"आर्षेयकल्पः/अध्यायः ०५" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ३३१:
अग्न आ नो मित्रायाहीन्द्राग्नी- (सा० ६६०-७९)त्याज्यानि ॥
उच्चा ते (सा० ६७२-४) गायत्रं [https://sa.wikisource.org/s/1z6k चामहीयवं] (ऊ० १.१.१) च। पुनानः सो (सा० ६७५-६) [https://sa.wikisource.org/s/1z6p रौरवं] तिसृषु ( ऊ० १.१.२)। [https://sa.wikisource.org/s/1zeg सदोविशीय](ऊ० १२.१.२०)मेकस्याम् । दुहान ऊध-(सा० ६७६)रिति विष्टारपङ्क्तौ समन्तम् (ऊ० १३. १. १८) । [https://sa.wikisource.org/s/1z6q यौधाजयं] तिसृषु (ऊ० १.१.३) [https://sa.wikisource.org/s/1z6q औशनम]न्त्यम् (ऊ० १. १. ४)॥
रथन्तरं (र० १.१.१) च [https://sa.wikisource.org/s/1z6f वामदेव्यं] (ऊ० १.१.५) चाभीवर्त्तश्च (ऊ० ६.१.१६) । [https://sa.wikisource.org/s/1za0 कालेयं] (ऊ० १. १. ७) चेति पृष्ठानि ॥ स्वादिष्ठये-(सा०६८९-९१)ति गायत्र-[https://sa.wikisource.org/s/1z76 संहिते] (ऊ० १.१.८)। पवस्वेन्द्रमच्छे-(सा०६९२-४)ति [https://sa.wikisource.org/s/1z69 सफ] - [https://sa.wikisource.org/s/1z6a पौष्कले] (ऊ० १.१.९-१०) एकर्चे। पुरोजिती वो अन्धस (सा० ६९७-९) इति [https://sa.wikisource.org/s/1zek गौरीवितम्] (ऊ० ६.१.१३) [https://sa.wikisource.org/s/1z6c आन्धीगवं] (ऊ० १.१.१२) [https://sa.wikisource.org/s/1z6b श्यावाश्वम्] (ऊ० १.१.११) इति सामतृचः । बृहत्तिसृषु (र० २.२.५) [https://sa.wikisource.org/s/1z6d काव]-(ऊ० १.१.१३)मन्त्यम् । यज्ञायज्ञीयमग्निष्टोमसाम (ऊ० १.१.१४)। त्रिवृद्बहिष्पवमानम् । पञ्चदशान्याज्यानि । सप्तदशो माध्यंदिनः । सप्तदशानि पृष्ठानि । आर्भव एकविंशोऽग्निष्टोमसाम । इति स्तोमक्लृप्तिः ॥ २॥
इति ऋषभः ॥ १३ ॥
 
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