"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/८३" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः १२: | पङ्क्तिः १२: | ||
हि प्रथमाङ्के वर्णितः प्रावारिक इति श्रेयम् ।</ref>ने शून्यान्याभरणस्थानानि परामृश्य ऊर्ध्र्वं प्रेक्ष्य दीर्घं निःश्वस्यायं |
हि प्रथमाङ्के वर्णितः प्रावारिक इति श्रेयम् ।</ref>ने शून्यान्याभरणस्थानानि परामृश्य ऊर्ध्र्वं प्रेक्ष्य दीर्घं निःश्वस्यायं |
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प्रावारको ममोपरि क्षिप्तः ।]''' |
प्रावारको ममोपरि क्षिप्तः ।]''' |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''---कण्णऊरअ |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''---कण्णऊरअ! जाणीहि दाव किं एसो जादीकुसुम- |
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वासिदो पावारओ या वेत्ति । '''| कर्णपूरक ! जानीहि तावत्किमेष जातीसुमवासिवः प्रावारको न वेति ।]''' |
वासिदो पावारओ या वेत्ति । '''| कर्णपूरक ! जानीहि तावत्किमेष जातीसुमवासिवः प्रावारको न वेति ।]''' |
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