"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/८३" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
- | + | पुष्टितम् | |
पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
पङ्क्तिः ३: | पङ्क्तिः ३: | ||
{{gap}}'''कर्णपूरकः'''——तदो अज्जए ! ‘साई रे कण्णऊरअ । साहु’ त्ति |
{{gap}}'''कर्णपूरकः'''——तदो अज्जए ! ‘साई रे कण्णऊरअ । साहु’ त्ति |
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एत्तिअमेत्तं भणंती, |
एत्तिअमेत्तं भणंती, विसमभरक्कंता विअ णावा, एक्कदो पल्हत्था |
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सअला उज्जइणी आसि । तदो अज्जए ! एक्केण |
सअला उज्जइणी आसि । तदो अज्जए ! एक्केण सुण्णाइं आहरणट्टाणाइंपरामुसिअ उद्धं पेक्खिअ दीहं णीससिअ अअं पावारओ मम |
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परामुसिअ उद्धं पेक्खिअ दीहं णीससिअ अअं पावारओं मम |
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भणन्ती, विषमभराक्रान्ता इव नौः एकतः पर्यस्ता सकलज्जयिन्यासीत् । तत |
भणन्ती, विषमभराक्रान्ता इव नौः एकतः पर्यस्ता सकलज्जयिन्यासीत् । तत |
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आयें ! एके<ref>1 चारुदतेनेत्यर्थः । स्वाङ्गे भूषणानि न सन्ति' इति विचार्य, |
आयें ! एके<ref>1 चारुदतेनेत्यर्थः । स्वाङ्गे भूषणानि न सन्ति' इति विचार्य, |
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दरिदोऽहं जातः' इति निर्विद्य च देवान्तराभावाद प्रावारकमेव प्रादादिति भावः । अयं |
दरिदोऽहं जातः' इति निर्विद्य च देवान्तराभावाद प्रावारकमेव प्रादादिति भावः । अयं |
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हि प्रथमाङ्के वर्णितः प्रावारिक इति |
हि प्रथमाङ्के वर्णितः प्रावारिक इति ज्ञेयम् ।</ref>न शून्यान्याभरणस्थानानि परामृश्य ऊर्ध्र्वं प्रेक्ष्य दीर्घं निःश्वस्यायं |
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प्रावारको ममोपरि क्षिप्तः ।]''' |
प्रावारको ममोपरि क्षिप्तः ।]''' |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''---कण्णऊरअ! जाणीहि दाव किं एसो |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''---कण्णऊरअ! जाणीहि दाव किं एसो जादीकुसुमवासिदो पावारओ ण वेत्ति । '''| कर्णपूरक ! जानीहि तावत्किमेष जातीकुसुमवासितः प्रावारको न वेति ।]''' |
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वासिदो पावारओ या वेत्ति । '''| कर्णपूरक ! जानीहि तावत्किमेष जातीसुमवासिवः प्रावारको न वेति ।]''' |
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{{gap}}'''कर्णपूरकः'''-अज्जए ! |
{{gap}}'''कर्णपूरकः'''-अज्जए ! मदगंधेण सुट्ठु तं गंधं ण जाणामि । |
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'''[ आर्ये! मदगन्धेन सुष्टु |
'''[ आर्ये! मदगन्धेन सुष्टु तं गन्धं न जानामि ।]''' |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''--णामं पि दाव पेक्ख । [ '''नामापि तावत्प्रेक्षस्व ।'''] |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''--णामं पि दाव पेक्ख । [ '''नामापि तावत्प्रेक्षस्व ।'''] |
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{{gap}}'''कर्णपूरकः'''--इमं णामं, अज्जआ एव्व वाएदु । '''[ इदं नाम, आर्यैव |
{{gap}}'''कर्णपूरकः'''--इमं णामं, अज्जआ एव्व वाएदु । '''[ इदं नाम, आर्यैव |
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वाचयतु ।] '''( इति |
वाचयतु ।] '''( इति प्रावारकमुपनयति ) |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''--अज्ज्ञचारुदत्तस्स । '''[ आर्य चारुदत्तस्य ।'''] ( इति वाच- |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''--अज्ज्ञचारुदत्तस्स । '''[ आर्य चारुदत्तस्य ।'''] ( इति वाच- |
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यित्वा सस्पृहं गृहीत्वा प्रावृणोति ) |
यित्वा सस्पृहं गृहीत्वा प्रावृणोति ) |
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{{gap}}'''चेटी'''- |
{{gap}}'''चेटी'''-कण्णऊरअ ! सोहदि अज्जआए पावारओ । |
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'''[ कर्णपूरक! शोभत आर्यायाः |
'''[ कर्णपूरक! शोभत आर्यायाः प्रावारकः ।]''' |
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