"ऋग्वेदः सूक्तं १०.१००" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः १:
इन्द्र दर्ह्य मघवन तवावदिद भुज इह सतुतः सुतपाबोधि नो वर्धे |
देवेभिर्नः सविता परावतु शरुतमासर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
भराय सु भरत भागं रत्वियं पर वायवे शुचिपेक्रन्ददिष्टये |
गौरस्य यः पयसः पीतिमानश आसर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
आ नो देवः सविता साविषद वय रजूयते यजमानायसुन्वते |
यथा देवान परतिभूषेम पाकवदा सर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
 
इन्द्रो अस्मे सुमना अस्तु विश्वहा राजा सोमः सुवितस्याध्येतु नः |
यथा-यथा मित्रधितानि सन्दधुरा सर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
इन्द्र उक्थेन शवसा परुर्दधे बर्हस्पते परतरीतास्यायुषः |
यज्ञो मनुः परमतिर्नः पिता हि कमासर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
इन्द्रस्य नु सुक्र्तं दैव्यं सहो.अग्निर्ग्र्हे जरितामेधिरः कविः |
यज्ञश्च भूद विदथे चारुरन्तम आसर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
 
न वो गुहा चक्र्म भूरि दुष्क्र्तं नाविष्ट्यं वसवोदेवहेळनम |
माकिर्नो देवा अन्र्तस्य वर्पस आ सर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
अपामीवां सविता साविषन नयग वरीय इदप सेधन्त्वद्रयः |
गरावा यत्र मधुषुदुच्यते बर्हदासर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
ऊर्ध्वो गरावा वसवो.अस्तु सोतरि विश्वा दवेषांसि सनुतर्युयोत |
स नो देवः सविता पायुरीड्य आ सर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
 
ऊर्जं गावो यवसे पीवो अत्तन रतस्य याः सदने कोशेङगध्वे |
तनूरेव तन्वो अस्तु भेषजमा सर्वतातिंदितिं वर्णीमहे ||
करतुप्रावा जरिता शश्वतामव इन्द्र इद भद्राप्रमतिः सुतावताम |
पूर्णमूधर्दिव्यं यस्य सिक्तया सर्वतातिमदितिं वर्णीमहे ||
चित्रस्ते भानुः करतुप्रा अभिष्टिः सन्ति सप्र्धोजरणिप्रा अध्र्ष्टाः |
रजिष्ठया रज्या पश्व आ गोस्तूतूर्षत्य पर्यग्रं दुवस्युः ||
"https://sa.wikisource.org/wiki/ऋग्वेदः_सूक्तं_१०.१००" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्