"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/१५५" इत्यस्य संस्करणे भेदः
→अपरिष्कृतम्: {{gap}}'''विदूषकः'''---खगतम्) ही ही भो, जूदिअरो त्ति भणती... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती |
|||
पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
- | + | परिष्कृतम् | |
पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः ४: | पङ्क्तिः ४: | ||
एष खलु शुष्कवृक्षवाटिकायाम् ।। |
एष खलु शुष्कवृक्षवाटिकायाम् ।। |
||
{{gap}}'''वसन्तसेना'''-अज्ज ! का तुम्हाणं सुक्खरुखवाडिआ |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''-अज्ज ! का तुम्हाणं सुक्खरुखवाडिआ वुच्चदि ?। |
||
[ आर्य ! को युष्माकं शुष्कवृक्षवाटिकोच्यते ?।] |
[ आर्य ! को युष्माकं शुष्कवृक्षवाटिकोच्यते ?।] |
||
पङ्क्तिः १४: | पङ्क्तिः १४: | ||
{{gap}}'''विदूषकः'''--ता पविसदु भोदी । [ तस्मात्प्रविशतु भवती ।] |
{{gap}}'''विदूषकः'''--ता पविसदु भोदी । [ तस्मात्प्रविशतु भवती ।] |
||
{{gap}}'''वसन्तसेना'''----{ जनान्तिकम् ) एत्थ पविसिअ किं मए |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''----{ जनान्तिकम् ) एत्थ पविसिअ किं मए भणिदव्वं ।। |
||
[ अत्र प्रविश्य किं मया भणितव्यम् ?।] |
[ अत्र प्रविश्य किं मया भणितव्यम् ?।] |
||
{{gap}}'''चेटी'''---‘जूदिअर | अवि सुहो दे पदोसो ? ति ।[ |
{{gap}}'''चेटी'''---‘जूदिअर | अवि सुहो दे पदोसो ? ति ।[ द्यूतकर ! अपि |
||
सुखस्ते प्रदोषः ?' इति । |
सुखस्ते प्रदोषः ?' इति । |
||
पङ्क्तिः २४: | पङ्क्तिः २४: | ||
{{gap}}'''चेटी'''–अवसरो जेव्व पारइस्सदि । [ अवसर एव पारयिष्यति ।] |
{{gap}}'''चेटी'''–अवसरो जेव्व पारइस्सदि । [ अवसर एव पारयिष्यति ।] |
||
{{gap}}'''विदूषकः'''-- |
{{gap}}'''विदूषकः'''--पविसदु भोदी । [प्रविशतु भवती ।] |
||
{{gap}}'''वसन्तसेना'''—(प्रविश्योपसृत्य च, पुष्पैस्ताडयन्ती ) अइ जूदिअर ! |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''—(प्रविश्योपसृत्य च, पुष्पैस्ताडयन्ती ) अइ जूदिअर ! |
||
अवि सुहो दे पदोसो ? । [ अयि द्यूतकर ! अपि सुखस्ते प्रदोषः ? । ] |
अवि सुहो दे पदोसो ? । [ अयि द्यूतकर ! अपि सुखस्ते प्रदोषः ? । ] |
||
{{gap}}'''चारुदत्तः'''---( अवलोक्य ) अये, वसन्तसेना प्राप्ता । ( |
{{gap}}'''चारुदत्तः'''---( अवलोक्य ) अये, वसन्तसेना प्राप्ता । (सहर्षमुत्थाय ) |
||
अयि प्रिये |
अयि प्रिये ! |