"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/१५५" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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{{gap}}'''विदूषकः'''---स्वगतम्) ही ही भो, जूदिअरो त्ति भणतीए अलंकिदो पिअबअस्सो । (प्रकाशम् ) भोदि ! एसो खु सुक्खरुखवाडिआए । [ आश्चर्य, भोः द्यूतकर इति भणन्त्यालंकृतः प्रियवयस्यः । भवति ! |
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किदो पिअबअस्सो । (प्रकाशम् ) भोदि ! एसो खु सुक्खरुखवाडि- |
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आए । [ आश्चर्य, भोः द्यूतकर इति भणन्त्यालंकृतः प्रियवयस्यः । भवति ! |
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एष खलु शुष्कवृक्षवाटिकायाम् ।। |
एष खलु शुष्कवृक्षवाटिकायाम् ।। |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''-अज्ज ! का तुम्हाणं |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''-अज्ज ! का तुम्हाणं सुक्खरुक्खवाडिआ वुच्चदि ?। |
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[ आर्य ! |
[ आर्य ! का युष्माकं शुष्कवृक्षवाटिकोच्यते ?।] |
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{{gap}}'''विदषकः'''----भोदि । जहिं ण खाईअदि, ण पीईअदि । |
{{gap}}'''विदषकः'''----भोदि । जहिं ण खाईअदि, ण पीईअदि । |
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[ भवति ! यत्र न खाद्यते, न पीयते ।] |
[ भवति ! यत्र न खाद्यते, न पीयते ।] |
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{{c|( |
{{c|( वसन्तसेना स्मितं करोति )}} |
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{{gap}}'''विदूषकः'''--ता पविसदु भोदी । [ तस्मात्प्रविशतु भवती ।] |
{{gap}}'''विदूषकः'''--ता पविसदु भोदी । [ तस्मात्प्रविशतु भवती ।] |