"पृष्ठम्:श्रीपरात्रिंशिका.pdf/३२" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः २: | पङ्क्तिः २: | ||
बाह्याभासं भासमानं विसृष्टौ। |
बाह्याभासं भासमानं विसृष्टौ। |
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क्षोभे क्षीणेऽनुत्तरायां स्थितौ तां |
क्षोभे क्षीणेऽनुत्तरायां स्थितौ तां |
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वन्दे देवीं स्वात्मसंवित्तिमेकाम् |
वन्दे देवीं स्वात्मसंवित्तिमेकाम्<ref> यस्यामन्तरिति, प्रतिबिम्बलक्षणोपेतत्वात् अतिरिक्तत्वेऽपि अनति- |
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समाविशामि ।</ref> ॥ २॥ |
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नरशक्तिशिवात्मकं त्रिकं |
नरशक्तिशिवात्मकं त्रिकं |
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हृदये या विनिधाय |
हृदये या विनिधाय भा<ref>अन्तःस्थितमेच बहिः प्रकटयेदित्यर्थः ।</ref>सयेत् । |
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प्रणमामि परामनुत्तरां |
प्रणमामि परामनुत्तरां |
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निजभासां प्रतिभाचमत्कृतिम् ॥३॥ |
निजभासां<ref>स्वीयशक्तीनाम् ।</ref> प्रतिभाचमत्कृतिम् ॥३॥ |
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जयत्यनर्घमहिमा विपाशितपशुव्रजः। |
जयत्यनर्घमहिमा विपाशितपशुव्रजः। |
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श्रीमानाद्यगुरुः शंभुः श्रीकण्ठः परमेश्वरः॥४॥ |
श्रीमानाद्यगुरुः शंभुः श्रीकण्ठः परमेश्वरः॥४॥ |
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२ यस्यामन्तरिति, प्रतिबिम्बलक्षणोपेतत्वात् अतिरिक्तत्वेऽपि अनति- |
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समाविशामि। |
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३ अन्तःस्थितमेच बहिः प्रकटयेदित्यर्थः । |
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४ स्वीयशक्तीनाम् । |
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पुटतलम् (अव्यचितम्) : | पुटतलम् (अव्यचितम्) : | ||
पङ्क्तिः २: | पङ्क्तिः २: | ||
पं० ६ घ० पु० प्रणिधायेति पाठः । |
पं० ६ घ० पु० प्रणिधायेति पाठः । |
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पं० ८ क० पु० निजभासमिति पाठः । |
पं० ८ क० पु० निजभासमिति पाठः । |
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