कुकुरो वि दाव चंडो भोदि, किं उण अहं बम्हणॊ । ता एदिणा |
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‘छलि' इति पाठेऽपि शरो दध्र उपरिभागः ॥ इयमिति ॥ ४३ ।। ‘ही ही भो’ |
‘छलि' इति पाठेऽपि शरो दध्र उपरिभागः ॥ इयमिति ॥ ४३ ।। ‘ही ही भो’ |
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अति परितोषे । |
अति परितोषे । पशुबन्धोपनीतस्यॆव छागलस्य हृदयं फुरफुरायति अत्यर्थ प्रकम्पते |
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प्रदीपः ॥ |
प्रदीपः ॥ जुत्तं ण्णॆदं। नः काकौ । सदृशं नेदम् । संपदं सांप्रतम् ॥ किं एसो । किं |
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प्रश्ने। किमेष बलात्कारः? । ॥ मा तावत् । स्वकीयगृहसमीपे कुक्कुरोऽपि बलीयान्भवति। |
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ता ततः । एतॆनास्मादृशजनभागधॆयवक्त्रॆण दण्डकाष्ठॆन दुष्टस्येच; ऋतद्वेषस्य वैरिणॊ |
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मृ ३ |
मृ ३ |