"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/१३९" इत्यस्य संस्करणे भेदः
पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
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पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | पुटाङ्गम् (उपयोगार्थम्) : | ||
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अपि च,-- |
अपि च,-- |
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{{block center|{{bold|<poem>केशवगात्रश्यामः कुटिलबलाकावलीरचितशङ्खः । |
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विद्युद्गुणकौशेयश्चक्रधर इवोन्नतो मेघः ॥ ३ ॥</poem>}}}} |
विद्युद्गुणकौशेयश्चक्रधर इवोन्नतो मेघः ॥ ३ ॥</poem>}}}} |
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पङ्क्तिः २५: | पङ्क्तिः २५: | ||
{{gap}}'''विदूषकः'''--अहो गणिआए लोभो अदक्खिणदा अ, जदो ण कधा |
{{gap}}'''विदूषकः'''--अहो गणिआए लोभो अदक्खिणदा अ, जदो ण कधा |
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वि किदा अण्णा । अणेकहा सिणेहाणुसारं भणिअ किं पि, |
वि किदा अण्णा । अणेकहा सिणेहाणुसारं भणिअ किं पि, एवमेअ |
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गहिदा रअणावली । एत्तिए ऋद्धीए ण तए अहं भणिदो -अज्ज- |
गहिदा रअणावली । एत्तिए ऋद्धीए ण तए अहं भणिदो -अज्ज- |
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'''संमतः ।''' खं आकाशम् ॥ २ ॥ केशवेति ।। ३ ।। '''एता इति ।''' निषिक्तं |
'''संमतः ।''' खं आकाशम् ॥ २ ॥ '''केशवेति''' ।। ३ ।। '''एता इति ।''' निषिक्तं |
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द्रावितम् ॥ ४ ॥ '''संसक्तैरिति ।''' प्रडीनैरिति कर्मणि क्तः ( ? )। |
द्रावितम् ॥ ४ ॥ '''संसक्तैरिति ।''' प्रडीनैरिति कर्मणि क्तः ( ? )। व्याविद्धैर्भ्रान्तैः । चक्रं समूहः । पत्रस्य छेदः खण्डनं विचलं (?) यत्र चित्रे तत्पत्रछेद्यं |
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र्भ्रान्तैः । चक्रं समूहः । पत्रस्य छेदः खण्डनं विचलं (?) यत्र चित्रे तत्पत्रछेद्यं |
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चित्रम् । तदिव गगनं शोभते ॥ ५ ॥ '''एतदिति ।''' धृतराष्ट्रवक्त्रसदृशं नष्टच- |
चित्रम् । तदिव गगनं शोभते ॥ ५ ॥ '''एतदिति ।''' धृतराष्ट्रवक्त्रसदृशं नष्टच- |
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न्द्रार्कत्वात् । वा इवार्थे । शिखी मयूरः । वनादिति त्यलोपे कर्मणि पञ्चमी । |
न्द्रार्कत्वात् । वा इवार्थे । शिखी मयूरः । वनादिति त्यलोपे कर्मणि पञ्चमी । |
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पाठा०---१ अणाअरेण |
पाठा०---१ अणाअरेण ज्जेब्व अभणिअ (=अनादरेणैवाभणित्वा ). |