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पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
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::सिणिद्धो अ सुअंधो अ । |
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तह वि मसाणवीधीए जादो |
तह वि मसाणवीधीए जादो विअ |
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::चंपअरुक्खो अणहिगमणीओ लोअस्स ॥ २९ ॥ |
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(अन्यतोऽवलोक्य ) भोदि ! एसा उण का |
(अन्यतोऽवलोक्य ) भोदि ! एसा उण का फुल्लपावारअपाउदा उवाणहजुअलणिक्खित्ततेल्लचिक्कणेहिं पादेहिं उच्चासणे उवविट्टा चिट्ठदि । । |
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णहजुअलणिक्खित्ततेल्लचिक्कणेहिं पादेहिं उच्चासणे इवविट्टा चिट्ठदि । । |
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चम्पकवृक्षोऽनभिगमनीयो लोकस्य ॥ भवति । एषा पुनः का पुष्पप्रावारकप्रावृतोपानयुगलनिक्षिप्ततैसचिक्कणाभ्यां पादाभ्यामुञ्चासन उपविष्टा |
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तिष्ठति ? ।] |
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द्यप्येष उज्वलः स्निग्धश्च सुगन्धश्च । तथापि श्मशानवीभ्यां जात इव |
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चम्पकवृक्षोऽनभिगमनीयो लोकस्य ॥ भवति । एषा पुनः का पुष्प- |
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प्राचारकप्रावृतोपानयुगलनिक्षिप्ततैसचिक्कणाम्य पादाभ्यामुञ्चसिन उपविष्टा |
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तिधति ? ।] |
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{{gap}}'''चेटी'''--अज्ज ! एसा खु अम्हाणं अज्जआए अत्तिआ । [ आर्य ! |
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एषा |
एषा खल्वस्माकमार्याया माता।] |
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{{gap}}'''विदूषकः'''----अहो से कवठ्ठडाइणीए पोट्टवित्थारो । ता किं एदं |
{{gap}}'''विदूषकः'''----अहो से कवठ्ठडाइणीए पोट्टवित्थारो । ता किं एदं |
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पवेसिअ महादेवं |
पवेसिअ महादेवं णिअ दुआर सोहा इह घरे णिम्मिदा १ । [ अहो अस्याः |
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कपर्दकडाकिन्या उदरविस्तारः। |
कपर्दकडाकिन्या उदरविस्तारः। तत्किमेतां प्रवेश्य महादेवमिव द्वारशोभा इह |
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गृहे निर्मिता ? ।] |
गृहे निर्मिता ? ।] |
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{{gap}}'''चेटी'''---हदास ! |
{{gap}}'''चेटी'''---हदास ! मा एवं उवहस अम्हाणं अत्तिअं; एसा खु |
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चाउथिएण पीडीअदि । [हताश ! भैवमुपहसास्माकं मातरम् एषा |
चाउथिएण पीडीअदि । [हताश ! भैवमुपहसास्माकं मातरम् एषा |
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खलु चातुर्थिकेन पीड्यते । |
खलु चातुर्थिकेन पीड्यते । |
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वनमिव में गणिकागृहं प्रतिभाति । इहापि अष्टमे प्रकोष्ठे। भवति । क एष |
वनमिव में गणिकागृहं प्रतिभाति । इहापि अष्टमे प्रकोष्ठे। भवति । क एष पट्टप्रच्छदप्रावृतोऽधिकतरमत्यद्भुतपुनरुक्तालंकारालंकृतोऽङ्गभङ्गैः परिस्खलक्षितस्ततः |
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अच्छदप्रावृतोऽधिकतरमत्यद्भुतपुनरुक्ताले कारालंकृतोऽङ्गभङ्गैः परिस्खलक्षितस्ततः |
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पाठान्तरे इत्यर्थः । अनभिगम्योऽनभिगमनीयः । एषा पुनः का पुष्पप्राचारक- |
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