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{{gap}}'''चेटी'''--कधं अज्ज वि अज्जआ ण विवुज्झदि ? । भोदु, पविसिअ |
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पडिबोधहस्सं । [कथमयोप्यार्या न विबुध्यते ? । भवतु, प्रविश्य प्रतिबोधयिष्यामि । ] ( इति नाट्येन परिक्रामति ) |
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बोधयिष्यामि । ] ( इति नाट्येन परिक्रामति ) |
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{{c|( ततः प्रविशत्याच्छादितशरीरा प्रसुप्ता वसन्तसेना)}} |
{{c|( ततः प्रविशत्याच्छादितशरीरा प्रसुप्ता वसन्तसेना)}} |
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{{gap}}'''चेटी'''--( निरूप्य ) उत्थेदु उत्थेदु |
{{gap}}'''चेटी'''--( निरूप्य ) उत्थेदु उत्थेदु अज्जआ । पभादं संवृत्तं । |
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[ उत्तिष्ठतुत्तिष्ठत्वार्या । प्रभात संवृत्तम् । । |
[ उत्तिष्ठतुत्तिष्ठत्वार्या । प्रभात संवृत्तम् । । |
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पङ्क्तिः १५: | पङ्क्तिः १४: | ||
[ कथं रात्रिरेष प्रभातं संवृत्तम् १ । । |
[ कथं रात्रिरेष प्रभातं संवृत्तम् १ । । |
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{{gap}}'''चेटी'''--अम्हाणं एसो पभादो । अज्जआए उण रत्ति जेव्व । |
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[अस्माकमेष प्रभातः । आर्यायाः पुना रात्रिरेव ।] |
[अस्माकमेष प्रभातः । आर्यायाः पुना रात्रिरेव ।] |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''- |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''-इञ्जे ! कहिं उण तुम्हाणं जूदिअरो ? । [चेटि ! |
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कुतः पुनर्युष्माकं |
कुतः पुनर्युष्माकं द्यूतकरः ?।] |
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{{gap}}'''चेटी'''--अज्जए ! वङ्ढमाणअं समादिसिअ पुप्फकरंडअं जिष्णुज्जाणं गदो अज्जचारुदत्तो । [ आर्ये ! वर्धमानकं समादिश्य पुष्पकरण्डकं |
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{{gap}}'''चैटी'''--अजए ! वङ्खमाणों समादिसि पुप्फकरंडों जिष्णु- |
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जाणं गदो अज्ञचारुदत्तो । [ आर्ये ! वर्धमानकं समादिश्य पुष्पकरण्डकं |
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जीर्णोद्यानं गत आर्यसदितः ।] |
जीर्णोद्यानं गत आर्यसदितः ।] |
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पङ्क्तिः २८: | पङ्क्तिः २६: | ||
{{gap}}'''चेटी'''–जोएहि रात्तीए पवहणं, वसन्तसेना' गच्छदुत्ति । [ योजय |
{{gap}}'''चेटी'''–जोएहि रात्तीए पवहणं, वसन्तसेना' गच्छदुत्ति । [ योजय |
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रात्रौ प्रवहणम्, वसन्तसेना गच्छत्विति ।] |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''-- |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''--हञ्जे ! कहिं मए गंतव्वं ? । [चेटि ! कुत्र- |
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मया गन्तव्यम् ? ।। |
मया गन्तव्यम् ? ।। |
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{{gap}}'''चेटी'''--अज्जए । जहिं चारुदत्तो । [ |
{{gap}}'''चेटी'''--अज्जए । जहिं चारुदत्तो । [ आर्ये ! यत्र चारुदत्तः ।] |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''---( चेट परिष्वज्य ) |
{{gap}}'''वसन्तसेना'''---( चेट परिष्वज्य ) हञ्जे | सुड्डु ण निज्झाइदो रत्तीए, |
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ओएहि योजय । |
ओएहि योजय । अपय्यत्तं अपर्याप्तम् । यदृच्छासंबन्धि (१) । एतेन मृच्छ- |